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मुंबई,24 जुलाई ( हि.स) । आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर में खिलने वाला एलस्टोनिया स्कॉलरिस इस साल जुलाई में ठाणे क्षेत्र में खिलता हुआ दिखाई दे रहा है। प्रकृति के नियमित मौसमी चक्र में यह बदलाव दर्ज किया जा रहा है और पर्यावरणविदों का कहना है कि यह सिर्फ़ एक प्राकृतिक जिज्ञासा नहीं, बल्कि जलवायु असंतुलन की एक गंभीर चेतावनी है।
सप्तपर्णी के पेड़ों के खिलने का समय हमेशा गणपति के बाद, यानी अक्टूबर की शुरुआत में होता है। इन पेड़ों के फूल हरे-सफ़ेद रंग के होते हैं और शाम और रात में इनकी विशिष्ट तेज़ सुगंध आती है। ये पेड़ शहर के बगीचों, सड़कों के किनारे या सार्वजनिक संस्थानों में बड़े पैमाने पर लगाए जाते हैं। हालाँकि, इस साल, इन पेड़ों ने मानसून के मौसम की शुरुआत होते ही, यानी जुलाई के पहले हफ़्ते में ही अपने फूल दिखा दिए हैं। इस वजह से कई नागरिक आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं।
इस घटना का अध्ययन करने वाले पर्यावरणविदों ने मौसम की अनियमितताओं, तापमान में उतार-चढ़ाव और मौसमी चक्र के व्यवधान को इसके मुख्य कारण बताया है। वृक्ष विशेषज्ञों के अनुसार, पेड़ों को फूल खिलने के लिए विशिष्ट तापमान, आर्द्रता और प्रकाश की आवश्यकता होती है। हालाँकि, वरिष्ठ पर्यावरणविद् डॉ. नागेश टेकाले ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण, ये कारक असमान रूप से बदल रहे हैं, जिससे पेड़ों की प्राकृतिक दिनचर्या बाधित हो रही है।
ठाणे में पर्यावरण विषेशज्ञ डॉ प्रशांत सिनकर का मानना है कि इस वर्ष जुलाई में सप्तपर्णी के फूल खिलने का मतलब है कि पेड़ों को मौसम का गलत संकेत मिला है अतः उनके फूल खिलने का समय भी गलत समय पर आता है। इससे परागण, फल लगने और जैव विविधता की श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न होता है।
जबकि वरिष्ठ पर्यावरण विषेशज्ञ डॉ नागेश टेकाले ने बताया कि इस परिवर्तन का प्रभाव केवल पेड़ों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पक्षियों, कीटों और परागण करने वाली प्रजातियों के जीवन चक्र पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि सप्तपर्णी के फूल और उन पर निर्भर कीट जैविक रूप से जुड़े हुए हैं। यदि फूल जल्दी खिलते हैं, तो कीटों को भोजन करने का समय नहीं मिलता है, और पूरी पारिस्थितिक श्रृंखला बाधित हो सकती है।
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हिन्दुस्थान समाचार / रवीन्द्र शर्मा