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- अब तक पांच लाख श्रद्धालु कर चुके हैं पद्मशेष नागदेवता के दर्शन
नर्मदापुरम, 29 जुलाई (हि.स.)। भगवान भोलेनाथ की नगरी पचमढ़ी में पद्मशेष नागदेवता के दर्शन करने के लिए साल में एक बार की जाने वाली नागद्वारी यात्रा 19 जुलाई से निरंतर जारी है। आज (मंगलवार को) नागपंचमी के अवसर इस यात्रा का समापन होगा। प्रारंभिक तिथि से नागपंचमी तक अनुमानित पांच लाख श्रद्धालु नाग देवता के दर्शन कर चुके हैं। अंतिम दिवस भी श्रद्धालुओ का अनवरत रेला लगा हुआ है।
इस 10 दिवसीय नागद्वारी मेले का आज संध्या आरती के उपरांत समापन किया जाएगा। मेला अवधि के दौरान इन 10 दिनों में प्रशासनिक अमला अपनी पूरी निष्ठा एवं तत्परता के साथ मेले के सफल संचालन हेतु दिन-रात तैनात रहा। पूरे मेले के दौरान पुलिस एवं होमगार्ड के जवानों द्वारा श्रद्धालुओं को हर संभव सहायता उपलब्ध कराई गई, जिससे उनकी यह यात्रा सफल एवं मंगलदायक हो सके। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा भी नियमित रूप से निरंतर समस्त सेक्टर पॉइंट्स का निरीक्षण कर व्यवस्थाओं को सुगम बनाया।
नागद्वारी मेले में आने वाले भक्त नागद्वार गुफा में विराजित भगवान पद्मशेष के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। भक्तों की मान्यता है कि पद्मशेष भगवान मन्नतों के देवता हैं। यही कारण है कि सात पहाड़ों को पार कर लगभग 20 किमी से अधिक की कठिन यात्रा कर श्रद्धालु नागद्वार गुफा तक पहुंचते हैं। नागद्वारी को लेकर कई रहस्यमयी कहानियां भी प्रचलित हैं। कई लोग इस गुफा को पाताल लोक का प्रवेश द्वार कहते हैं तो कई ऐसे भी श्रद्धालु हैं जो इसे भगवान शंकर के गले में विराजित नाग देवता का घर मानते हैं।
सदियों पुराना है नागद्वारी यात्रा का इतिहास
नागद्वारी गुफा का इतिहास आदिकाल से प्रचलित है। नागद्वार स्वामी सेवा ट्रस्ट मंडल के अध्यक्ष उमाकांत झाडे बताते हैं कि कई वर्षों से यह यात्रा अनवरत जारी है। भगवान महादेव ने भस्मासुर से बचने के लिए अपने गले के नाग को यहां छोड़ा था। उसी समय से यह नाग देवता पदम् शेष का स्थान रहा है। मुगल कालीन लेखों से लेकर अंग्रेज अफसर केप्टन जेम्स फॉरसिथ की बुक Higlands Of Central India सभी में नागद्वारी यात्रा का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।
पचमढी के वृद्धजनों द्वारा भी बताया जाता है कि सन 1800 में अंग्रेजों के साथ राजा भभूत सिंह की सेना का युद्ध हुआ था। तब अंग्रेजी सेना पर हमला करने के बाद राजा भभूत सिंह और उनकी सेना ने नागद्वारी के आसपास स्थित गुफाओं और कंदराओं को विश्राम करने के लिए उपयोग किया जाता था। इन्हीं गुफाओं में अंग्रेजों से लड़ने की गुप्त रणनीति बनाई जाती थी।
राजा भभूत सिंह का साथ देने के लिए आदिवासी और मराठा नाग देवता के दर्शन करने के लिए पैदल चलकर नागद्वारी आते थे। गुफा के पास काजरी क्षेत्र में आज भी शहीद सैनिकों की अनेकों समाधियां स्थित हैं। मराठा और आदिवासी परिवार उसी दौर से यहां यात्राएं कर रहे हैं। उसके बाद नागद्वारी गुफा में शिवलिंग स्थापित किया गया, महज पांच फीट चौड़ी और 100 फीट लंबी गुफा में नाग देवता की प्रतिमा का पूजन लोग करते हैं।
धार्मिक महत्व की कहानियां प्रचलित
पुजारी उमाकांत झाडे बताते हैं कि 'लगभग 200 वर्ष पहले महाराष्ट्र के राजा हेवत चंद और उसकी पत्नी मैनारानी ने नागदेवता से संतान प्राप्ति की मन्नत मांगी थी मन्नत पूरी होने पर नागद्वारी पहुंचकर नाग देवता की आंख में काजल लगाने का वचन दिया था। पुत्र के थोड़ा बड़े होने के बाद भी मैना रानी नागद्वारी नहीं गई। कई लोगों के समझाने के बाद रानी नागद्वारी यात्रा पर निकली। नाग देवता पहले बाल स्वरूप में मैना रानी के समक्ष आंख में काजल लगाने के लिए आए, लेकिन रानी ने काजल नहीं लगाया इसके बाद नाग देवता विशाल रूप में प्रकट हो गए। यह देख मैना रानी बेहोश हो गई। नाग देवता ने आक्रोशित होकर उनके पुत्र श्रवण कुमार को डस लिया। श्रवण कुमार की समाधि भी काजरी क्षेत्र में बनी है।
हर साल लाखों की संख्या में पहुंचते हैं श्रद्धालु
वर्ष में केवल एक बार 10 दिनों के लिए खुलने वाले नागद्वारी मंदिर के पुजारी के अनुसार नाग देवता से संतान की मन्नत मांगने लाखों लोग आते हैं और उनकी मुराद भी पूरी होती है। मन्नत पूरी होने पर लोग दोबारा भगवान को चढ़ावा चढ़ाने के लिए आते हैं। नाग पंचमी पर पदम्शेष भगवान के दर्शन और पूजन करने से तथा सर्पाकार पगडंडियों पर चलकर भगवान के दर्शन करने से कालसर्प दोष दूर होता है, इस कारण बड़ी संख्या में यहां लोग कालसर्प दोष दूर करने के लिए आते हैं।
पदमशेष (वासुकी नाग) का परिवार
श्रद्धालुओं की मान्यता है कि पदमशेष वासूकी नाग अपनी देवियों चित्रशाला एवं चिंतामणी के साथ निवास करते थे। जो कि मुख्य मंदिर से पहले से प्रतिष्ठित हैं, यहां पर पूजा के रूप में हलवा एवं नारियल चढाया जाता है तथा अग्नी द्वार एवं स्वर्गद्वार में नींबू की भेट दी जाती है। भक्तों का कहना है कि यहाँ मांगी गई हर मान्यता पूर्ण होती है।
साल में बस एक बार मिलती है यात्रा की अनुमति
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का जंगल होने के कारण नाग पंचमी के मौके पर सिर्फ 10 दिनों के लिए मार्ग खोला जाता है। अन्य दिनों में प्रवेश वर्जित होता है। श्रद्धालुओं को साल में सिर्फ एक बार ही नागद्वारी की यात्रा और दर्शन का सौभाग्य मिलता है। यहां हर साल नागपंचमी के मौके पर एक मेला लगता है। जिसमें लोग पचमढी से जलगली, नागफनी, कालाझाड, चिंतामन, पश्चिमद्वार होते हुए कई किलोमीटर पैदल चलकर नागद्वार पहुंचते हैं। जिसमें अधिकतर संख्या महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के भक्तों की रहती है। कहा जाता है कि अमरनाथ यात्रा के समान ही नागद्वारी यात्रा भी दुर्गम रास्तों को पार कर भगवान के मंदिर तक पहुंचने वाली धर्मिक यात्रा है। इसलिए इस यात्रा को मध्य प्रदेश की अमरनाथ यात्रा भी कहा जाता है।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर