प्रकृति के चारों तरफ हरियाली व अनिष्ट की रक्षा का पर्व हरेली-अमुस तिहार
अनिष्ट की रक्षा का पर्व हरेली-अमुस तिहार


जगदलपुर, 24 जुलाई (हि.स.)। छत्तीसगढ़ एवं बस्तर की संस्कृति में त्योहारों, पर्वो का विशेष महत्व है। हरेली त्योहार को श्रावण मास के कृष्ण पक्ष अमावस्या को मनाया जाता है। हरेली त्योहार किसानाें सहित छत्तीसगढ़वासियों एवं बस्तर निवासियाें के लिए विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की शुरूआत के साथ इसे अमुस तिहार के रूप में इस त्याेहार काे मनाने का आज से सिलसिला शुरू हाे जायेगा। हरेली मतलब प्रकृति के चारों तरफ हरियाली से है । किसान खेत में जुताई-बोआई, रोपाई, बियासी के कार्य पूर्ण करके इस त्योहार काे मनाता है। हरेली तिहार के दिन पूजा करने से पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित रहता है और फसल उगती है, तो किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं लगती है। हरेली तिहार मनाने से फसल को हानिकारक किट तथा अनेको बीमारियां नहीं होती है, इसलिए हरेली तिहार मनाया जाता है। परंपरानुसार लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीष देते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है।

हरेली त्योहार की जड़ें छत्तीसगढ़ की समृद्ध कृषि विरासत में हैं, जहाँ इसे लंबे समय से कृषि देवताओं के प्रति सम्मान के रूप में मनाया जाता रहा है। मानसून की शुरुआत में मनाया जाने वाला हरेली, बुवाई के मौसम की शुरुआत का प्रतीक है और लोगों और उनकी ज़मीन के बीच गहरे बंधन को दर्शाता है। पीढ़ियों से चला आ रहा यह त्यौहार पारंपरिक रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को कायम रखता है और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान की एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति है। किसान हरेली त्यौहार के दिन गाय बैल भैंस को भी साफ सुथरा कर नहलाते हैं। अपनी खेती में काम आने वाले औजारों को हल (नांगर), कुदाली, फावड़ा, गैंती को धोकर और घर के बीच आंगन में रख दिया जाता है या आंगन के किसी कोने में मुरूम बिछाकर पूजा के लिए सजाते हैं और उसकी पूजा की जाती है, साथ ही अपने कुलदेवता की भी पूजा की जाती है । माताएं गुड़ का चीला बनाती हैं और कृषि औजारों को धूप-दीप से पूजा के बाद नारियल, गुड़ के चीला का भोग लगाया जाता है। अपने-अपने घरों में अराध्य देवी-देवताओं के साथ पूजा करते हैं। हरेली के बच्चे गेंड़ी का आनंद लेते हैं। इस अवसर पर सभी के घरों में विशेष प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं।

हरेली त्योहार के दौरान छत्तीसगढ़ के लोग अपने-अपने खेतों में भेलवा पेड़ की शाखाएं लगाते हैं। वे अपने घरों के प्रवेश द्वार पर नीम के पेड़ की शाखाएं भी लगाते हैं। नीम में औषधीय गुण होते हैं जो बीमारियों के साथ-साथ कीड़ों को भी रोकते हैं। हरेली तिहार के दिन से गेंड़ी खेल का आयोजन शुरु हो जाता है। हरेली तिहार के दिन सुबह से ही बच्चे से लेकर युवा तक 20 या 25 फिट तक गेंडी बनाया जाता है। उसी दिन सभी युवा एवं बच्चे गेंडी चढ़ते हैं गावं में घूमते है। बच्चों और युवाओं के बीच गेंड़ी दौड़ प्रतियोगिता भी की जाती है।

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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे