शुभांशु शुक्ला की सफलता और अंतरिक्ष स्टेशन की महत्वाकांक्षा
डॉ. आर. बी. चौधरी भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला 15 जुलाई, 2025 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से 18 दिन का ऐतिहासिक अभियान पूरा कर सकुशल धरती पर लौट आए हैं। उनका यह अभियान एक्सिओम-4 (एक्स-4) अंतरिक्ष यान से पूरा हुआ। यह भ
Global Reactions on Shubhanshu Shukla’s Historic Mission and ISRO’s Space Station Ambitions


Global Reactions on Shubhanshu Shukla’s Historic Mission and ISRO’s Space Station Ambitions


Global Reactions on Shubhanshu Shukla’s Historic Mission and ISRO’s Space Station Ambitions


डॉ. आर. बी. चौधरी

भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला 15 जुलाई, 2025 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से 18 दिन का ऐतिहासिक अभियान पूरा कर सकुशल धरती पर लौट आए हैं। उनका यह अभियान एक्सिओम-4 (एक्स-4) अंतरिक्ष यान से पूरा हुआ। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बड़ी उपलब्धि है। शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा अंतरिक्ष में मानव को भेजने की भारत की बढ़ती क्षमता को दिखाती है। साथ ही, यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के 2035 तक अपना खुद का अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की महत्वाकांक्षी योजना की नींव भी रखती है।

शुभांशु शुक्ला का शानदार अभियान

शुक्ला आईएसएस पर रहने और काम करने वाले पहले भारतीय बने हैं। वह राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। राकेश शर्मा 1984 में एक सोवियत अंतरिक्ष यान से अंतरिक्ष में गए थे। 39 साल के भारतीय वायुसेना अधिकारी शुक्ला एक्स-4 अभियान के चालक थे, जो इसरो, नासा, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) और एक्सिओम स्पेस का एक साझा प्रयास था। 25 जून, 2025 को स्पेसएक्स के ड्रैगन अंतरिक्ष यान से रवाना हुए शुक्ला और उनके दल में पेगी व्हिट्सन (यूएसए), स्लावोज उज़्नांस्की-विस्निवस्की (पोलैंड) और टिबोर कपु (हंगरी) शामिल थे। उन्होंने 60 से ज़्यादा प्रयोग किए, जिनमें इसरो द्वारा डिज़ाइन किए गए सात प्रयोग भी शामिल थे।

शुक्ला के प्रयोगों का मुख्य ध्यान सूक्ष्मगुरुत्वाकर्षण अनुसंधान पर था, जो लंबे समय तक अंतरिक्ष अभियान के लिए बहुत ज़रूरी है। इनमें मूंग और मेथी के बीज अंकुरित करने, मायोजेनेसिस (शून्य गुरुत्वाकर्षण में मांसपेशी कोशिकाओं का विकास), साइनोबैक्टीरिया, सूक्ष्मशैवाल और भारतीय टार्डिग्रेड (ऐसे सूक्ष्मजीव जो अत्यधिक परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं) पर अध्ययन शामिल थे। एक ख़ास प्रयोग सूक्ष्मशैवाल को एक टिकाऊ भोजन स्रोत के रूप में विकसित करना था, जो भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक बड़ी अद्भुत खोज है। शुक्ला ने एक तैरते हुए पानी के बुलबुले का मज़ेदार प्रदर्शन भी किया, जहाँ उन्होंने खुद को पानी मोड़ने वाला बताया, जिसने लोगों का दिल जीत लिया।

इस अभियान पर इसरो का लगभग ₹548 करोड़ ($59 मिलियन) का खर्च आया, जिसमें प्रशिक्षण, प्रक्षेपण का खर्च और वैज्ञानिक अनुसंधान शामिल था। शुक्ला को कोई सीधा वेतन नहीं दिया गया, जिससे यह साफ होता है कि इस अभियान का मुख्य लक्ष्य ज्ञान हासिल करना था। डॉकिंग, दल समन्वय और आपातकालीन प्रोटोकॉल में उनका अनुभव इसरो के गगनयान कार्यक्रम (जो 2027 में तय है) के लिए बहुत बहुमूल्य डेटा देगा।

इसरो के अंतरिक्ष स्टेशन का सपना

इसरो की 2035 तक एक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की घोषणा से काफ़ी उत्साह है। इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने एक मॉड्यूलर स्टेशन की योजनाओं के बारे में बताया, जिसकी शुरुआत 2028 तक एक एकल मॉड्यूल के प्रक्षेपण से होगी। शुरुआत में इसे 120-140 किमी की ऊंचाई पर तीन अंतरिक्ष यात्रियों को ठहराने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जिसे बाद में 15-20 दिनों के लंबे अभियान के लिए 400 किमी पर संचालित किया जा सकता है। यह गगनयान अभियान के बाद होगा, जिसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को स्वदेशी अंतरिक्ष यान और प्रक्षेपण यान का उपयोग करके कक्षा में भेजना है।

प्रस्तावित स्टेशन पदार्थ विज्ञान, जीव विज्ञान और खगोल भौतिकी में सूक्ष्मगुरुत्वाकर्षण अनुसंधान के लिए एक केंद्र के रूप में काम कर सकता है। यह इसरो के चंद्रमा और अंतरग्रहीय अन्वेषण के दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुरूप है, जिसमें 2040 तक चंद्रमा पर एक अंतरिक्ष यात्री अभियान की योजना भी शामिल है। शुक्ला के एक्स-4 अभियान ने कक्षीय संचालन, दल के स्वास्थ्य और प्रयोग प्रबंधन में महत्वपूर्ण जानकारी दी है, जो सीधे स्टेशन के विकास में मदद करेगी।

वैश्विक सहयोग और चुनौतियाँ

इसरो का अंतरिक्ष स्टेशन अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक मंच के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें संभावित रूप से नासा, ईएसए और अन्य एजेंसियां शामिल होंगी, जो आईएसएस मॉडल के समान है। साझेदारी के प्रति खुले विचार लागत को कम कर सकती है और वैज्ञानिक परिणामों को बढ़ा सकती है, जिससे भारत आईएसएस के बाद के युग में एक अग्रणी के रूप में उभर सकता है, क्योंकि वर्तमान स्टेशन 2030 तक सेवामुक्त होने वाला है। हालाँकि, भू-राजनीतिक तनाव और चीन के तियांगोंग स्टेशन और एक्सिओम स्पेस जैसे निजी उपक्रमों से प्रतिस्पर्धा सहयोग को जटिल बना सकते हैं।

तकनीकी चुनौतियाँ काफ़ी ज़्यादा हैं। इसरो को उन्नत जीवन-समर्थन प्रणालियों, विकिरण परिरक्षण और डॉकिंग तंत्र विकसित करने होंगे। पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान और प्रणोदन प्रणालियों में निवेश का लक्ष्य लागत को कम रखना है, जैसा कि $74 मिलियन के मंगलयान अभियान में दिखाया गया, भारत की किफायती इंजीनियरिंग के लिए प्रतिष्ठा का लाभ उठाना है। शुक्ला के अभियान ने वास्तविक समय टेलीमेट्री, आपातकालीन प्रतिक्रिया और दल समन्वय में इसरो की विशेषज्ञता को बढ़ाया है, जो अंतरिक्ष स्टेशन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं।

घरेलू और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

शुक्ला के अभियान ने भारत में व्यापक गर्व पैदा किया है, जिसमें स्मृति ईरानी जैसे नेताओं ने इसे भारतीय अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक बड़ी छलांग बताया है। जनता में उत्साह स्पष्ट है, हालांकि कुछ लोग इसकी जटिलता के कारण अंतरिक्ष स्टेशन के पहले मॉड्यूल के लिए 2028 की समय-सीमा पर सवाल उठाते हैं।

धन की व्यवस्था एक चुनौती बनी हुई है, सरकार अंतरिक्ष आकांक्षाओं और स्वास्थ्य सेवा जैसी ज़मीनी प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बना रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, इसरो के लागत-प्रभावी दृष्टिकोण की सराहना की जाती है, लेकिन व्यापक गगनयान के बाद के परीक्षणों की आवश्यकता को देखते हुए 2028 की समय सीमा की व्यवहार्यता पर सवाल उठाया जाता है।

व्यापक निहितार्थ

शुक्ला का अभियान और इसरो के अंतरिक्ष स्टेशन की योजनाएँ अंतरिक्ष अन्वेषण को लोकतांत्रिक बना सकती हैं, ब्राजील या दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों को प्रेरित कर सकती हैं। इस परियोजना से भारत के विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) शिक्षा और एयरोस्पेस उद्योगों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे नवाचार और रोज़गार सृजन को बढ़ावा मिलेगा। शुक्ला के जनसंपर्क प्रयासों ने, जिसमें छात्रों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत शामिल है, एक नई पीढ़ी को प्रेरित किया है।

शुभांशु शुक्ला के एक्स-4 अभियान ने भारत को मानव अंतरिक्ष उड़ान में एक उभरते हुए सितारे के रूप में स्थापित किया है, जो गगनयान कार्यक्रम और इसरो के अंतरिक्ष स्टेशन आकांक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण अनुभव प्रदान करता है। भारत का अंतरिक्ष स्टेशन एक साहसी सोच है, जो अन्वेषण के अगले युग में नेतृत्व करने के अपने इरादे का संकेत देता है। तकनीकी, वित्तीय और राजनयिक चुनौतियों के बावजूद, इसरो का ट्रैक रिकॉर्ड और शुक्ला की सफलता सितारों के बीच भारत के लिए एक उज्ज्वल भविष्य का संकेत देते हैं।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ आर बी चौधरी