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जबलपुर, 16 जुलाई (हि.स.)। मध्य प्रदेश में नर्सिंग घोटाले के बाद अब पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और एडमिशन में गड़बड़ियों को लेकर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर की डिवीज़नल बेंच ने एक महत्वपूर्ण स्थगन आदेश पारित किया है। जस्टिस अतुल श्रीधर और जस्टिस दीपक खोत की डिवीजन बेंच ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि पिछले सत्र की मान्यता 2025 में दी जा रही है, यह क्या चल रहा है कोई सर्कस है क्या ? कोर्ट ने से गंभीर अव्यवस्था बताया।
लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन द्वारा दाखिल की गई नर्सिंग मामले की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान एडवोकेट विशाल बघेल और आलोक बागरेचा की ओर से पिछले दिनों एक आवेदन पेश कर हाईकोर्ट को बताया गया था कि नर्सिंग की तरह पेरामेडिकल कॉलेजों के मान्यताओं में भी अनियमितताएँ की जा रही हैंं। एमपी पैरामेडिकल काउंसिल के द्वारा गुजरे हुए एकेडमिक सत्रों (2023-24 एवं 2024-25) की मान्यता भूतलक्षी प्रभाव से बाँटी जा रही है और बगैर मध्य प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय से सम्बद्धता प्राप्त किए सरकारी तथा निजी पैरामेडिकल कॉलेजों के द्वारा अवैध रूप से छात्रों के प्रवेश दिए जा रहे हैं और नर्सिंग घोटाले की जांच में जिन कॉलेजों को सीबीआइ ने अनसूटेबल बताया है, उन्हीं बिल्डिंग में पैरामेडिकल काउंसिल अब पैरा मेडिकल कॉलेजों की मान्यता बाँट रही है ।
पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ता के आवेदन पर सुनवाई करते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने इसे स्वत: संज्ञान लेते हुए अलग जनहित याचिका (PIL) के रूप में पंजीबद्ध करने के निर्देश दिए हैं । हाईकोर्ट ने इस गंभीर विषय पर संज्ञान लेते हुए मध्य प्रदेश पैरामेडिकल काउंसिल के चेयरमैन व रजिस्ट्रार को पक्षकार बनाने के निर्देश दिए थे, जिसमें कि बुधवार को मामले की सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य शासन के उस आदेश पर रोक लगा दी है जो पैरामेडिकल काउंसिल को एकेडमिक सत्रों (2023-24 एवं 2024-25) की मान्यता भूतलक्षी प्रभाव से बाँटने की अनुमति देता था। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि प्रदेश भर के पैरामेडिकल कॉलेजों की मान्यता और एडमिशन प्रक्रिया पर अगली सुनवाई तक रोक रहेगी। हाईकोर्ट ने कहा कि सत्र 2023-24 और 2024-25 जब गुजर चुके हैं तो उनकी मान्यता 2025 में कैसे दी जा सकती है ? यह अत्यंत हास्यास्पद और बेतुका है ।
सुनवाई के दौरान पैरामेडकल कौंसिल की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ने तर्क दिए कि कतिपय कानूनी एवं तकनीकी समस्याओं के चलते पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों का अकादमिक सत्र देरी से चल रहा है, वर्ष 2021 में भारत सरकार द्वारा पैरामेडकल पाठ्यक्रमों हेतु अधिनियम पारित किया गया था जिसके पालन में मध्य प्रद्श में भी नये क़ानून के हिसाब से काउंसिल का गठन किया गया था और एमपी पैरामेडिकल काउंसिल समाप्त की गई थी, लेकिन बाद में नवम्बर 2024 में राज्य की मंत्री परिषद के द्वारा पुनः एमपी पैरामेडिकल काउंसिल को पुनर्जीवित किया गया जिस कारण से मान्यता जारी करने में देरी हुई एवं काउंसिल द्वारा की जा रही सभी कार्यवाहियों विधि सम्मत है जिसमें राज्य शासन से भी अनुमोदन लिया गया है। हाईकोर्ट ने इस तर्क पर कड़ा आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि आखिर ऐसी नीतियां कौन बनाते हैं? गुजरे हुए सत्रों में छात्रों के प्रवेश कैसे दिये जा सकते हैं? याचिकाकर्ता ने मामले में पैरामेडिकल काउंसिल के चेयरमैन और रजिस्ट्रार को पक्षकार बनाया है।
उल्लेखनीय है कि पिछली सुनवाई में कोर्ट को यह भी बताया गया था कि मध्य प्रदेश के उप मुख्यमंत्री डॉ. राजेंद्र शुक्ला पैरामेडिकल काउंसिल के पदेन चेयरमैन हैं, उसके बावजूद चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में अनियमितताएं लगातार जारी हैं। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद सभी मान्यता और प्रवेश प्रक्रिया पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी है। इस मामले की अगली सुनवाई सभी नर्सिंग मामलों के साथ 24 जुलाई को होगी ।
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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक