धर्मगंज मेला जमीन के स्वामित्व का फैसला तीस साल बाद बिहार सरकार के पक्ष में
अररिया, 03 जून(हि.स.)। जिले के पलासी प्रखंड में लगने वाला पौराणिक और ऐतिहासिक धर्मगंज मेला के जमीन का स्वामित्व का फैसला तीस साल के बाद आया।अररिया न्याय मंडल के सब जज प्रथम अविनाश कुमार की अदालत ने जमीन की टाइटल मामले में सुनवाई करते हुए बिहार सरकार
अररिया फोटो:अररिया कोर्ट


अररिया, 03 जून(हि.स.)।

जिले के पलासी प्रखंड में लगने वाला पौराणिक और ऐतिहासिक धर्मगंज मेला के जमीन का स्वामित्व का फैसला तीस साल के बाद आया।अररिया न्याय मंडल के सब जज प्रथम अविनाश कुमार की अदालत ने जमीन की टाइटल मामले में सुनवाई करते हुए बिहार सरकार के पक्ष में अपना फैसला सुनाया।बिहार सरकार को धर्मगंज मेला की जमीन बिहार सरकार के होने को सिद्ध करवाने में तीस साल लगा।

जमीन की स्वामित्व को लेकर वर्ष 1995 में तीस साल पहले मुकदमा टाइटल सूट 102/1995 दायर किया गया था, जिसमें वादीगण की ओर से अधिवक्ता देवनंदन यादव और बिहार सरकार की ओर से सरकारी वकील नवयुक्त जीपी अशोक कुमार पासवान न्यायालय में अपने-अपने पक्षकारों के साथ पक्ष न्यायालय के समक्ष रखा, जिसमें न्यायालय ने उक्त जमीन के हक का फैसला बिहार सरकार के पक्ष में दिया।

पलासी थाना क्षेत्र के अंतर्गत धर्मगंज निवासी भोला धारी सिंह, रणविजय सिंह पिता राजन धारी सिंह और रविशंकर धारी सिंह, पिता स्वर्गीय जटा धारी सिंह के द्वारा वर्ष 1995 में की गई थी।कुल 58 एकड़ 70 डिसमिल जमीन का स्वामित्व वादीगण के द्वारा खुद को बताया जा रहा था, जबकि बहुचर्चित धर्मगंज मवेशी मेला हाट, दुकान वाली जमीन बिहार सरकार के नाम से आरएस खतियान में परती जमीन जंगल आदि के रूप में दर्शाया हुआ है।

बहुचर्चित धर्मगंज मेला वर्षों से लगती आ रही हैं और इसका डाक भी बिहार सरकार मेला स्थल का किया जाता रहा है और बंदोबस्ती की राशि बिहार सरकार लेती हैं। वादीगण का उपरोक्त जमीन पर कभी दखलकार भी नहीं होना बताया जाता है।केवल स्वामित्व वाद के जरिए दिनांक 07.08.1952 के केवाला को आधार बनाकर कर उस जमीन पर अपना कब्जा करना चाहते थे।जिसके लिए उन्होंने एक लाख रुपए वाद का मूल्यांकन शुल्क भी जमा किया था। वादी भोला धारी सिंह और रणविजय सिंह के पिता रजनधारी सिह के द्वारा उक्त जमीन निबंधित केवाला दिनांक 7.08.1952 को जमीन पूर्ण स्वामी से अर्जित की गई हुई जमीन बताया गया था। जबकि वर्ष 1958 में उक्त जमीन खतियान बिहार सरकार के नाम से प्रकाशित हुई थी।जिसे न्यायालय ने बिहार सरकार की जमीन मानते हुए, बिहार सरकार के हक में फैसला सुनाया ।

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल कुमार ठाकुर