सम्पूर्णानन्द संस्कृत विवि में डिजिटलीकरण परियोजना शुरू
डिजिटलीकरण परियोजना के शुभारंभ के अवसर पर अतिथि


सनातन धर्म विश्व विश्वविद्यालय ट्रस्ट (कोविलूर मठ) ने दिया सहयोग

वाराणसी,29 जुलाई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय ज्ञान की अमूल्य धरोहर को संरक्षित एवं विश्वव्यापी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। मंगलवार को विश्वविद्यालय में डिजिटलीकरण परियोजना का औपचारिक शुभारंभ किया गया। यह परियोजना सनातन धर्म विश्व विश्वविद्यालय ट्रस्ट (कोविलूर मठ) के सहयोग से आरंभ की गई है, जो भारतीय कला, संस्कृति, परम्परा और ज्ञान-संपदा के संरक्षण के लिए निरन्तर कार्यरत है। कार्यक्रम के अन्तर्गत विश्वविद्यालय को एक अत्याधुनिक स्कैनर मशीनरी भेंट की गई, जिसके माध्यम से संस्कृत के दुर्लभ एवं प्राचीन ग्रन्थों का डिजिटलीकरण प्रारंभ होगा।

यह पायलट प्रोजेक्ट भविष्य में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) योजनाओं के अंतर्गत और अधिक विस्तार पाएगा। ट्रस्ट का लक्ष्य है कि संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में हर महीने लगभग 1000 अमूल्य ग्रन्थों का डिजिटलीकरण हो, जिससे आने वाली पीढ़ियों के लिए भारतीय संस्कृति और शास्त्रीय ज्ञान का सुरक्षित भंडारण सुनिश्चित हो सके।

इस अवसर पर कोविलूर मठ के पीठाधीश्वर कोविलूर स्वामी की उपस्थिति में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने वैदिक अनुष्ठान के साथ परियोजना को क्रियाशील किया। इस दौरान कुलपति प्रो. शर्मा ने कहा कि “यह पहल न केवल ग्रन्थों के भौतिक संरक्षण का माध्यम बनेगी, बल्कि डिजिटल युग में भारतीय ज्ञान परंपरा को विश्व पटल पर प्रसारित करने की दिशा में एक क्रान्तिकारी कदम साबित होगी।” यह परियोजना सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय को भारतीय संस्कृति एवं शास्त्र परम्परा के डिजिटल केंद्र के रूप में स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। कार्यक्रम में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्र,विश्वविद्यालय के कुलसचिव राकेश कुमार शुक्ल भी मौजूद रहे।

ट्रस्ट ने तमिल भाषा की 7300 से अधिक प्राचीन पुस्तकों का किया डिजिटलीकरण

सनातन धर्म विश्व विश्वविद्यालय ट्रस्ट ने विगत सात वर्षों से तमिल भाषा की 7300 से अधिक प्राचीन पुस्तकों का डिजिटलीकरण किया और प्रतिमाह 1000 नई पुस्तकों को डिजिटल स्वरूप में संरक्षित करने के लक्ष्य की ओर अग्रसर है। अब यह सेवा संस्कृत ग्रन्थों के संरक्षण तक विस्तारित की जा रही है, जिससे भारत की शास्त्र-संपदा को वैश्विक स्तर पर डिजिटल माध्यम से उपलब्ध कराया जा सके।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी