राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों के संदर्भ पर केंद्र व राज्य सरकाराें काे नाेटिस
सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली, 22 जुलाई (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों के समक्ष विधेयकों को प्रस्तुत करने पर संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत संवैधानिक विकल्पों पर भेजे गए रेफरेंस पर केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया है। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली संविधान बेंच मामले की अगली सुनवाई 29 जुलाई को करने का आदेश दिया।

संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस चंदुरकर और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं। राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 143 (1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर 14 संवैधानिक प्रश्नों पर राय मांगी है। राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मसले पर सुप्रीम कोर्ट की सलाह लेने का अधिकार है। सतलुज यमुना लिंक नहर विवाद का मसला भी तत्कालीन राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के पास रेफर किया था। सुप्रीम कोर्ट के रेफरेंस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस पर सुनवाई कर फैसला सुनाया था।

राष्ट्रपति का ये रेफरेंस इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से विधेयकों को लंबे अरसे तक लटकाने के मामले में फैसला सुनाया था। जस्टिस जेबी पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत विधानसभा की ओर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को फैसला लेने के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि राज्यपाल को विधानसभा की ओर से भेजे गए किसी विधेयक पर फैसला लेने या राज्यपाल के पास भेजने के लिए अधिकतम एक महीने के अंदर फैसला लेना होगा। दिशा-निर्देश के मुताबिक अगर राज्यपाल विधेयक को राज्य सरकार की सलाह के विपरीत राष्ट्रपति को सलाह के लिए रखते हैं तो उस पर भी अधिकतम तीन महीने के अंदर फैसला लेना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देश में कहा था कि अगर राज्य विधानसभा किसी विधेयक को दोबारा पारित कराकर राज्यपाल को भेजती है तो उस पर अधिकतम एक महीने में फैसला करना होगा।

हिन्दुस्थान समाचार/संजय

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हिन्दुस्थान समाचार / अमरेश द्विवेदी