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अंतरराष्ट्रीय स्तर के एल्सेवियर प्रकाशन ने दी बीमारी को मान्यताइस रोग कारक के द्वारा स्ट्रॉबेरी में पिछले वर्ष लगभग 20-22 प्रतिशत तक की हानि हुई थी
हिसार, 25 जुलाई (हि.स.)। यहां के हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने स्ट्रॉबेरी फल के लिए घातक क्राउन रॉट रोग के एक नए रोग कारक कोलेटोट्रीकम निम्फेई की पहचान की है। देश में पहली बार स्ट्रॉबेरी के क्राउन रॉट रोग के लिए नए रोग कारक का पता चला है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज के निर्देशानुसार वैज्ञानिकों ने इस रोग के प्रबंधन के लिए कार्य शुरू कर दिया हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे जल्द ही इस दिशा में भी कामयाब होंगे।
एल्सेवियर एक डच शैक्षणिक प्रकाशन संस्था है जिसकी नास रेटिंग 8.8 हैै जो वैज्ञानिक, तकनीक और चिकित्सा सामग्री में विशेषज्ञता रखती है। इसमें प्रकाशित फिजियोंलोजिकल एंड मोलिकुलर प्लांट पैथोलोजी में वैज्ञानिकों ने इस बीमारी की रिपोर्ट को प्रथम शोध रिपोर्ट के रूप में प्रकाशन के लिए स्वीकार कर मान्यता दी है, जो विशेषत: पौधों की बीमारियों के लिए पौधों में नई बीमारी को मान्यता देने वाली, अध्ययन के लिए सबसे पुराने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है। यह शैक्षणिक संस्था विशेषत: पौधों की बीमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन प्रकाशित करती है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक देश में इस बीमारी की खोज करने वाले सबसे पहले वैज्ञानिक हैं। इन वैज्ञानिकों ने स्ट्रॉबेरी के क्राउन रॉट रोग पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार किया है।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कम्बोज ने शुक्रवार काे वैज्ञानिकों को इस खोज के लिए बधाई दी।
इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि स्ट्रॉबेरी के लिए हिसार उत्तरी भारत का बहुत बड़ा क्लस्टर बन चुका हैं, जहां करीब 700 एकड़ में स्ट्रॉबेरी फार्मिंग होती है। इस रोग कारक के द्वारा स्ट्रॉबेरी में पिछले वर्ष लगभग 20-22 प्रतिशत तक की हानि हुई थी। हिसार के गांव स्याहड़वा की स्ट्रॉबेरी का स्वाद विदेशों में चखा जा रहा है। आसपास के तीन गांव चनाना, हरिता व मिरान के किसान भी स्याहड़वा से प्रेरित होकर स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं। हिसार जिले में स्ट्रॉबेरी क्लस्टर की शुरुआत 1996 में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की थी। इस फल की सफल खेती अक्सर विभिन्न जैविक कारकों से बाधित होती है, जिनमें से क्राउन रॉट बड़ी चिंता का विषय है। यह खोज स्ट्रॉबेरी की खेती की सुरक्षा के लिए निगरानी और मजबूत प्रबंधन रणनीतियों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।
क्राउन रॉट रोग के मुख्य शोधकर्ता डॉ. आदेश कुमार ने बताया कि शोधकर्ता इस बीमारी के प्रकोप को समझने और इसके प्रभाव को कम करने के लिए लक्षित उपाय विकसित करने में जुटे हुए हैं, जिससे स्ट्रॉबेरी उत्पादन की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों अनिल कुमार सैनी, सुशील शर्मा, राकेश गहलोत, अनिल कुमार, राकेश कुमार, केसी राजेश कुमार, विकास कुमार शर्मा, रोमी रावल, आरपीएस दलाल व पीएचडी छात्र शुभम सैनी ने भी इस शोधकार्य में योगदान दिया।
हिन्दुस्थान समाचार / राजेश्वर