सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के 18 जुलाई के आदेश पर लगाई रोक
Supreme Court


नैनीताल, 29 जुलाई (हि.स.)। उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा 18 जुलाई 2025 को दिए गए उस महत्वपूर्ण आदेश पर स्थगन लगा दिया है, जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग की ग्राम पंचायतों के निर्वाचक नामावलियों में केवल परिवार रजिस्टर पर आधारित प्रविष्टियों को अवैधानिक ठहराया था।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने गत 18 जुलाई 2025 को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की थी कि पंचायत चुनावों की निर्वाचक नामावलियों के गठन में केवल परिवार रजिस्टर को आधार बनाना विधिसम्मत नहीं है, क्योंकि उत्तर प्रदेश पंचायत राज (मतदाता पंजीकरण) नियमावली 1994 के नियम 7 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मतदाता के निर्धारण में केवल जन्म-मृत्यु पंजीकरण अधिनियम 1969 के अंतर्गत जन्म-मृत्यु रजिस्टर या शैक्षणिक संस्थाओं के प्रवेश रजिस्टर पर ही भरोसा किया जा सकता है।

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि नियम 5(2) के अनुसार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची का उपयोग किया जाना चाहिए, न कि मात्र ग्राम पंचायत द्वारा बनाए गए परिवार रजिस्टर पर भरोसा।

उच्च न्यायालय ने उस स्थिति पर भी चिंता जताई थी, जिसमें नैनीताल के अपर जिलाधिकारी व निर्वाचक नामावली पदाधिकारी विवेक राय और सहायक निर्वाचक नामावली पदाधिकारी मोनिका आर्य ने स्वयं यह स्वीकार किया था कि केवल परिवार रजिस्टर के आधार पर ही नाम जोड़े गये हैं, जबकि इस प्रक्रिया में परिवार रजिस्टर की वैधता की कोई पुष्टि नहीं की गई थी। साथ ही, न्यायालय ने यह भी प्रश्न उठाया था कि अंग्रेजी भाषा न बोल पाने वाले अधिकारी को क्या कार्यपालिका के पद पर नियुक्त किया जाना उपयुक्त है।

इस आदेश के विरुद्ध भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त व अन्य द्वारा उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई थी, जिस पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने 28 जुलाई 2025 को सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश पर अग्रिम आदेशों तक स्थगन प्रदान कर दिया है।

अदालत ने चार सप्ताह में उत्तरदाता पक्ष को नोटिस जारी कर जवाब प्रस्तुत करने को कहा है तथा याचिकाकर्ता को नोटिसों की प्रतिलिपि राज्य के अधिवक्ता के माध्यम से भेजने की स्वतंत्रता भी दी है।

हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. नवीन चन्द्र जोशी