गुरु पूर्णिमा: महर्षि वेदव्यास को किया गया स्मरण, भारतीय शिक्षण मंडल ने प्रारंभ की व्यास-पूर्णिमा की परंपरा
— गुरु अपने शिष्यों में सदैव जीवित रहते हैं: प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी वाराणसी, 11 जुलाई (हि.स.)। भारतीय शिक्षण मंडल, काशी प्रांत एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को ‘भारतीय संस्कृति में व्यास परंपरा’ विषय
‘भारतीय संस्कृति में व्यास परंपरा’ विषय पर गोष्ठी


— गुरु अपने शिष्यों में सदैव जीवित रहते हैं: प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी

वाराणसी, 11 जुलाई (हि.स.)। भारतीय शिक्षण मंडल, काशी प्रांत एवं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को ‘भारतीय संस्कृति में व्यास परंपरा’ विषय पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। यह आयोजन गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर किया गया, जिसमें विद्वत्जनों ने महर्षि वेदव्यास के योगदान को श्रद्धापूर्वक स्मरण किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ द्विवेदी ने कहा, “गुरु अपने शिष्यों में जीवित रहते हैं। हमारी श्रुति और स्मृति की विशाल ज्ञान-परंपरा इसी गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से संरक्षित रही है। जब मध्यकाल में हमारी संस्कृति पर संकट आया, तब भी मठों और मंदिरों ने इस परंपरा को जीवित रखा।”

मुख्य वक्ता प्रो. शरदिंदु कुमार तिवारी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की प्रतिष्ठा उसकी संस्कृति और साहित्य पर आधारित होती है। “महर्षि वेदव्यास के बिना न संस्कृति है, न परंपरा, न साहित्य और न ही भारत की कल्पना संभव है। वेदव्यास भारतीय संस्कृति के मूल प्रवर्तक हैं। महाभारत का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि दुर्योधन जब विजय की आशा लेकर अपनी माता गांधारी के पास जाता है, तब वह कहती हैं – 'यतो धर्म: ततो जयः'। यह उद्घोष आज भी समय के लिए उतना ही प्रासंगिक है।”

मुख्य अतिथि, भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख डॉ. अनिल कुमार सिंह ने बताया कि “संस्था अपने स्थापना काल से ही 'चरैवेति चरैवेति' के पथ पर अग्रसर है और भारतीय शिक्षा के पुनरुत्थान के लिए सतत कार्यरत है। गुरु पूर्णिमा, जिसे हम व्यास पूजा के रूप में भी मनाते हैं, संस्था के प्रमुख उत्सवों में से एक है।” कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के शोध छात्र सुशांत कुमार पाण्डेय ने किया। कुलगीत की प्रस्तुति दिव्या शुक्ला, स्मिता पाण्डेय, अपराजिताश्री एवं अभिषेक ने दी। स्वागत वक्तव्य एवं विषय प्रवर्तन अशोक विश्नोई ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अशोक कुमार ज्योति ने किया। कल्याण मंत्र का पाठ शोध छात्रा साधना सरोज द्वारा किया गया।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी