न्याय के लिए भटकती शहीद वीरांगना ने मांगी इच्छा मृत्य
शहीद वीरांगना


झुंझुनू, 29 जुलाई (हि.स.)। वर्ष 1988 में श्रीलंका में भारतीय सेना के आपरेशन पवन के दौरान शहीद हुए नायक सुरेंद्र सिंह की वीरांगना ओम कंवर ने मंगलवार को झुंझुनू जिला कलेक्टर के सामने अपने पति को मिले शौर्य-सम्मान का मोमेंटो रखकर इच्छा मृत्यु की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले आठ महीनों से न्याय के लिए भटकने के बावजूद पुलिस और प्रशासन ने उनकी शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया। मानसिक रूप से टूट चुकी ओम कंवर ने चेतावनी दी है कि यदि सात दिनों के भीतर उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ तो वह अपने खेत में आत्मदाह कर लेंगी और इसकी पूरी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।

ओम कंवर ने बताया कि 19 जुलाई, 2025 को उनके पड़ोसी विकेंद्र सिंह, आनंद सिंह, राजू कंवर और सुरज्ञान सिंह ने जबरन उनके खेत पर कब्जा करने की कोशिश की। जब उन्होंने विरोध किया तो हमलावरों ने उनका मुंह दबाकर उन्हें खेत से बाहर फेंक दिया। इस घटना की एफआईआर बगड़ थाने में दर्ज की गई थी। लेकिन पुलिस ने उनकी चोटों को मामूली बताकर कार्रवाई से इनकार कर दिया। उन्हें यह कहकर टाल दिया गया कि उनके पास कोई गवाह नहीं है और शरीर पर चोट के निशान भी नहीं हैं।

वीरांगना का आरोप है कि घटना के दो दिन बाद हमलावरों ने उनके जेठ के बेटे विक्रम सिंह के खिलाफ छेड़छाड़ का झूठा मामला दर्ज करा दिया। ताकि उन्हें और उनके परिवार को फंसाया जा सके। ओम कंवर का कहना है कि पुलिस इस मामले में भी उनकी बात नहीं सुन रही है और विक्रम सिंह का सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान दर्ज करवाया जा रहा है। ओम कंवर ने अपने ज्ञापन में यह भी बताया कि उनके पति नायक सुरेंद्र सिंह के नाम पर ग्राम चिचड़ौली में एक विद्यालय का नाम रखा गया था। अब कुछ लोग उस विद्यालय से शहीद का नाम हटाने की साजिश कर रहे हैं जो उनके लिए बेहद अपमानजनक है।

वीरांगना ने शिकायत की है कि जिन लोगों से उन्हें जान का खतरा है। वे उनकी खेत की जमीन पर जबरन निर्माण कर रहे हैं। जबकि इस जमीन पर कोर्ट का स्पष्ट स्टे है। उनके घर की खिड़कियां और दरवाजे तक उखाड़ दिए गए हैं। उन्होंने कहा वे लोग मुझसे कह रहे हैं कि जमीन हमारे नाम कर दो नहीं तो ऐसे ही मारते रहेंगे। मैं अकेली महिला हूं मुकाबला नहीं कर सकती।

ओम कंवर का कहना है कि वे कई बार बगड़ थाने गईं झुंझुनू कलेक्ट्रेट गईं और अधिकारियों के सामने न्याय के लिए गुहार लगाई लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली। उन्होंने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि मैं अब थक चुकी हूं। प्रशासन मेरी बात नहीं सुनता। जिनसे सुरक्षा की उम्मीद थी वही मेरी आवाज दबा रहे हैं। इस इज्जत का क्या करूं जब न्याय नहीं मिला।

अपने ज्ञापन में ओम कंवर ने स्पष्ट किया है कि यदि उन्हें इच्छा मृत्यु की अनुमति नहीं दी गई और सात दिनों के भीतर कोई सुनवाई नहीं हुई तो वह अपने खेत में आत्मदाह करेंगी। उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा के रूप में यह भी लिखा है कि उनका अंतिम संस्कार उसी खेत में किया जाए जो उनके लिए संघर्ष और अपमान का प्रतीक बन गया है।

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हिन्दुस्थान समाचार / रमेश