बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया के बीच सीमांचल जिलों के आधार सेचुरेशन से उठे गंभीर सवाल
-सीमांचल जिलों में आधार सेचुरेशन का आंकड़ा 126 प्रतिशत पहुंचा पटना, 10 जुलाई (हि.स.)। बिहार में जारी मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) कार्य के बाद इसके साथ जरुरी कागजात लगाने और इसे जमा करने की होड़ सी मची हुई है। चुनाव आयोग ने इसके लिए 25 जुलाई की सम
आधार कार्ड की फाइल फोटो


मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश जी की फोटो


-सीमांचल जिलों में आधार सेचुरेशन का आंकड़ा 126 प्रतिशत पहुंचा

पटना, 10 जुलाई (हि.स.)। बिहार में जारी मतदाता सूची पुनरीक्षण (एसआईआर) कार्य के बाद इसके साथ जरुरी कागजात लगाने और इसे जमा करने की होड़ सी मची हुई है। चुनाव आयोग ने इसके लिए 25 जुलाई की समय सीमा भी तय कर दी है। इस एसआईआर कार्य के दौरान बिहार के मुस्लिम बाहुल सीमांचल के जिलों में चौकाने वाले आधार संतृप्ति (आधार सेचुरेशन) के आंकड़े सामने आये हैं। यहां पर सेचुरेशन का यह आंकड़ा 120 से 126 फीसदी तक पहुंच गया है।इस बाबत चुनाव आयोग ने कहा है कि आधार कार्ड को नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा। यही नही बीते सप्ताह मुख्य चुनाव आयोग ने विपक्षी दलों को

इस संबंध में निर्देश भी दिया था।

बिहार के किशनगंज, अररिया, कटिहार और पूर्णिया में आधार सेचुरेशन के ताजा आंकड़ों ने राजनीतिक गलियारों और सुरक्षा एजेंसियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। जहां राज्य में इन चार जिलों को छोड़कर औसत सेचुरेशन लगभग 94 प्रतिशत है, वहीं मुस्लिम बहुल सीमांचल जिलों में यह आंकड़ा 126 प्रतिशत तक पहुंच गया है। यह स्थिति न केवल विसंगति की ओर इशारा करती है, बल्कि संभावित डुप्लिकेट या फर्जी पहचान पत्रों की आशंका भी खड़ी करती है।

किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68 प्रतिशत है, जबकि आधार सेचुरेशन 126 प्रतिशत, कटिहार में मुस्लिम आबादी 44 प्रतिशत आधार सेचुरेशन 123 प्रतिशत, अररिया मुस्लिम आबादी 43 प्रतिशत आधार सेचुरेशन 123 प्रतिशत और पूर्णिया में मुस्लिम आबादी 38 प्रतिशत तथा आधार सेचुरेशन 121 प्रतिशत है।

विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि इन आंकड़ों के अनुसार हर 100 व्यक्तियों पर 120 से अधिक आधार कार्ड दर्ज हैं। यह स्थिति आधार की मूलभूत नीति-एक व्यक्ति, एक पहचान-पर सवाल खड़े करती है।

इसका सीधा मतलब यह है कि इन जिलों में वास्तविक जनसंख्या से कहीं अधिक आधार कार्ड बनाए गए हैं। आधार सेचुरेशन का तात्पर्य यह है कि किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या की तुलना में कितने प्रतिशत लोगों ने आधार बनवा लिया है। सामान्यतः यह आंकड़ा 100 प्रतिशत के आसपास होना चाहिए, लेकिन जब यह 100 फीसदी से अधिक हो जाता है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है।

बिहार के सीमांचल जिलों का यह यह डेटा गंभीर सवालों को खड़ा कर रहा है।

सूत्रों का कहना है कि क्या यह अवैध घुसपैठ का संकेत है? पूर्वोत्तर सीमाओं से सटे इन जिलों में बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की आशंकाएं पहले से ही जताई जाती रही हैं। इतनी अधिक संख्या में अतिरिक्त आधार कार्डों का जारी होना इन संदेहों को मजबूत करता है। बिना दस्तावेजों के विदेशी नागरिकों को यदि अवैध रूप से आधार कार्ड दिए गए हैं, तो यह न सिर्फ चुनावी प्रक्रिया बल्कि सरकारी योजनाओं के दुरुपयोग का भी बड़ा खतरा है। सरकार और एजेंसियां इस विसंगति के पीछे संभावित कारणों की जांच कर रही हैं। हालांकि अभी तक इन आरोपों के लिए कोई ठोस सरकारी प्रमाण नहीं आया है, लेकिन संदेह की सुई सीमांचल की भौगोलिक स्थिति की ओर भी इशारा करती है।

बिहार में इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक उबाल चरम पर है। राजद और कांग्रेस ने आधार कार्ड को मतदाता सूची से जोड़ने की प्रक्रिया का विरोध किया है। तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के खिलाफ बिहार बंद भी बीते बुधवार को बुलाया था। आज सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर सुनवाई भी है। विपक्ष का तर्क है कि आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए इसके आधार पर किसी को मतदाता सूची से बाहर करना संवैधानिक उल्लंघन है।

भाजपा का आरोप-

भाजपा कोटे से बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इस बाबत बातचीत में कहा कि विपक्ष अवैध घुसपैठियों को मतदाता बनाने की योजना पर काम कर रहा है। सीमांचल में बढ़ा हुआ आधार सेचुरेशन चुनावी हेरफेर का संकेत है। उन्होंने कहा कि यह बिहार सहित पूरे सीमांचल क्षेत्र की डेमोग्राफी बदलने की साजिश है।

आधार कार्ड नागरिकता का सबूत नहीं : चुनाव आयोग

दूसरी ओर चुनाव आयोग ने साफ किया है कि आधार कार्ड को नागरिकता का सबूत नहीं माना जाएगा। बिहार में चल रहे एसआईआर अभियान के तहत आधार, जन्म प्रमाणपत्र या डोमिसाइल सर्टिफिकेट मांगे जा रहे हैं। यह मुद्दा केवल डेटा का नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा, चुनाव की पारदर्शिता और नागरिक अधिकारों से जुड़ा है। एक ओर, सरकार को फर्जी पहचान को रोकना जरूरी है। दूसरी ओर, असली नागरिकों को अधिकार से वंचित न किया जाए, इसकी भी गारंटी जरूरी है।

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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद चौधरी