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मुंबई, 29जुलाई ( हि.स. ) । एक समय था जब मानसिक रूप से बीमार लोग सिर्फ़ चारदीवारी में कैद रहते थे... भुलाए गए, उपेक्षित और उपेक्षित! लेकिन अब समय बदल रहा है... ठाणे क्षेत्रीय मनोरोग अस्पताल के रोगियों ने केंद्र सरकार के स्किल इंडिया सर्टिफिकेट के ज़रिए समाज में फिर से खड़े होने के लिए आत्मविश्वास के साथ पहला कदम बढ़ाया है। रोगियों को आभूषण निर्माण का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया गया है।
जब कोई मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति घर में होता है, तो परिवार हमेशा तनाव में रहता है। इसलिए, उन्हें हमेशा इस बात की चिंता रहती है कि भविष्य में उनका क्या होगा, लेकिन ठाणे क्षेत्रीय मनोरोग अस्पताल इन रोगियों के लिए सहारा बन रहा है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. नेताजी मुलिक के मार्गदर्शन में और जन शिक्षण संस्थान और 'स्किल इंडिया आइकॉन' फाउंडेशन की संयुक्त पहल के माध्यम से, विभिन्न आयु वर्ग के 20 मानसिक रूप से बीमार रोगियों को 90 दिनों का विशेष आभूषण निर्माण प्रशिक्षण दिया गया। यह सिर्फ़ प्रशिक्षण नहीं था... यह एक मानव के रूप में उनके पुनर्जन्म की शुरुआत थी!
कभी-कभी अस्पताल में भर्ती मरीज़ों को उनके रिश्तेदार अस्पताल में ही छोड़ जाते हैं। कुछ अपनी भाषा खो चुके होते हैं, तो कुछ अपनी आत्मा खो चुके होते हैं। लेकिन इस प्रशिक्षण ने उनकी आँखों में एक अलग ही चमक ला दी।
प्रमाणपत्र वितरण समारोह उनके जीवन का 'गर्व का क्षण' था। जब हर मरीज़ ने प्रमाण पत्र पकड़ा, तो उनकी आँखों में आँसू थे और मन में एक विचार था, मेरा जीवन अभी खत्म नहीं हुआ है... अभी भी कुछ संभव है!
इस प्रशिक्षण में उन्हें व्यावसायिक कौशल, संचार, आत्मनिर्भरता और रोज़गार कौशल सिखाया गया। उपचार विभाग में डॉ. सुधीर पुरी, डॉ. नीलिमा बागवे, डॉ. पायल सुरपम, डॉ. प्रियतम दंडवते, डॉ. अंकिता शेटे के अथक प्रयासों से, ये मरीज़ अब नई उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
चिकित्सालय के अधीक्षक नेताजी मुलिक ने कहा कि इस प्रशिक्षण से, मानसिक रूप से बीमार मरीज़ अब सिर्फ़ इलाज करवाने वाले मरीज़ नहीं रह गए हैं। वे अब अपना जीवन ख़ुद बनाने के लिए तैयार हैं। अगर समाज उन्हें प्यार करे, तो वे न सिर्फ़ संख्या में बढ़ेंगे, बल्कि नए सिरे से खिलेंगे, ऊँचा उठेंगे... और दिखाएँगे कि मानसिक बीमारी अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का अवसर है! जब शिक्षण संस्थान की निदेशक मनीषा हिंडालेकर का कहना है किसमय की माँग है कि इन रोगियों का समाज में पुनर्वास किया जाए। उन्हें एक मौका दीजिए... वे भी आपकी और मेरी तरह इंसान हैं!
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हिन्दुस्थान समाचार / रवीन्द्र शर्मा