टोक्यो विवि के प्रो. वाई. काटो ने किया आइसार्क का दौरा, किसानों से की चर्चा
वाराणसी, 03 जुलाई (हि.स.)। टोक्यो विश्वविद्यालय, जापान के कृषि विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर वाई. काटो ने अपने दो दिवसीय वाराणसी दौरे के दौरान अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) का दौरा किया। इस दौरान उन्हो
टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रो. वाई. काटो पनियारा गांव में


वाराणसी, 03 जुलाई (हि.स.)। टोक्यो विश्वविद्यालय, जापान के कृषि विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर वाई. काटो ने अपने दो दिवसीय वाराणसी दौरे के दौरान अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने धान की सीधी बुआई (डीएसआर) तकनीक पर वैज्ञानिकों और किसानों से विस्तृत चर्चा की।

उनके दौरे की शुरुआत बुधवार को हुई, जब प्रो. काटो ने वाराणसी के पनियारा गांव का दौरा कर स्थानीय किसानों से मुलाकात की। किसानों ने बताया कि डीएसआर तकनीक अपनाने से पानी की बचत, मजदूरी में कमी और फसल जल्दी तैयार होने जैसे कई लाभ मिल रहे हैं। मशीन से की गई सीधी बुआई से उत्पादन लागत भी घटा है। गुरुवार को उन्होंने उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में डीएसआर के खेतों का दौरा किया। वहां भी उन्होंने किसानों से बात कर उनकी समस्याएं और अनुभव जाने।

किसानों ने बताया कि डीएसआर से पानी और मजदूरी दोनों में बचत हो रही है, फसल समय पर बोई जा रही है और खर्च भी कम आ रहा है। प्रो. काटो ने किसानों के नई तकनीक अपनाने के जज़्बे की सराहना की और कहा कि किसानों की ट्रेनिंग और फील्ड सपोर्ट बढ़ाने से धान की सीधी बुआई को और सफल बनाया जा सकता है। उन्होंने आइसार्क परिसर में विभिन्न अनुसंधान प्रयोगशालाओं और सुविधाओं का निरीक्षण किया।

आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने उन्हें बताया कि कैसे डीएसआर तकनीक के माध्यम से जल उपयोग दक्षता और कृषि उत्पादकता दोनों में सुधार लाया जा रहा है।

प्रो. काटो ने स्पीड ब्रीडिंग लैब, मैकेनाइजेशन हब, रिमोट सेंसिंग एवं जिओ-इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआईसी) लैब, प्लांट एवं सॉयल लैब, और कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी लैब का अवलोकन किया। उन्होंने देखा कि कैसे नए बीज, मशीनें और तकनीकी नवाचार धान की खेती को सतत और लाभकारी बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

इस दौरान प्रो. काटो ने जापान में डीएसआर पर किए गए दशकभर के शोध का अनुभव साझा किया। उन्होंने बताया कि उन्होंने सूखा-प्रतिरोधी किस्में, कम जुताई, और बीज बोने की सटीक गहराई पर गहन अनुसंधान किया है, जिससे फसल की उत्पादकता बढ़ाने और संसाधन खपत कम करने में सफलता मिली है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने बीज अंकुरण का एक मॉडल विकसित किया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि टोक्यो विश्वविद्यालय और आइसार्क साथ मिलकर भविष्य में डीएसआर पर और काम करेंगे, ताकि धान की खेती आसान, सस्ती और सतत बन सके, जिससे किसानों को सीधा लाभ मिले।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी