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श्रीनगर 26 जुलाई (हि.स.)। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने श्रीनगर में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय और जम्मू-कश्मीर विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा “रक्षा कार्मिक और जनजातीय के लिए न्याय के संवैधानिक दृष्टिकोण की पुष्टिः अंतराल को पाटना” विषय पर आयोजित एक कार्यक्रम पर उत्तर क्षेत्र क्षेत्रीय सम्मेलन को संबोधित किया।
अपने संबोधन में उपराज्यपाल ने कानूनी दिग्गजों, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय, जम्मू-कश्मीर विधिक सेवा प्राधिकरण के अधिकारियों और सम्मेलन से जुड़े सभी लोगों को बधाई दी। उन्होंने कारगिल युद्ध के वीरों को भी श्रद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की गारंटी देता है और न्याय प्रदान करने का एक पहलू सभी नागरिकों के लिए न्याय तक पहुंच है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि न्याय सबसे गरीब व्यक्ति तक पहुंचे जो इसका सबसे अधिक हकदार है।
उपराज्यपाल ने कहा कि न्याय प्रणाली भारत की आत्मा में गहराई से समायी हुई है और राष्ट्र की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में न्यायालय केवल न्याय का कार्यालय नहीं बल्कि न्याय का एक पवित्र मंदिर है जो बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए समान न्याय और कानूनी व्यवस्था तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है।
उपराज्यपाल ने राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि सैन्य कर्मियों, आदिवासी समुदाय, समाज के वंचित और कमजोर वर्गों तक हर संभव कानूनी सहायता समय पर पहुँचे ताकि उनका जीवन आसान हो और संविधान द्वारा प्रदत्त उनके अधिकारों की रक्षा हो सके।
उपराज्यपाल ने जम्मू-कश्मीर में सामाजिक और आर्थिक न्याय स्थापित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में किए गए प्रमुख संरचनात्मक सुधारों पर प्रकाश डाला।
उपराज्यपाल ने कहा कि 2019 से पहले अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 जैसे दो महत्वपूर्ण केंद्रीय कानूनों सहित विभिन्न केंद्रीय कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं थे।
अब ये कानून लागू हो गए हैं और आदिवासी समुदाय सशक्त हुआ है। हम आदिवासी आबादी के सदस्यों को मुफ्त न्याय प्रदान करके न्याय तक पहुँच सहित सभी संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें सक्षम कानूनी सहायता उपलब्ध कराई जाएगी।
उपराज्यपाल ने अपने संबोधन में सशस्त्र बलों के सदस्यों के लिए न्याय की सुगमता सुनिश्चित करने हेतु जम्मू-कश्मीर प्रशासन द्वारा उठाए गए प्रमुख कदमों पर बात की और जनजातीय समुदाय को कानूनी सहायता प्रदान करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
उपराज्यपाल ने कहा कि सैनिकों को कानूनी सहायता प्रदान करने हेतु, जिला सैनिक बोर्ड के सचिव को जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण के सदस्य के रूप में शामिल करने हेतु जम्मू-कश्मीर कानूनी सेवा प्राधिकरण, नियम 2020 में संशोधन किया गया है।
इसके अलावा उपराज्यपाल सैनिक सहायता केंद्र की स्थापना की गई है और यह भारतीय सशस्त्र बलों के उन सैनिकों जो जम्मू-कश्मीर में तैनात हैं या जो केंद्र शासित प्रदेश के हैं और वर्तमान में देश के अन्य हिस्सों में सेवारत हैं द्वारा सामना की जाने वाली नागरिक शिकायतों के निवारण की सुविधा के लिए एक समर्पित संस्थागत तंत्र है।
उपराज्यपाल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्याय में देरी का अर्थ है वंचित और कमजोर वर्गों की मदद करने में शामिल जमीनी स्तर पर कानूनी सेवा प्राधिकरणों के नैतिक कर्तव्यों का हनन।
उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि इस महत्वपूर्ण सम्मेलन में जिला स्तर पर आ रही चुनौतियों के समाधान के साथ-साथ आम नागरिकों को संविधान के तहत उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए आवश्यक हस्तक्षेप पर भी चर्चा की जाएगी।
इस अवसर पर रक्षा कर्मियों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के लिए समर्पित विधिक सेवा योजना, एनएएलएसए वीर परिवार सहायता योजना 2025 का शुभारंभ किया गया। इस योजना के अंतर्गत राज्य और जिला सैनिक बोर्डों के अंतर्गत विधिक सेवा क्लीनिक स्थापित किए जाएँगे ताकि वीर परिवार को विधिक सेवाएँ और सहायता प्रदान की जा सके।
इस कार्यक्रम में रक्षा कार्मिक मामला प्रबंधन प्रणाली; जनजातीय समुदायों के लिए विशेष संवाद विधिक इकाइयाँ, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्य सैनिक बोर्डों और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के ज़िलों में जिला सैनिक कल्याण बोर्डों में विधिक सेवा सहायता केंद्र, लेह हवाई अड्डे पर लोगो और जनजातीय कियोस्क का अनावरण, लद्दाख की जनजातीय आबादी के लिए मोबाइल चिकित्सा शिविर सहित विभिन्न पहलों का शुभारंभ भी हुआ।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा अर्ध-विधिक स्वयंसेवकों के रूप में नियुक्ति के प्रमाण पत्र भी वीर नारियों और पूर्व सैनिकों को सौंपे गए।
इस अवसर पर प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति सूर्यकांत, केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण पल्ली, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं जम्मू-कश्मीर विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजीव कुमार, जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं लद्दाख विधिक सेवा प्राधिकरण की कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति सिंधु शर्मा, उत्तरी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ, लेफ्टिनेंट जनरल प्रतीक शर्मा, भारत के सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश और विभिन्न राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य न्यायाधीश उपस्थित थे।
हिन्दुस्थान समाचार / बलवान सिंह