Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
गांधीनगर, 25 जुलाई (हि.स.)। गुजरात देश का सबसे लंबा समुद्री तट रखने वाला राज्य है। इस समुद्री तट पर समंदर की लहरों के साथ हरियाली भी खिल रही है। समुद्र तटों के रक्षक कहे जाने वाले मैंग्रोव यानी चेड़ के वृक्षों का रोपण उल्लेखनीय रूप से बढ़ रहा है। ये वृक्ष खारे पानी में भी जीवित रहकर प्रकृति की स्थिरता का प्रतीक बनते जा रहे हैं। हर वर्ष 26 जुलाई को विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मैंग्रोव संरक्षण दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष “Protecting Wetlands for Our Future” विषय पर यह दिवस मनाया जाएगा।
‘MISHTI – Mangrove Initiative for Shoreline Habitats & Tangible Incomes’ योजना के अंतर्गत गुजरात ने 19,520 हेक्टेयर क्षेत्र में मैंग्रोव का पौधरोपण कर देश में पहला स्थान प्राप्त किया है, जिसमें से केवल कच्छ जिले में ही 6,000 हेक्टेयर में पौधरोपण हुआ है।
गुजरात का मैंग्रोव कवर वर्ष 1991 में 397 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2021 में 1,175 वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया है। पिछले तीन दशकों में गुजरात में मैंग्रोव क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। मैंग्रोव वृक्षों के संरक्षण में गुजरात देश के अग्रणी राज्यों में शामिल है। राष्ट्रीय स्तर पर मैंग्रोव कवर की दृष्टि से गुजरात पश्चिम बंगाल के बाद दूसरे स्थान पर है।
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (FSI) 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के मैंग्रोव क्षेत्र में 241.29 वर्ग किलोमीटर की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पर्यावरणीय संरक्षण और सतत विकास के प्रति गुजरात की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। मैंग्रोव वृक्ष तटीय क्षरण को रोकने, जैव विविधता को बढ़ावा देने और प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सम्पूर्ण गुजरात में मैंग्रोव वृक्षों का रणनीतिक वितरण
गुजरात का मैंग्रोव कवर रणनीतिक रूप से राज्य के चार प्रमुख क्षेत्रों में फैला हुआ है। राज्य का कच्छ जिला 799 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव कवर के साथ अग्रणी है, जो राज्य के मैंग्रोव क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा समेटे हुए है। मरीन नेशनल पार्क और अभयारण्य समेत कच्छ की खाड़ी, जामनगर, राजकोट (मोरबी), पोरबंदर और देवभूमि द्वारका क्षेत्रों में 236 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव कवर है।
खंभात की खाड़ी और डुमस-उभराट क्षेत्र समेत मध्य और दक्षिण गुजरात जिसमें भावनगर, अहमदाबाद, आणंद, भरूच, सूरत, नवसारी और वलसाड जिले आते हैं, वहां 134 वर्ग किलोमीटर का मैंग्रोव कवर है। इसके अलावा, अमरेली, जूनागढ़ और गिर-सोमनाथ जैसे जिलों को शामिल करने वाला सौराष्ट्र क्षेत्र 6 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव कवर रखता है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 2014-15 से 2022-23 के बीच व्यापक वृक्षारोपण अभियान चला। विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकता के अनुसार रोपण की प्रक्रिया हुई।
वर्ष 2023-24 में राज्य में 6,930 हेक्टेयर क्षेत्र में मैंग्रोव रोपण किया गया और वर्ष 2024-25 के दौरान कुल 12,000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में मैंग्रोव रोपण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व
मैंग्रोव तटीय वन हैं, जिनमें खारे पानी में उगने वाले वृक्षों का समावेश होता है। ये वृक्ष पोषक तत्वों और गाद को फिल्टर करके जल गुणवत्ता को सुधारते हैं। यह पारिस्थितिकी तंत्र समुद्री जीवन को समर्थन देने, तटीय भूमि को स्थिर करने, लवणता को नियंत्रित करने और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
ऐसा अनुमान है कि मछलियों और पक्षियों सहित लगभग 1,500 प्रकार के पौधों और प्राणियों की प्रजातियां मैंग्रोव पर निर्भर हैं।
मैंग्रोव संरक्षण के प्रति गुजरात की प्रतिबद्धता ने भारत ही नहीं, बल्कि अन्य देशों के लिए भी एक उदाहरण स्थापित किया है। अरब सागर से लगे गुजरात का समुद्री तट भारत के कुल समुद्री तट का 21% से अधिक है, जो मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों और समुद्री घास जैसे विविध पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए एक आदर्श वातावरण बनाता है।
गुजरात में मैंग्रोव कवर में हुई यह उल्लेखनीय वृद्धि पर्यावरण संरक्षण के प्रति राज्य की दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रमाण है। मैंग्रोव संरक्षण में निरंतर अग्रणी रहते हुए गुजरात, वैश्विक स्तर पर सतत पर्यावरणीय विकास का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है।
-----------
हिन्दुस्थान समाचार / Abhishek Barad