संघर्ष, सेवा और समर्पण की मिसाल डॉ मनोज को गांव की मिट्टी से जुड़ाव ने ही जनसेवा के लिए किया प्रैरित
पटना, 15 जुलाई (हि.स.)। बिहार में समस्तीपुर जिले के चंदौली ग्राम निवासी डॉ मनोज सिंह ने यह साबित करके दिखाया है कि सोच में ईमानदारी हो तो गांव-समाज में रहकर भी ख्याती प्राप्त की जा सकती है। बिहार में समस्तीपुर जिले के एक छोटे से गांव चंदौली में 7 म
डॉ मनोज सिंह मरीजों को देखते हुए


डॉ मनोज सिंह के अस्पताल वाली फाइल फोटो


पटना, 15 जुलाई (हि.स.)। बिहार में समस्तीपुर जिले के चंदौली ग्राम निवासी डॉ मनोज सिंह ने यह साबित करके दिखाया है कि सोच में ईमानदारी हो तो गांव-समाज में रहकर भी ख्याती प्राप्त की जा सकती है।

बिहार में समस्तीपुर जिले के एक छोटे से गांव चंदौली में 7 मई 1981 को जन्मे डॉ मनोज कुमार सिंह का जीवन संघर्ष, सेवा और समर्पण की मिसाल है। गांव की मिट्टी से अटूट जुड़ाव ने इन्हें जनसेवा के लिए प्रैरित किया।

पिता रामचंद्र सिंह और माता विंध्यवासिनी देवी के सान्निध्य में पले-बढ़े मनोज बचपन से ही मेहनती और संवेदनशील प्रवृत्ति के थे। परिवार के भीतर जब-जब कोई बीमार पड़ता तो मनोज को भीतर से बेचैनी होती थी। उसी समय उनके मन में यह संकल्प जागा कि वे एक दिन डॉक्टर बनेंगे और न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे समाज की सेवा करेंगे। डॉ. मनोज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के विद्यालय से ही प्राप्त की। वर्ष 1997 में उन्होंने दसवी की परीक्षा उतीर्ण की, और 1999 में इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। हिन्दी माध्यम से पढ़े डॉ मनोज ने अपने मन में ही ठान लिया कि पढ़ाई से जिंदगी आसान बनाएंगे।

एमबीबीएस से एम़डी तक का सफर

डॉ मनोज सिंह ने अपनी एमबीबीएस की की पढ़ाई अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एनएमएमसीएच) गया से पूरी की और उसके बाद नालंदा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एनएमसीएच) पटना में एनस्थीसिया विभाग में एक वर्ष तक क्रिटिकल केयर यूनिट में कार्य किया। इसके बाद दिल्ली स्थित सफदरगंज अस्पताल में न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट में एक वर्ष की जूनियर रेजिडेंसी की । उनके लिए यह अनुभव बहुत लाभदायक रहा। इसके बाद पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (पीएमसीएच) से फिजिकल मेडिसिन में एमडी की पढ़ाई पूरी की, जो आर्थराइटिस और उम्रजनित रोगों से जुड़े इलाज का विशेष क्षेत्र है।

डॉ मनोज ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि इस क्षेत्र को चुनने के पीछे उनका स्पष्ट उद्देश्य था - बुजुर्गों को बेहतर जीवन देना । वे मानते हैं कि उम्र के साथ शरीर की जर्जरता के चलते जो दर्द बुजुर्ग सहते है, उसका समाधन चिकित्सा के जरीये संभव है। उन्होंने बताया कि मुझे देश के प्रतिष्ठित संस्थानों और शहरों में नौकरी के कई अवसर मिले, लेकिन मैंने अपने गांव लौटने का निर्णय लिया। यह निर्णय उनके उस जीवन-दर्शन का परिचायक है जिसमें 'जनसेवा ही धर्म है' की भावना सर्वोपरि है। डॉ मनोज बीते 8 वर्षों से लगातार हर रविवार को अपने गांव (चंदौली) में लोगों का मुफ्त में इलाज करते हैं। हालांकि उन्होंने गांव के लिए 100 रुपये नाम मात्र की फीस रख रखी है।

डॉ मनोज ने एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि एक बार उनकी मां बीमार पड़ी और गांव में इलाज संभव न था । पिताजी घर पर नहीं थे। ऐसी स्थिति में मां का इलाज करने के लिए शहर ले जाना उनके लिए काफी मुश्किल हुआ । जब मां को लेकर शहर के अस्पताल पहुंचे तो देखा कि डॉक्टर कैसे विभिन्न रोगों का इलाज कर रहे थे। लोगों रोते हुए डॉक्टर के पास पहुंचने थे और डॉक्टर से मिलने के पश्चात उन्हें तसल्ली हो जाती थी। इस घटना ने मनोज के अंदर गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने निश्चय किया कि वह ऐसा अस्पताल बनाएंगे जो गांव में ही हो और समय पर बेहतर इलाज देकर जिंदगी बचाई जा सके। इस निश्चय को पूरा करने के लिए ही उन्होंने श्री रामचंद्र मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, समस्तीपुर की स्थापना की।

भविष्य की योजनाएं

डॉ. मनोज की दूरदृष्टि आज भी गांव के विकास से जुड़ी है। वे चाहते हैं कि 'रामचंद्र हॉस्पिटल' को और विस्तृत किया जाए ताकि ग्रामीण जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। उनकी योजना है कि प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर एक क्लिनिक हो, जहां न्यूनतम शुल्क पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की सेवाएं उपलब्ध हों। डॉ.मनोज कुमार सिंह प्रेरणास्त्रोत के रूप में भगवान श्रीराम, स्वामी विवेकानंद और महात्मा गांधी को मानते हैं। वे कहते हैं, मैं उनके पदचिह्नों पर चलने की कोशिश करता हूं, क्योंकि मेरा लक्ष्य है- जनकल्याण।

डॉ. मनोज समय-समय पर निःशुल्क स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन करते हैं। इन शिविरों में ब्लड टेस्ट, न्यूरोपैथी टेस्ट, मुफ्त परामर्श और दवाइयां दी जाती हैं। अब तक सैकड़ों गरीबों का इलाज इस माध्यम से संभव हो सका है।

स्वास्थ्य के अलावा उन्होंने समाज के अन्य क्षेत्रों में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। पिछले तीन से चार वर्षों में उन्होंने 30 से 40 हज़ार पौधों का रोपण कराया है। वे बच्चों की शिक्षा में प्रोत्साहन स्वरूप पुरस्कार देते हैं, निर्धन परिवार की बेटियों के विवाह में आर्थिक सहायता करते हैं और सामाजिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद चौधरी