जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एकीकृत राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने का गुलाम नबी आजाद ने किया आह्वान
जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एकीकृत राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने का गुलाम नबी आजाद ने किया आह्वान


जम्मू, 26 जुलाई (हि.स.)। डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के अध्यक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक एकीकृत राजनीतिक दृष्टिकोण अपनाने का आह्वान किया है।

आज़ाद ने जम्मू-कश्मीर में विकास की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि जहाँ केंद्रीय परियोजनाएँ प्रगति पर हैं, वहीं राज्य-स्तरीय पहल पूरी तरह से रुकी हुई हैं।

आज़ाद ने श्रीनगर में संवाददाताओं से कहा कि यहाँ तक कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने भी संसद में इसे (राज्य का दर्जा) बहाल करने का वादा किया है। कुछ गलतियाँ होती रहीं जिसके कारण देरी हुई। उन्होंने कहा कि पहले सरकार के सामने माँग रखी जानी चाहिए लेकिन लोग तुरंत सड़कों पर उतर आते हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए, न कि सिर्फ़ जनता का ध्यान भटकाने के लिए।

अलग राज्य की मांग को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक लामबंदी पर बोलते हुए आज़ाद ने ज़ोर देकर कहा कि विरोध प्रदर्शन करना सभी का अधिकार है लेकिन ऐसे कदमों से पहले केंद्रीय नेतृत्व के साथ सार्थक बातचीत होनी चाहिए थी।

विरोध प्रदर्शन दो तरह के होते हैं प्रतीकात्मक और लक्ष्य-उन्मुख। लेकिन सड़कों पर उतरने से पहले राजनीतिक नेतृत्व को दिल्ली से बात करनी चाहिए थी। इस मुद्दे पर हमें बिखराव की नहीं बल्कि एकता की ज़रूरत है।

आज़ाद ने ज़ोर देकर कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग पर सभी समुदायों और क्षेत्रों में व्यापक सहमति है। उन्होंने कहा कि राज्य के विचार का कोई विरोध नहीं है चाहे वह जम्मू-कश्मीर में हो या किसी भी धार्मिक समूह में।

नेशनल कॉन्फ्रेंस द्वारा हाल ही में अलग राज्य के मुद्दे पर एक विशेष सत्र बुलाने के आह्वान पर आज़ाद ने इस विचार का स्वागत करते हुए कहा कि विधानसभा सभी दलों के लिए एक साझा मंच है और इस मामले को पक्षपातपूर्ण नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए।

आज़ाद ने जम्मू-कश्मीर में विकास कार्यों पर भी चिंता जताई और कहा कि केंद्रीय परियोजनाएँ तो प्रगति पर हैं लेकिन राज्य स्तरीय पहल पूरी तरह से रुकी हुई हैं।

उन्होंने पूछा कि स्थानीय प्रशासन द्वारा विकास नगण्य है। सड़क, पानी और बिजली जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के ज़रिए मज़दूरों को आसानी से रोज़गार दिया जा सकता है। मैंने 15 ज़िलों का दौरा किया है। लोग कहते हैं कि एक फुटपाथ भी नहीं बन रहा है। अगर सरकार है तो ज़मीन पर कुछ भी क्यों नहीं दिख रहा है।

राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता ने संसद की कार्यवाही में बार-बार व्यवधान की भी आलोचना की। अपने कार्यकाल को याद करते हुए आज़ाद ने कहा कि मैंने हमेशा संसद के कामकाज का समर्थन किया है। यहाँ तक कि जब लोकसभा बाधित होती थी तब भी विपक्ष के नेता के रूप में मेरे कार्यकाल के दौरान राज्यसभा अपनी सामान्य कार्यवाही जारी रखती थी।

जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से स्थगित चुनावों की वकालत करते हुए आज़ाद ने कहा कि पंचायत, नगरपालिका और स्थानीय निकाय चुनाव जमीनी स्तर पर महत्वपूर्ण रोजगार पैदा कर सकते हैं और इन्हें जल्द ही कराया जाना चाहिए।

डीपीएपी के आंतरिक घटनाक्रम पर उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ पूर्व मंत्रियों और विधायकों ने पाला बदल लिया है और इसे भारत की राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा बताया लेकिन कहा कि पार्टी का जमीनी स्तर पर जनाधार लगातार बढ़ा है।

22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर फारूक अब्दुल्ला द्वारा उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के इस्तीफे की मांग पर प्रतिक्रिया देते हुए आज़ाद ने कहा कि ऐसी चूकें अन्य नेताओं के कार्यकाल में भी हुई थीं। उन्होंने पूछा कि वे अब उन घटनाओं को क्यों भूल रहे हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / सुमन लता