कन्नड़ भाषा का ऐतिहासिक विकास, शिलालेख से डिजिटल युग तक
Kannada


बेंगलुरु, 26 जुलाई (हि.स.)। हाल ही में हुए भाषाई विवादों की पृष्ठभूमि में, कन्नड़ भाषा के समृद्ध इतिहास पर एक बार फिर विचार करना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। लगभग दो हजार वर्षों की साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत वाली यह द्रविड़ भाषा आज 5 करोड़ से अधिक लोगों की मातृभाषा है। आज, कन्नड़ न केवल कर्नाटक में, बल्कि पड़ोसी राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल और कुछ हद तक गोवा में भी बोली जाती है।

वास्तव में कन्नड़ भाषा का लिखित इतिहास 5वीं शताब्दी ईस्वी में मिलता है। कर्नाटक के हसन जिले के हल्मिदी गांव में प्राप्त शिलालेख को कन्नड़ की पहली लिखित अभिव्यक्ति माना जाता है। इसी काल में प्राकृत के प्रभाव से मुक्त होकर कन्नड़ एक प्रशासनिक भाषा के रूप में उभरी।इसके उपरांत 10वीं शताब्दी में राष्ट्रकूट और चालुक्य राजवंशों के काल में कन्नड़ साहित्य ने उल्लेखनीय प्रगति की। पम्प के 'आदिपुराण' और 'विक्रमार्जुन विजय', रन्न के 'शंभूपरिणय' और पोंन के 'शांतिपुराण' जैसे काव्यग्रंथों ने साहित्य में नई चेतना लाई। इन तीन कवियों को 'कन्नड़ के रत्नत्रय' के रूप में सम्मानित किया गया है।

कन्नड़ भाषा को 12वीं शताब्दी में बसवन्ना, अक्का महादेवी और अल्लमा प्रभु जैसे संत कवियों ने वचन साहित्य के माध्यम से आध्यात्मिकता और सामाजिक न्याय को एक नई दिशा दी। इस काल में कन्नड़ भाषा ने आमजन के जीवन से गहरे जुड़ाव पाया।

विजयनगर से मैसूर तक संघर्ष और पुनरुत्थान

विजयनगर साम्राज्य के दौरान कन्नड़ को क्षेत्रीय भाषाओं की प्रतिस्पर्धा में अपनी जगह बनाए रखने में कठिनाई हुई, परंतु लोक साहित्य, कथाएं और यक्षगान के माध्यम से भाषा जीवित रही। मैसूर के वोडेयार राजाओं, विशेषकर चिक्कदेवराजा वोडेयार के संरक्षण में साहित्यिक पुनर्जागरण हुआ।

औपनिवेशिक प्रभाव और आधुनिकता की ओर

ब्रिटिश शासनकाल में कन्नड़ शिक्षा, गद्य लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में नई राहें खुलीं। बी.एम. श्रीकंठैया, कुवेंपू और डी.आर. बेंद्रे जैसे कवियों ने काव्यभाषा को आधुनिक रूप प्रदान किया। कुवेंपू ने विशेष रूप से कन्नड़ साहित्य को एक नव्य रूप दिया।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा, गौरव की मान्यता

2008 में भारत सरकार ने कन्नड़ को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया, जो इसकी प्राचीनता, साहित्यिक विशिष्टता और सांस्कृतिक महत्त्व का प्रमाण है।

वर्तमान में कन्नड़ मंच से मोबाइल तक

आज के डिजिटल युग में कन्नड़ भाषा सोशल मीडिया, फिल्म, नाटक, विज्ञान और तकनीक के माध्यम से नई ऊर्जा से आगे बढ़ रही है। भाषा प्रेमी आंदोलन और राज्य स्तर की नीतियां कन्नड़ के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

कन्नड़ की यात्रा शिलालेखों की कठोरता से लेकर डिजिटल मंच की गति तक फैली है। इसकी शास्त्रीय गरिमा और जनसांस्कृतिक जुड़ाव ने इसे आज भी एक सजीव और सशक्त भाषा बनाए रखा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश महादेवप्पा