आधुनिकता की दौड़ में सावन के हिडोरे साथ लोकसंगीत भी विलुप्ति के कगार पर
भिंड, 28 जुलाई (हि.स.)। झूला तो पड़ गए अमुआ की डाल पे जी, चलो री सहेली, झूला तो झूलें बाग में जी। एसे सावन के मलहार गीतो से “साराजहां” गूँजता था, जिनका अब प्रायोजित कायक्रमो तक सीमित हो जाना समग्र समाज के लिए चिंतनीय है,सावन तो आता है पर अपने पुराने
Invalid email address
संपर्क करें
हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी न्यूज एजेंसी एम-6, भगत सिंह मार्केट, गोल मार्केट, नई दिल्ली- 110001