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भागलपुर, 30 जुलाई (हि.स.)। ऑल इण्डिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (ऐक्टू) ने आशा कार्यकर्ताओं के मासिक मानदेय में हालिया वृद्धि को उनके निरंतर संघर्ष और दबाव का परिणाम बताया है।
ऐक्टू के राज्य सचिव और भाकपा-माले के नगर प्रभारी मुकेश मुक्त ने कहा कि यह आशा कार्यकर्ताओं की आंशिक जीत है। उनके सारे हक मिलने तक लड़ाई जारी रहेगी। यह आशा और आशा फैसिलिटेटरों की 5 दिवसीय राज्यव्यापी मई हड़ताल, 9 जुलाई की राष्ट्रीय हड़ताल और वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री के दर्जनों स्थानों पर घेराव जैसे एकजुट आंदोलनों से हासिल हुई है।
नीतीश – भाजपा सरकार ने 2023 में आशा कार्यकर्ताओं की 35 दिनों की ऐतिहासिक हड़ताल के दौरान 12 अगस्त को हुए मानदेय बढ़ोतरी के लिखित समझौते को राजनीतिक अड़ंगा डालकर उसे लागू नहीं किया और बड़ी चालाकी से उसे नजरअंदाज कर दिया था।
अब जब चुनाव सर पर है और कुर्सी पर खतरा मंडराने लगा है, तब बेचैनी में लोगों को बरगलाने में लगे हैं लेकिन आशा कार्यकर्ता सहित सभी स्कीम कर्मी और अन्य संघर्षशील तबके, सरकार की इन फरेबी जालों को अच्छी तरह से समझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2018 के बाद आशा कार्यकर्ताओं को मिलने वाली केंद्रीय राशि में कोई बढ़ोतरी नहीं की है और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के प्रस्ताव पर पूरी तरह से चुप्पी साध ली है।
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हिन्दुस्थान समाचार / बिजय शंकर