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-बाघों की दहाड़ : मध्यप्रदेश में संरक्षण की एक जीवंत गाथा
भोपाल, 29 जुलाई (हि.स.)। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंगलवार को कहा कि बाघ केवल संख्या नहीं, बल्कि स्वाभिमान, स्वतंत्रता और सह-अस्तित्व का प्रतीक है। दुनिया आज जब अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाती है, तब मध्य प्रदेश इसे केवल उत्सव नहीं बल्कि उपलब्धि की पुनः पुष्टि के रूप में देखता है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव आज कुशाभाऊ ठाकरे सभागार, भोपाल में आयोजित राज्य स्तरीय बाघ उत्सव कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा
कि देश में कुल 3,682 बाघों में से आज 800 से अधिक बाघ मध्य प्रदेश में हैं। यह तथ्य “टाइगर स्टेट” की उपाधि को न केवल परिभाषित करता है बल्कि इसे नीति, नवाचार और प्रकृति के प्रति संवेदनशील नेतृत्व का उदाहरण भी बनाता है। लेकिन यह संख्या महज गणना नहीं है, बल्कि एक सतत, जमीनी, और वैज्ञानिक प्रयास का परिणाम है। उन्होंने कहा कि बाघ केवल संख्या नहीं, बल्कि स्वाभिमान, स्वतंत्रता और सह-अस्तित्व का प्रतीक है। उन्होंने बाघ संरक्षण की दिशा में किए जा रहे वन विभाग के सार्थक प्रयासों के लिए सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बधाई दी।
क्यों नहीं बाघ है जंगल का असली राजा?
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाया जो सिर्फ सांकेतिक नहीं, बल्कि विचारोत्तेजक भी है। उन्होंने पूछा, “हम लॉयन को जंगल का राजा क्यों कहते हैं, जबकि वह झुंड में रहता है। शिकार मादा करती है और वह अधिकतर आराम करता है और खाने में सबसे आगे रहता है? दूसरी ओर बाघ अकेले चलता है। अपने दम पर शिकार करता है। अपने स्वाभिमान के साथ जीता है और आनन्द से जीवन व्यतीत करता है। उसे हम क्यों नहीं जंंगल का राजा मानते हैं?”
उन्होने कहा, यह दृष्टिकोण केवल भाषण नहीं, बल्कि पर्यावरणीय विमर्श को बदलने वाली सोच है। बाघ अपनी टेरिटरी में अकेला घूमता है, शिकार करता है, इस तरह से एकाकी होते हुए भी आत्मनिर्भर है। उसे ईश्वर ने ऐसा जीन (डीएनए) दिया है जिससे वह अपनी ही पहचान (बच्चों) को सूंघ कर पहचान लेता है। यह आत्म-चेतना ही उसे वास्तविक ‘राजा’ बनाती है। इसलिये शायद बाघ मध्य प्रदेश की वननीति का भी केंद्र बना और मध्य प्रदेश ने इसे केवल एक प्रजाति के संरक्षण की तरह नहीं बल्कि विचार की क्रांति के रूप में लिया और पर्यटन के साथ यानी मनुष्य और वन्य जीव के सह अस्तित्व के साथ जोड़ा है। उन्होंने कहा, क्यों न हम उसे राजा मानें, हम तो अपने नंबर टाइगर को दें।
उन्होंने कहा कि हमें अपने सभी टाइगर अभ्यारण्यों पर गर्व है। जिसमें कि हमें भोपाल पर अत्यधिक गर्व है, यह सह अस्तित्व का काम करता है, जहां जानवर और मनुष्य दोनों ही एक साथ खुशी-खुशी रहते मिल जाते हैं, दिन में जिस सड़क पर इंसान चल रहे हैं, रात को उसी पर बाघ विचरण करता हुआ यहां मिलता है। भोपाल से लगा हुआ रातापानी अभ्यारण्य आठवां और नवां माधव नेशनल पार्क यहां घोषित हुए हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर में शीघ्र ही रानी दुर्गावती के नाम से जू तैयार होने जा रहा है। इसी प्रकार का कार्य उज्जैन में भी होना है। वहीं वे मध्य प्रदेश में सफल रहे चीता प्रयोग का जिक्र करना भी वे नहीं भूले। उन्होंने कहा, चीता जैसा प्रयोग जो सब जगह फेल हो रहा था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने मप्र पर भरोसा किया और वह यहां हमारे वन विभाग के प्रयासों से सफल हुआ है। चीता आए 20, इनमें से कुछ
जलवायु परिवर्तन के कारण से नहीं भी रहे, बहुत हो हल्ला मचा, लेकिन आज 28 गिन लो, अपने पास हैं। निश्चित ही नया प्रयोग बहुत हिम्मत मांगता है, कभी तो नए प्रयोग करने की हिम्मत रखो। आज ये चीते सब मौसम में सब प्रकार से जीना सीख रहे हैं। उन्होंने कहा कि मप्र का वन विभाग अच्छा काम कर रहा है, हमारे जंगल बढ़ रहे हैं, वन्य जीव बढ़ रहे हैं। ऐसे में सरकार की ओर से उसे संसाधनों की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बाघ दिवस पर कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में बाघ संरक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए सांचे से बाघ की प्रतिकृति निर्मित की। पेंच टाइगर रिजर्व द्वारा विकसित बाघ, तितलियां और गिद्ध गणना रिपोर्ट पुस्तक एवं वन्य जीव कैलेंडर का विमोचन किया। साथ ही उन्होंने रिमोट का बटन दबाकर वन विभाग के मोबाइल एप का लोकार्पण भी किया।
इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने कई श्रेष्ठ वन कर्मियों को मप्र के वन क्षेत्र के लिए उत्कृष्ट कार्य के लिए पुरस्कृृत किया गया। कार्यक्रम के दौरान लाड़ली बहनों ने स्नेह पूर्वक यहां अपने मुख्यमंत्री डॉ. यादव को राखी भी बांधी। इसके अलावा उन्होंने वन्य जीव संरक्षण गतिविधियों पर केंद्रित प्रदर्शनी का शुभारंभ कर अवलोकन किया। उक्त परिसर में 3-3 वन्य जीव वाहन और दो डॉग स्क्वाड वाहनों का लोकार्पण किया और चीता निश्चेतन तथा प्रबंधन पर विकसित मैन्युअल का विमोचन भी किया।
इस बाघ महोत्सव में मध्य प्रदेश के सभी वन विभाग के प्रमुख पदाधिकारी मौजूद थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी