भारत सर्वदा से ही ज्ञान का प्रकाशक तथा प्रसारक रहा है : प्रो मिथिला प्रसाद त्रिपाठी
मुख्य वक्ता का स्वागत


--संस्कृत में भारतीय ज्ञान परम्परा निहित है

प्रयागराज, 29 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ऋषि व्याख्यान माला में मुख्य वक्ता प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी कुलपति, महर्षिपाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय उज्जैन द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा का वैश्विक महत्त्व एवं साम्प्रतिक प्रासंगिकता विषय पर विशिष्ट व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा मे भारत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि भृ भरणे धातु एवं हिन्दी में भा अर्थात् ज्ञान में रत अर्थात् संलग्न रहने वाला भारत कहलाता है। अतः भारत सर्वदा से ही ज्ञान का प्रकाशक तथा प्रसारक रहा है।

प्रो त्रिपाठी ने बताया कि ज्ञान उत्पन्न न होकर प्रकट होता है। भारतीय ज्ञान का श्रीगणेश वेद से होता है। वेद का प्रथम देवता अग्नि हैं तथा यज्ञ की साधना भारतीय ज्ञान परम्परा का माध्यम है। इसीलिए ऋग्वेद के प्रथम मंत्र में अग्नि की स्तुति करते हुए ज्ञान प्राप्त की कामना की गई है। पुराण वेद के व्याख्या के रूप में भारतीय ज्ञान परम्परा में प्राप्त होते हैं।

उन्होंने कहा कि सत्य की खोज के लिए सूर्य की उपासना की गयी है। वैदिक मन्त्रों में समस्त संस्कृति निहित है। इसी प्रकार स्मृति ग्रन्थ भी वैदिक साहित्य के व्याख्या के रूप में तथा भारतीय परम्परा को आगे बढ़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इस प्रकार भारत सर्वदा से ही ज्ञान का स्रोत रहा है एवं मनुष्य को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता रहा है। संस्कृत में भारतीय ज्ञान परम्परा निहित है। और भारतीय ज्ञान परम्परा में साहित्य के अतिरिक्त आयुर्वेद, रसायन शास्त्र विज्ञान तथा गणित आदि विभिन्न प्रकार के विषयों का समावेश भी दिखायी पड़ता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रयाग नारायण मिश्र ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा समस्त विश्व को पुरातन काल से ही आलोकित करती रही है। विभाग के आचार्य प्रो.अनिल प्रताप गिरि ने स्वागत भाषण करते हुए कहा कि व्याख्यान के विशिष्ट विद्वान प्रोफेसर मिथिला प्रसाद त्रिपाठी संस्कृत एवं भारतीय ज्ञान परम्परा के विशिष्ट विद्वान हैं। आप पचास से अधिक ग्रन्थों के प्रणेता हैं तथा राष्ट्रपति पुरस्कार सहित बीस से अधिक राष्ट्रीय अन्तरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। आपने पच्चीस वर्षों से अधिक का अध्यापन कार्य करते हुए अनेक प्रतिष्ठित पदों को अलंकृत भी किया है।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. लेखराम दन्नाना ने एवं धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सह आचार्य डॉ विनोद कुमार ने किया। इस अवसर पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के आचार्य शिव प्रसाद शुक्ल, प्रो.राजेश कुमार गर्ग के अतिरिक्त डॉ निरूपमा त्रिपाठी, डॉ विनोद कुमार, डॉ रश्मि यादव, डॉ रजनी गोस्वामी, डॉ सन्त प्रकाश तिवारी, डॉ भूपेंद्र बालखंडे, डॉ तेज प्रकाश चतुर्वेदी, डॉ सन्दीप यादव, डॉ अनिल कुमार, डॉ सतरुद्र प्रकाश, नन्दिनी रघुवंशी, डॉ.मीनाक्षी जोशी, डॉ.आशीष कुमार त्रिपाठी, डॉ कल्पना कुमारी, डॉ ललित कुमार आदि प्राध्यापकगण एवं सैकड़ों की संख्या में शोध छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र