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-कहा, नकल से योग्यता का मूल्य घटता है और शिक्षा व्यवस्था में विश्वास कम होता है
प्रयागराज, 17 जुलाई (हि.स.)। केंद्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) में अपने स्थान पर प्रॉक्सी (सॉल्वर) का इस्तेमाल करने के आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जब किसी परीक्षा में किसी के स्थान पर सॉल्वर परीक्षा देता है, तो इससे शिक्षा प्रणाली कमजोर होती है। समाज पर इसके गंभीर प्रभाव पड़ते हैं।
न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह की कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि धोखाधड़ी के ऐसे कृत्य न केवल वास्तविक योग्यता का अवमूल्यन करते हैं, बल्कि बेईमानी की संस्कृति को भी बढ़ावा देते हैं।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि परीक्षा में नकल करने से उन मेधावी छात्रों के करियर पर गहरा असर पड़ता है जो कड़ी मेहनत और ईमानदारी पर भरोसा करते हैं। इससे असमान माहौल बनता है, जहां योग्यता हेरफेर के आगे दब जाती है। नकल करने से ईमानदार छात्रों की प्रेरणा और व्यवस्था पर भरोसा खत्म हो सकता है, और उन्हें लग सकता है कि उनके समर्पण को कम आंका गया है।
मामले के अनुसार 15 दिसम्बर 2024 को आयोजित सीटीईटी टेस्ट के दौरान, परीक्षा केंद्र के अधिकारियों ने कथित तौर पर पाया कि लोकेंद्र शुक्ला (कथित सॉल्वर) नामक व्यक्ति फर्जी एडमिट कार्ड का उपयोग करके वास्तविक उम्मीदवार संदीप सिंह पटेल का प्रतिरूपण कर रहा था, और उसका बायोमेट्रिक सत्यापन भी विफल हो गया था।
बाद में दोनों पर धारा 318(4), 319(2), 61(2) बीएनएस और उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 2024 की धारा 11/13(5) के तहत मामला थाना गोविंद नगर, कानपुर नगर में दर्ज किया गया। आवेदक संदीप ने इस आधार पर हाईकोर्ट में ज़मानत याचिका दायर की कि वह 14 से 17 दिसम्बर के बीच अस्पताल में भर्ती था और उसे इस छद्मवेशी परीक्षा की जानकारी नहीं थी। उसने यह भी तर्क दिया कि उसका सॉल्वर या उसके साथियों से कोई सम्बंध नहीं था और आवेदक और किसी भी सह आरोपी के बीच पैसों का कोई लेन-देन नहीं हुआ था।
यह भी तर्क दिया कि उनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, उनके भागने का कोई खतरा नहीं है और तथ्य यह है कि सह आरोपी बृजेन्द्र शुक्ला उर्फ मनीष शुक्ला को पहले ही जमानत मिल चुकी है। दूसरी ओर, राज्य सरकार ने जमानत का विरोध करते हुए तर्क दिया कि परीक्षा से कुछ समय पहले संदीप और सह आरोपी बृजेन्द्र शुक्ला के बीच टेलीफोन पर बातचीत रिकॉर्ड में है। आगे यह भी कहा गया कि बृजेन्द्र ने संदीप के स्थान पर लोकेन्द्र को परीक्षा देने की व्यवस्था की थी और उसे प्रवेश पत्र और 10,000 रुपये अग्रिम राशि के साथ-साथ एक जाली आधार कार्ड भी दिया था।
कोर्ट ने कॉल रिकार्ड पर गौर किया और पाया कि आवेदक वास्तव में बृजेन्द्र के संपर्क में था, जिसने आवेदक के स्थान पर लोकेन्द्र को परीक्षा में बैठने के लिए कहा था। कोर्ट ने कहा कि न्यायालय यह भी पाता है कि सह अभियुक्त लोकेन्द्र शुक्ला के कृत्य से वर्तमान आवेदक संदीप सिंह पटेल मुख्य लाभार्थी था, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि वर्तमान आवेदक उक्त अपराध में शामिल नहीं है। एकल न्यायाधीश ने आवेदक के मामले को सह-अभियुक्त के मामले से अलग करते हुए कहा कि आवेदक ही छद्मवेश का प्राथमिक लाभार्थी था और इसलिए उसका अलग मामला है।
इसके अलावा, न्यायालय ने बृजमणि देवी बनाम पप्पू कुमार मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया, ताकि इस बात पर जोर दिया जा सके कि अकेले समानता जमानत देने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। खासकर जब सह अभियुक्त के जमानत आदेश में ठोस तर्क का अभाव हो। इस प्रकार, न्यायालय ने याची को जमानत देने से इनकार कर दिया।
हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे