पाकिस्तान में तख्ता पलटा तो...!
डॉ. प्रभात ओझा पाकिस्तान में सत्ता पलट की सुगबुगाहट होने लगी है। हमारा दूसरा पड़ोसी बांग्लादेश भी शांत नहीं है। यूं तो इन दोनों देशों में इस तरह की हलचल का जुलाई में होने वाली ऐतिहासिक घटनाओं से कोई नाता नहीं है, फिर भी कुछ को याद करना चाहिए। वर्ष
डॉ. प्रभात ओझा


डॉ. प्रभात ओझा

पाकिस्तान में सत्ता पलट की सुगबुगाहट होने लगी है। हमारा दूसरा पड़ोसी बांग्लादेश भी शांत नहीं है। यूं तो इन दोनों देशों में इस तरह की हलचल का जुलाई में होने वाली ऐतिहासिक घटनाओं से कोई नाता नहीं है, फिर भी कुछ को याद करना चाहिए। वर्ष 1658 में जुलाई की पांच तारीख थी, जब मुगल शासक औरंगजेब ने अपने बड़े भाई मुराद बख्श को बंदी बना लिया था। वह शाहजहां के बीमार पड़ने के बाद सत्ता की लड़ाई का नतीजा था। मथुरा के पास बंदी बनाया गया मुराद बख्श आगरा में कैद कर रखा गया। बाद में 1661 में उसकी मौत हो गई थी।

यह घटना बहुत पुरानी है। तख्ता पलट के ताजा मामले पाकिस्तान में हुए हैं। बात जुलाई की हो रही है, तो 1977 में इसी महीने की पांच तारीख को ही जुल्फिकार अली भुट्टो को सत्ता से हटाकर जनरल जिया उल हक ने कब्जा कर लिया था। ऐसा करने वाले वे चौथे सैनिक तानाशाह थे। हालांकि वे 11 साल तक सत्ता में बने रहे और एक रहस्यमयी विमान दुर्घटना में मारे गये। इतिहास की ये घटनाएं पाकिस्तान में ताजा हलचल के बीच याद की जा रही हैं।

खबरें साफ होने लगी हैं कि पाकिस्तान फिर सत्ता के खिलाफ साजिश के दौर से गुजर रहा है। आतंकवाद के विरुद्ध पाकिस्तान में ऑपरेशन सिंदूर के बाद वहां सब कुछ सामान्य नहीं है। आतंकवादियों को संरक्षण देने वाली पाकिस्तान की छवि इस ऑपरेशन के बाद और भी स्पष्ट हुई है। यह अकारण नहीं है कि जुल्फिकार अली भुट्टो के नवासे और बेनजीर भुट्टो के बेटे बिलावल भुट्टो ने कुछ दिन पहले ही हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को भारत को सौंपने की जरूरत बताई थी।

ये चेहरे दुनियाभर में, खासकर भारत के खिलाफ आतंकवाद के बड़े सरगना हैं। बिलावल ने यह जरूरत क्यों बताई और इसके पीछे उनके वालिद और पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को बचाने की मंशा है, इस पर चर्चा चल सकती है। वैसे पिता-पुत्र के रिश्ते भी चर्चा से बाहर नहीं हैं। जो भी हो, राष्ट्रपति को बचाने के प्रयास का चर्चा में आना अस्वाभाविक नहीं है। इसे सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर और राष्ट्रपति जरदारी के बीच तनाव की खबरों से भी जोड़कर देखा जा सकता है।

जनरल मुनीर जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ लंच के भागीदार बने, तभी से अमेरिका के पाकिस्तान की सत्ता में फिर से रुचि बढ़ने के कयास लगने लगे थे। अब जनरल ने प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से मुलाकात कर नई चर्चा को हवा दी है। कहते हैं कि जनरल फिलहाल पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को साथ रखना चाहते हैं। इसी योजना के तहत दोनों की मुलाकात हुई है।

वैसे जरूरत पड़ने पर मुनीर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को भी किनारे लगा सकते हैं। जहां तक पाकिस्तानी अवाम का सवाल है, भारत की सैन्य कार्रवाई के दौरान उसे लगता है कि पाकिस्तानी सेना को वहां के राष्ट्रपति की ओर से‘खुले हाथ’नहीं रखा गया। वैसे मुनीर ने भी कम डींगे नहीं हांकी, फिर भी ‘कौन अधिक झूठा’की लड़ाई जोरों पर है। देखना है कि यह लड़ाई तख्तापलट तक कैसे पहुंचती है। ऐसा हुआ तो यह आधिकारिक रूप से पाकिस्तान में पांचवां तख्तालट होगा। ऐसा हुआ तो निश्चित ही भारत का इस पड़ोसी के साथ रिश्ता एक बार और नये सिरे से देखा जायेगा।

इतिहास में तख्तापलट शब्द का पहली बार प्रयोग 19वीं सदी में हुआ था।उस वक्त अमेरिका, पुर्तगाल, स्पेन और लैटिन को तख्तापलट का सामना करना पड़ा। तख्तापलट क्या होता है, यह भी जानना जरूरी है। यह वो परिस्थिति है जब किसी देश की सेना, अर्धसैनिक बल या फिर विपक्षी पार्टी वर्तमान सरकार को हटाकर खुद सत्ता पर काबिज हो जाती हैं। सैन्य तख्तापलट में सेना सरकार को हटाकर एक दिखावटी असैन्य सरकार स्थापित कर देती है।

पाकिस्तान कई बार तख्तापलट देख चुका है। पहला तख्तापलट 1953-54 में हुआ था। इस दौरान तत्कालीन गवर्नर-जनरल गुलाम मोहम्मद ने प्रधानमंत्री ख्वाजा नजीमुद्दीन की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। दूसरा तख्तापलट 1958 में हुआ, जब तत्कालीन राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर अली मिर्जा ने संविधान सभा और तत्कालीन फिरोज खान नून की सरकार को बर्खास्त कर दिया। 1977 में सेना प्रमुख जनरल जियाउल हक के नेतृत्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार गिराई गई थी। चौथा तख्तापलट 1999 में सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने किया था।

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध रहे हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद