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नई दिल्ली, 30 जुलाई (हि.स.)। देश के लिए आज एक ऐतिहासिक दिन है। ब्रिटेन से बौद्ध अवशेष की स्वदेश वापसी हो गई है। संस्कृति मंत्रालय के प्रयासों से 127 साल बाद इन बौद्ध अवशेष को वापस लाया जा सका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बौद्ध पुरावशेष की वापसी की तस्वीरें साझा करते ट्वीट कर खुशी जताई
है।
दरअसल, ब्रिटेन में इन बाैद्ध अवशेष काे मई माह में नीलामी के लिए रखा गया था । केन्द्र सरकार ने इस नीलामी को न केवल रुकवाया बल्कि इन पवित्र अवशेष को वापस लाने के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे। केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय के प्रयासाें से बुधवार को यह बाैद्ध अवशेष ब्रिटेन से भारत लाया गया। इसपर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बौद्ध पुरावशेष की वापसी पर तस्वीरें साझा करते हुए अपने एक्स अकाउंट पर अपने संदेश में कहा कि हमारी सांस्कृतिक विरासत के लिए एक खुशी का दिन है।
हर भारतीय को इस बात पर गर्व होगा कि भगवान बुद्ध के पवित्र पिपरहवा अवशेष 127 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद स्वदेश लौट आए हैं। ये पवित्र अवशेष भगवान बुद्ध और उनकी महान शिक्षाओं के साथ भारत के घनिष्ठ संबंध को दर्शाते हैं। यह हमारी गौरवशाली संस्कृति के विभिन्न पहलुओं के संरक्षण और सुरक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। उन्होंने कहा कि पिपरहवा के अवशेष 1898 में खोजे गए थे, लेकिन औपनिवेशिक काल के दौरान इन्हें भारत से बाहर ले जाया गया था। इस वर्ष की शुरुआत में जब ये एक अंतरराष्ट्रीय नीलामी में दिखाई दिए, तो हमने यह सुनिश्चित करने के लिए काम किया कि ये स्वदेश वापस आ जाएं। उन्होंने इस पुरावशेष को वापस लाने वाले सभी लोगों के प्रयासों का आभार व्यक्त किया।
इस संबंध में संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि कुछ दिनों पहले इन अवशेषों की नीलामी होने वाली थी, लेकिन भारत सरकार के प्रयास से नीलामी रुकवा दी गई।
इन अवशेषों की कहानी साल 1898 में शुरू होती है, जब एक ब्रिटिश इंजीनियर विलियम पेपे ने पिपरहवा में एक प्राचीन बौद्ध स्तूप की खुदाई की। खुदाई में एक विशाल पत्थर का पात्र मिला। इसमें भगवान बुद्ध की हड्डियों के अवशेष, क्रिस्टल और सोपस्टोन की पवित्र कलशियां और रत्नों व आभूषणों से भरे चढ़ावे थे। इनमें से अधिकतर रत्न और आभूषण जैसे 1,800 से अधिक मोती, माणिक, नीलम, टोपाज और सुनहरी चादरें कोलकाता के म्यूजियम में रखे हुए थे। ऐतिहासिक साक्ष्य बताते हैं कि जिस स्तूप के नीचे से ये अवशेष निकाले गए थे, उसे शाक्य वंशजों ने भगवान बुद्ध के दाह संस्कार के बाद बनवाया था।
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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी