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- हरीश शिवनानी
सावन का महीना भारत में सनातनी संस्कृति-धर्मावलंबियों के लिए पावन और महत्वपूर्ण माना जाता है। पूरे देश में शिव मंदिरों में महीने भर पूजा-अर्चना के कार्यक्रम चलते रहते हैं। इस बार सावन का महीना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशिष्ट कारण से चर्चा में आ गया है। इस सावन माह में दो बौद्ध देशों के बीच सशस्त्र तांडव छिड़ गया है। इसका कारण हैं दो शिव मंदिर। थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर स्थित प्रासात प्रेह विहियार और प्रासात ता मुएन थोम नामक ये शिव मंदिर करीब एक हजार वर्ष प्राचीन हैं। दोनों देश बौद्ध बहुल हैं, लेकिन मंदिर की हिंदू विरासत दोनों के लिए सांस्कृतिक महत्व रखती है। थाईलैंड में हिंदू परंपरा और बौद्ध धर्म का मिश्रण देखा जाता है, जबकि कंबोडिया इसे अपनी खमेर पहचान से जोड़ता है। भारत की तरह वहाँ भी सावन मास में इनका महत्व बढ़ जाता है।
दो बौद्ध देशों के बीच शिव मंदिरों को लेकर संघर्ष यह पुष्ट करता है कि आज भी यहाँ के निवासियों के मन-मस्तिष्क में अपनी मूल, प्राचीन सनातन संस्कृति की जड़ों के प्रति कितना सम्मान, कितनी तृष्णा है। जो भारतवर्ष सनातन हिन्दू संस्कृति और हिन्दू सभ्यता का जन्मदाता है, वहां अपने आराध्य श्रीराम के एक मंदिर के लिए 500 वर्ष तक लम्बा संघर्ष करना पड़ा। थाईलैंड और कम्बोडिया इन शिव मंदिरों पर अपना स्वामित्व जताने के लिए सौ साल से ज्यादा संघर्षरत हैं। दोनों खमेर कालीन हिंदू मंदिर हैं, जो लगभग 153 किमी की दूरी पर स्थित हैं और लंबे समय से दोनों देशों के बीच तनाव का केंद्र रहे हैं।
प्रासात प्रेह विहियार शिव मंदिर और इसके आसपास के क्षेत्र का विवाद थाईलैंड और कंबोडिया के बीच एक जटिल मुद्दा है। धार्मिक स्थल के साथ यह दोनों देशों की राष्ट्रीय पहचान, गौरव, ऐतिहासिक दावों और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा है। इस मंदिर की पांच स्तरीय चढ़ाई आत्मिक उत्थान का प्रतीक है। यह मंदिर थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर डोंगरेक पर्वत शृंखला में स्थित है। प्रासात प्रेह विहियार मंदिर का निर्माण 9 वीं से 11वीं शताब्दी के बीच खमेर साम्राज्य के दौरान हुआ। खमेर वास्तुशिल्प वाले इस मंदिर को खमेर राजा सूर्यवर्मन प्रथम और सूर्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल में बनवाया गया, जो अंगकोर वाट जैसे प्रसिद्ध मंदिरों के लिए भी जाने जाते हैं। इस मंदिर को ‘शिखरेश्वर’ भी कहा जाता है। मंदिर में शिवलिंग और नंदी की प्रतिमा स्थापित है, जो हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा को दर्शाती है।
प्रासात प्रेह विहियार मंदिर की भौगोलिक स्थिति विवाद का प्रमुख कारण है। मंदिर तक पहुंच का मुख्य रास्ता थाईलैंड की ओर से है, हालांकि पूर्वी और पश्चिमी ओर से कंबोडिया के शहरों से जुड़े दो रास्ते भी हैं। कंबोडियाई स्वयं को खमेर साम्राज्य के वंशज मानते हैं और इस मंदिर को अपनी सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान मानते हैं। वहीं,थाईलैंड में इसे हिंदू और बौद्ध विरासत के हिस्से के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह क्षेत्र पहले स्याम (थाईलैंड का पुराना नाम) के प्रभाव में था। 1863 से 1953 तक कंबोडिया फ्रांसीसी उपनिवेश के अधीन था। 1907 में फ्रांस और स्याम (थाईलैंड) के बीच एक समझौता हुआ, जिसमें डोंगरेक पर्वत क्षेत्र और प्रासात प्रेह विहियार
मंदिर को कंबोडिया के हिस्से के रूप में चिह्नित किया गया। जिसे थाईलैंड ने स्वीकार नहीं किया। इस सीमा निर्धारण ने विवाद की नींव रखी, क्योंकि थाईलैंड का दावा था कि मंदिर और इसके आसपास का क्षेत्र उनके सुरीन और सिसाकेट प्रांतों का हिस्सा है। वर्ष 1959 में कंबोडिया विवाद को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ले गया। 1962 में न्यायालय ने मंदिर कंबोडिया के क्षेत्र में माना। थाईलैंड ने फैसले को स्वीकार नहीं किया। जुलाई 2008 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर का दर्जा दिया, जिसका भी थाईलैंड ने विरोध किया। इसके बाद सीमा पर सैन्य तनाव बढ़ गया और 2008 से 2011 तक दोनों देशों के सैनिकों के बीच कई झड़पें हुईं। 2011 में यह संघर्ष चरम पर पहुंचा, जिसमें 36,000 लोग विस्थापित हुए और कम से कम 28 लोग मारे गए।
उधर, प्रासात प्रेह विहियार मंदिर की तरह ही प्रासात ता मुएन थोम प्राचीन मंदिर भी विवाद का बिंदु है। प्रासात ता मुएन थोम की खास बात यह है कि इसका शिवलिंग प्राकृतिक चट्टान से बना है और ‘स्वयंभू शिवलिंग’ की तरह पूजा जाता है। थाईलैंड के सुरिन प्रांत और कंबोडिया के ओडार मींचेई प्रांत की सीमा पर प्यह मंदिर 12वीं शताब्दी में खमेर सम्राट उदयादित्यवर्मन द्वितीय के शासनकाल में बना। प्रासात ता मुएन थोम मंदिर को लेकर तनाव 13 फरवरी 2025 से शुरू हुआ। जब कंबोडियाई सैनिकों ने मंदिर में जाकर अपना राष्ट्रगान गाया, जिसे थाई सैनिकों ने सीमा उल्लंघन माना और विवाद शुरू हो गया। इसके बाद 28 मई 25 में एमराल्ड ट्रायंगल क्षेत्र में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत के बाद दोनों देशों के बीच फिर तनाव बढ़ गया। इस घटना के बाद एक रोचक वाकया हुआ। 28 मई को हुए टकराव के बाद तनाव कम करने के उद्देश्य से थाईलैंड की प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न शिनावात्रा ने कंबोडिया के पूर्व नेता हुन सेन के साथ फोन पर बातचीत की। जिसमें पैतोंगटार्न ने थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद पर चर्चा की। इस बातचीत में उन्होंने कथित तौर पर थाई सेना के कमांडर की आलोचना की और हुन सेन को ‘अंकल’ कहकर संबोधित किया। इस बात को थाईलैंड में अपमानजनक और ‘राष्ट्र के सम्मान’ के विरुद्ध मानते हुए इसे प्रधानमंत्री पद की नैतिकता का उल्लंघन माना गया और 1 जुलाई को थाईलैंड की संवैधानिक अदालत ने प्रधानमंत्री शिनावात्रा को निलंबित कर दिया।
इसके बाद 23 जुलाई को एक थाई सैनिक लैंडमाइन की चपेट में आ गया और अब विवाद सीधे सैन्य संघर्ष में बदल गया और 24 जुलाई से थाईलैंड और कंबोडिया टैंकों, तोपों, राकेटों और फौजों को साथ लेकर युद्ध मैदान में आ गए हैं। राकेट वार शुरू हो गई है। एक दूसरे पर बम बरसाए जा रहे हैं, सेनाएं आमने सामने मोर्चा संभाले खड़ी हैं। अब तक 40 लोगों की मौत हो चुकी है, करीब डेढ़ लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश