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कृषि विवि में इसबगोल पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन, एक मंच पर जुटे किसान, व्यापारी व एफपीओ
जोधपुर, 24 जुलाई (हि.स.)। इसबगोल उत्पादन में भारत का एकाधिकार है। इसके औषधीय गुणों को देखते हुए विदेशों में इसकी अत्यधिक मांग है। राजस्थान में अकेले पश्चिमी क्षेत्र में 97 प्रतिशत इसबगोल का उत्पादन होता है। ऐसे में आवश्यक है कि किसानों को इसकी उन्नत व जैविक खेती के लिए प्रशिक्षित किया जाए ताकि हमारे इसबगोल के उत्पाद देश-विदेश में टेस्टिंग के दौरान पूरी तरह स्वीकृत हो एवं गुणवत्ता की सुनिश्चितता भी बनी रहे। ये विचार कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण एपीडा,दिल्ली के डीजीएम मान प्रकाश विजय ने व्यक्त किए। वह कृषि विश्वविद्यालय, एपीडा, एनसीईएल, राजफैड, आईसीएआर, कृषि विभाग राजस्थान व दक्षिणी एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राजस्थान में इसबगोल की क्षमताओं के द्वार खोलें वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी आपूर्ति श्रृंखला के लिए टिकाऊ खेती, मूल्यवर्धित प्रसंस्करण और बाजार एकीकरण को बढ़ावा देना विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के आयोजन के मौके पर संबोधित कर रहे थे।
इस दौरान राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड एनसीईएल दिल्ली के एमडी डॉ. अनुपम कौशिक ने कहा कि वर्तमान में विदेशों में पेट्स (पालतू) इंडस्ट्री में पौष्टिक आहार के रूप में इसबगोल का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, इसबगोल औषधीय गुणों से भरपूर संजीवनी की तरह है। उन्होंने निर्यात पर चर्चा करते हुए कहा कि सहकारी तरीके से इसके निर्यात से जुड़े ताकि सीधा फायदा किसानों को मिले।
कुलगुरु डॉ. अरुण कुमार ने कहा कि इसबगोल की औषधीय महता को देखते हुए बाजार में इसकी अत्यधिक मांग है। डॉ. कुमार ने कहा कि किसान संगठित होकर करे तो उपज 50 प्रतिशत बढऩे की संभावना बढ़ेगी। इस मौके पर आईसीएआर, डीएमएपीआर आणंद गुजरात के निदेशक डॉ. मनीष दास ने कहा कि वैश्विक स्तर पर इसबगोल की डिमांड बहुत है लेकिन मांग पूरी नहीं हो पा रही। इसके अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिक नाममात्र के है। मांग पूरी करने के लिए नई किस्में विकसित करनी होगी साथ ही इसकी खेती भी वैज्ञानिक तरीके से करें, ताकि खरपतवार निवारण हो सके।
इसबगोल का दायरा बढ़ाना जरूरी
कार्यक्रम में कृषि (प्रसार) के संयुक्त निदेशक डॉ एसएन गढ़वाल ने कहा कि विदेशों में बेकरी उत्पाद बनाने में इसका उपयोग किया जा रहा है लेकिन भारत में ये कब्ज निवारक भूसी तक सीमित है। उन्होंने इसके स्वास्थ्यप्रद लाभों को देखते हुए खाद्य सामग्री में इस्तेमाल की बात कही। इस दौरान डॉ महेश कुमार दाधीच, डॉ जेपी मिश्रा, डॉ अजीत सिंह ने भी इसबगोल की उपयोगिता पर चर्चा की। कार्यक्रम में निदेशक प्रसार शिक्षा, डॉ प्रदीप पगारिया ने स्वागत उद्बोधन व कार्यक्रम की रूपरेखा बताई। इस दौरान हस्क इंटरनेशनल जोधपुर के निदेशक जगदीश सोनी को सम्मानित किया गया।
हिन्दुस्थान समाचार / सतीश