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कानपुर, 18 जुलाई (हि.स.)। सावन के पूरे महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। शहर में कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं। जिनका रहस्य काफी पुराना है। हर मंदिर अपनी अलग-अलग विशेषताओं को लेकर समाज में प्रसिद्ध है लेकिन क्या आप जानते हैं? कानपुर के पी रोड स्थित बाबा वनखंडेश्वर मंदिर में एक मंदिर ऐसा भी है। जिसका इतिहास करीब ढाई सौ साल पुराना है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि यह एक पहला ऐसा मंदिर है। जहां पर बाबा की शिवलिंग प्रकट हुई थी लेकिन कभी भी इसकी प्राण प्रतिष्ठा नहीं हुई है। फिर भी बाबा के प्रति भक्तों की आस्था में कोई कमी नहीं है।
मंदिर के पुजारी रामनरेश मिश्रा ने शुक्रवार को जानकारी साझा करते हुए बताया कि इस मंदिर का इतिहास 250 साल पुराना है। जिस स्थान पर यह पवित्र मंदिर स्थापित है। यहां पर कभी जंगल हुआ करता था। इसी मंदिर के पास एक छोटा सा तालाब और पार्क भी था। चारो तरफ जंगल और तालाब होने की वजह से बड़ी संख्या में चरवाहा अपनी गायों को लाकर घण्टों चरने के लिए छोड़ दिया करते थे। यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा।
इसी जंगल मे बने एक टीले पर एक गाय आकर अपना सारा दूध गिरा देती थी। एक दिन चरवाहा की नजर उस गाय और उसके द्वारा गिराए जा रहे दूध की तरफ पड़ी। उसने इसे एक सामान्य घटना समझ कर अनदेखा कर दिया लेकिन यह सिलसिला कई दिनों तक देखने के बाद उसने ग्रामीणों को बताई। जो सभी के लिए कौतूहल कक विषय बन गया। लोगों ने सभी की सहमति से उस टीले की खुदाई करवाई। कई दिनों तक चली उस खुदाई में भोलेनाथ की शिवलिंग प्राप्त हुई। जिसे लोगों ने भगवान की लीला और बाबा शिव का आशीर्वाद मानकर उस शिवलिंग के आस-पास एक चबूतरा बनवा दिया। जहां रोजाना लोग उस शिवलिंग की पूजा अर्चना करने लगे।
जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे इस मंदिर के प्रति श्रद्धलुओं के प्रति बाबा को लेकर आस्था भी बढ़ती रही। ऐसी लोगों में ऐसी मान्यता हो गई कि यदि सच्चे मन के से लगातार बाबा पर जलाभिषेक करता है। तो उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है। फिर क्या था? धीरे-धीरे इस मंदिर का प्रचार प्रसार हुआ और ये स्थान पवित्र बाबा का स्थानों में एक गिना जाने लगा। यही कारण है कि इस मंदिर में विराजमान देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा न होने के बावजूद लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं है।
वर्तमान में यह मंदिर सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत आता है। जहां रोजाना हजारों भक्त बाबा के दर्शन करने आते है। सावन के महीने या किसी विशेष पर्व पर इस मंदिर में यह भी कई गुना बढ़ जाती है। मंदिर प्रांगण में ही श्रद्धालुओं द्वारा कई तरह के मांगलिक कार्यक्रम जैसे जागरण, श्रृंगार, मुंडन संस्कार सत्संग और मनोकामना पूरी होने के बाद बाबा के श्रृंगार के साथ-साथ लंगर का भी आयोजन किया जाता है। इत्यादि धार्मिक कार्य कराए जाते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / रोहित कश्यप