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डॉ. मयंक चतुर्वेदी
किसी भी व्यक्ति के जीवन भर की पूंजी को एक धोखे से छीन लेना वास्तव में यह उसके जीवन के साथ सिर्फ एक छलावा नहीं, उसे जीते जी मार देना है। ऐसे में अपराधियों को कुछ सालों का कारावास या अर्थदण्ड नहीं बल्कि उसे जब तक वह जीवित रहे, सलाखों के पीछे जीवन बिताए, यह सजा दी जानी चाहिए। यह सख्ती इसलिए भी जरूरी है ताकि फिर वह कभी किसी दूसरे के साथ धोखा न कर सके। वस्तुत: भारत में साइबर फ्रॉड के आंकड़े आज आम जन को बहुत डरा रहे हैं, इसलिए ही यह बात यहां कही जा रही है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से यह ध्यान में आया है कि देशभर में 2023 के दौरान साइबर अपराध के जरिए 7,465 करोड़ रुपये की ठगी हुई थी, जबकि 2024 में यह आंकड़ा 206 प्रतिशत की उछाल के साथ ₹22,845 करोड़ तक पहुंच गया था।
नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) और सिटिजन फाइनेंशियल साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम (सीएफसीएफआरएमएस) पर 2024 में कुल 36.40 लाख वित्तीय धोखाधड़ी की शिकायतें दर्ज की गई हैं। कहना होगा कि यह आंकड़ा 2023 में दर्ज 24.4 लाख मामलों से कहीं अधिक है और यह तब है जब भारत में साइबर अपराधों से निपटने के लिए सख्त कानून मौजूद हैं। ये कानून मुख्य रूप से सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के प्रावधानों के तहत लागू होते हैं। जिसमें कि धाराएं 419, 420, 468, 469 आदि भी साइबर अपराधों में लागू की गई हैं।
गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार ने लोकसभा में जानकारी में बताया है कि 2024 में 22.7 लाख साइबर अपराध की शिकायतें दर्ज हुईं, जबकि 2023 में यह संख्या 15.9 लाख थी। यानी एक साल में साइबर क्राइम में 42 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। स्वभाविक तौर पर यह देशभर में आमजन के लिए चिंता का विषय है। हालांकि सरकार ने इस चुनौती से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। सिटिजन फाइनेंशियल साइबर फ्रॉड रिपोर्टिंग एंड मैनेजमेंट सिस्टम की मदद से अब तक 17.8 लाख शिकायतों के आधार पर लगभग 5,489 करोड़ रुपए की रकम को धोखाधड़ी से बचाया जा चुका है। दूसरी ओर पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने 9.42 लाख से अधिक सिमकार्ड और 2,63,348 मोबाइल आईएमईआई को ब्लॉक किया है और अब तक 10,599 साइबर अपराधियों को गिरफ्तार भी किया है, किंतु इसके बाद भी ये साइबर अपराध हैं कि कम होने का नाम नहीं ले रहे।
गहन विचार करेंगे तो ध्यान में आएगा कि आखिर ऐसा क्यों है? वस्तुत: इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण दिखाई देता है, वह अपराधियों को प्राय: सख्त और आजीवन मिलने वाली सजा की कमी का होना है। साइबर अपराधों के लिए देश में संभवतः पहली बार इसी साल और इसी माह जुलाई में एक निचली अदालत का निर्णय देखने को मिला है, जिसमें कि नौ साइबर अपराधियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इन्होंने 'डिजिटल गिरफ्तारी' की धमकी देकर कई करोड़ रुपये की उगाही की थी। अदालत ने इस अपराध को आर्थिक आतंकवाद से कम नहीं माना।
महाराष्ट्र, हरियाणा और गुजरात से गिरफ्तार किए गए इन नौ दोषियों में एक महिला भी है, जिन्होंने पूरे भारत में 108 लोगों को धोखा देकर 100 करोड़ रुपये जमा किए। कल्याणी के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुबर्टी सरकार, ने उन्हें बीएनएस 338 (जिसमें दस्तावेजों की जालसाजी शामिल है) के तहत आजीवन कारावास और बीएनएस तथा आईटी अधिनियमों के तहत 10 अन्य दंडनीय अपराधों में सजा सुनाई है। इसके अलावा देखें तो आतंकवाद के प्रकरणों में अनीस शकील अंसारी जोकि एक कंप्यूटर इंजीनियर है को मुंबई न्यायालय द्वारा अक्टूबर 2022 में आईटी एक्ट धारा 66एफ (साइबर आतंकवाद) और तत्कालीन आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था। यह एक अमेरिकी स्कूल पर हमले की साजिश जिसे आईएसआईएस ने रची थी में सक्रिय पाया गया।
देश की सुरक्षा से जुड़े एक अन्य प्रकरण में नागपुर जिला अदालत ने 3 जून 2024 को पूर्व ब्रह्मोस एयरोस्पेस इंजीनियर निशांत अग्रवाल को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) को संवेदनशील जानकारी लीक करने के आरोप में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। पिछले दो वर्ष वर्ष 2023 एवं 2024 का तुलनात्मक आंकड़ा हमारे सामने हैं ही। जिसमें साफ दिखता है कि 36.40 लाख वित्तीय धोखाधड़ी की शिकायतें पिछले साल आईं किंतु सजा यदि देखें तो आजीवन कारावास 2024 में सिर्फ एक को ही हो सका। वहीं, इस साल भी सिर्फ एक मामले में साइबर फ्रॉड के लिए आजीवन कारावास की सज़ा दी जा सकी है।
कुल मिलाकर देखें तो आंकड़े बताते हैं कि साइबर अपराध करने के बाद प्राय: अपराधी लम्बे समय तक जेलों में नहीं रहते, वे अक्सर आर्थिक दंड देने के साथ कम समय की सजा पाकर छूट जाते हैं। कई बार साक्ष्यों के आधार पर और कई बार नाबालिग होने की स्थिति में यह छोड़ दिए जाते हैं जिसमें कि अक्सर बाहर आकर ज्यादातर अपराधी फिर से साइबर धोखाधड़ करते हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि एक तरफ देश का हर व्यक्ति साइबर विशेषज्ञों और सरकार द्वारा सुझाए गए सुरक्षा उपायों को व्यवहार में अपनाए तो दूसरी ओर यह भी आवश्यक है कि कानूनों को भी अत्यधिक सख्त बनाया जाए। किसी की भी जीवन भर की कमाई उड़ा देने वालों को इतनी आसानी से नहीं छोड़ा जा सकता, जैसा कि ये अभी ज्यादातर बचकर बाहर आ जा रहे हैं।
कहना होगा कि लोकसभा में इससे जुड़े आंकड़े प्रस्तुत करने भर से इस समस्या की चिंताओं से निजात नहीं पाई जा सकती है, इसके लिए व्यवहार में कठोर कदम उठाए जाने की वर्तमान में अत्यधिक आवश्यकता है। जिस पर केंद्र सरकार को गहराई से गौर करना चाहिए।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी