युद्ध की लपटों में घिरी दुनिया
डॉ. अंशुल उपाध्याय वर्तमान में विश्व के कई देशो के मध्य युद्ध का वातावरण व्याप्त है। एक तरफ रूस और यूक्रेन का युद्ध है। दूसरी तरफ ईरान और इजराइल का युद्ध भी सीज फायर के बाद भी चालू है। इसी बीच पाकिस्तान ने भारत के पहलगांव (कश्मीर) पर हमला किया। इसके
डॉ. अंशुल उपाध्याय


डॉ. अंशुल उपाध्याय

वर्तमान में विश्व के कई देशो के मध्य युद्ध का वातावरण व्याप्त है। एक तरफ रूस और यूक्रेन का युद्ध है। दूसरी तरफ ईरान और इजराइल का युद्ध भी सीज फायर के बाद भी चालू है। इसी बीच पाकिस्तान ने भारत के पहलगांव (कश्मीर) पर हमला किया। इसके बाद भारत ने भी हवाई हमले कर पाकिस्तान को जबाव दिया। अब विश्व में जो परिस्थितियों उत्पन्न हो रही हैं,उनके चलते यह कहना बिल्कुल भी अनुचित नहीं होगा कि परमाणु अस्त्रों से संपन्न राष्ट्र अगर इस तरह युद्ध के मैदान में कूदते हैं तो परिणाम भयंकर हो सकते हैं।

युद्ध एक ऐसा सशस्त्र संघर्ष है जो दो या दो से अधिक समूहों के बीच होता है। युद्ध दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं में से एक है। परन्तु युद्ध कभी भी सिर्फ हाथों में हथियार ले लेने से ही शुरू नहीं हो जाता। युद्ध का जन्म किसी व्यक्ति विशेष के एक विचार से होता है। कई दफा ये विचार संपूर्ण राष्ट्र पर हावी हो जाते है। तो कई दफा जमीन के लालच, आत्म सुरक्षा का भय, तो कई दफा अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी भयंकर युद्धों की वजह बनता है।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संपूर्ण विश्व वायु सेवा की शक्ति से बखूबी परिचित हो गया था । इसके बाद 1948 में भारत को जब स्वतंत्रता की प्राप्ति हई तो उसके तुरंत बाद ही पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया और भारत को उसे जवाब देने के साथ ही युद्ध में उतरना पड़ा। इस तरह से पाकिस्तान के साथ भारत ने चार युद्ध लड़े जिसमें पहला 1948 में, दूसरा 1965 में तीसरा 1971 मे और चौथा कारगिल युद्ध जो 1998 में लड़ा गया। इसी के साथ भारत और चीन के बीच भी 1962 में युद्ध लड़ा गया था।

ईरान के अब तक का युद्ध इतिहास खून खराबे से भरा हुआ है। गाजा पट्टी का युद्ध हो या खाड़ी युद्ध, युद्धों ने इन दोनों देशों के मध्य तनाव वृद्धि ही की है। 2024 में इजराइल-ईरान के मध्य का ये शीत युद्ध सीधे संघर्ष में ही बदल गया। और 01 अप्रैल को इजराइल ने दमिश्क में ईरानी वाणिज्य दूतावास पर बमबारी की, जिसमें कई वरिष्ठ ईरानी अधिकारी मारे गए। इस हमले के जवाब में, ईरान और उसके प्रतिनिधियों ने 13 अप्रैल को इजराइल के अंदर हमले शुरू कर दिए। ईरान और इजराइल के बीच 1979 से कोई राजनयिक संबंध नहीं हैं और आधुनिक संबंध शत्रुतापूर्ण हैं। शीत युद्ध के अधिकांश समय में ये संबंध सौहार्दपूर्ण थे, लेकिन ईरानी क्रांति के बाद ये और भी खराब हो गए और 1991 में खाड़ी युद्ध की समाप्ति के बाद से ये खुले तौर पर शत्रुतापूर्ण हो गए हैं। इन्हें ईरान-इजराइल प्रॉक्सी संघर्ष, या ईरान-इजराइल शीत युद्ध के रूप में भी जाना जाता है।

इसके बाद इस्लामी खिलाफत का भी विस्तार हुआ। खलीफा उमर के शासन में इस्लाम का प्रसार और क्षेत्रीय विस्तार लगातार हुआ। इस्लामी एकता और धर्म के नाम पर लड़ाई होती रहीं। कालांतर में फारसी संस्कृति को फॉलो करने वालों ने इस्लाम को आत्मसात करना शुरू कर दिया। इसका लाभ यह हुआ कि फारसी भाषा, साहित्य और प्रशासन को इस्लामी काल में नया जीवन मिला। इस तरह ईरान में शिया इस्लाम का विकास धीरे-धीरे हुआ, जो बाद में इस्लामी दुनिया में विशिष्ट पहचान बना पाया। आज शिया कम्युनिटी पूरी दुनिया में निवास करती है। वर्तमान ईरान और इसके सुप्रीम लीडर खोमेनेई इसी शिया समुदाय के धार्मिक नेता भी हैं।

ईरान और इजराइल के बीच प्रॉक्सी संघर्ष चल रहा है। इजराइली-लेबनानी संघर्ष में ईरान ने लेबनानी शिया मिलिशिया का समर्थन किया है, विशेष रूप से हिजबुल्लाह का । इजराइली-फिलिस्तीनी संघर्ष में ईरान ने हमास जैसे फिलिस्तीनी समूहों का समर्थन किया है । 2024 में प्रॉक्सी संघर्ष दोनों देशों के बीच सीधे टकराव में बदल गया। और जून 2025 में, ईरान-इजराइल युद्ध शुरू हुआ, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल के शामिल हो जाने से अंतरिम परिणामों की भयंकरता से संपूर्ण विश्व में अराजकता का माहौल व्याप्त हो गया है।

पूर्व में जब अमेरिका समेत ढेर सारे पश्चिमी देश इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन के साथ ईरान के खिलाफ साये की तरह खड़े थे, वही अमेरिका सद्दाम हुसैन को बंकर से निकालकर मारने से पीछे नहीं हटा। आज जी-7 देश ईरान के खिलाफ खड़े हैं, कोई बड़ी बात नहीं कि कल वे किसी और पाले में खड़े हो जाएंगे । क्योंकि भले ही सत्ता बदल जाए। यहां न कोई किसी का स्थाई दोस्त है, न ही दुश्मन। सबके अपने हित हैं। अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार ही सारे देश चालें चल रहते हैं।

(लेखिका, यूजीसी में सीनियर रिसर्च एसोसिएट रही हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद