कुबेरेश्वरधाम में गुरु पूर्णिमा महोत्सव में पहुंचे तीन लाख से अधिक श्रद्धालु
- जीवन में माता, पिता, शिक्षक और सद्गुरु- ये चार गुरु आपको सद्मार्ग की ओर ले जाते हैं: पंडित प्रदीप मिश्रा सीहोर,10 जुलाई (हि.स.)। मध्य प्रदेश के सीहोर जिला मुख्यालय स्थित कुबेरेश्वरधाम पर प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के मार्गदर्शन में आयोज
कुबेरेश्वरधाम पर जारी गुरु पूर्णिमा महोत्सव


कुबेरेश्वरधाम में गुरु पूर्णिमा महोत्सव


कुबेरेश्वरधाम में गुरु पूर्णिमा महोत्सव


- जीवन में माता, पिता, शिक्षक और सद्गुरु- ये चार गुरु आपको सद्मार्ग की ओर ले जाते हैं: पंडित प्रदीप मिश्रा

सीहोर,10 जुलाई (हि.स.)। मध्य प्रदेश के सीहोर जिला मुख्यालय स्थित कुबेरेश्वरधाम पर प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा के मार्गदर्शन में आयोजित छह दिवसीय गुरु पूर्णिमा महोत्सव गुरुवार को संपन्न हो गया। यहां अतिम दिन गुरु पूर्णिमा पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। अल सुबह से ही श्रद्धालुओं की कतारे लगी हुई थी, इसके बाद सुबह सात बजे से पंडित प्रदीप मिश्रा ने यहां पर आए श्रद्धालुओं को सामूहिक रूप से देर शाम तक दीक्षा ग्रहण करने के साथ दर्शन, प्रवचन और भगवान की पूजा अर्चना की। अंतिम दिन भंडारे में करीब तीन लाख से अधिक श्रद्धालुओं को प्रसादी का वितरण किया। करीब 12 घंटे से अधिक समय तक चले भव्य आयोजन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। यहां पर छह दिवसीय कार्यक्रम देश के कोने-कोने से श्रद्धालुओं ने कथा, प्रवचन और दीक्षा प्राप्त की।

कुबेरेश्वरधाम पर गुरु पूर्णिमा महोत्सव के छठवें दिवस कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने भव्य पंडाल में अपने प्रवचन के दौरान कहा कि बचपन खेल में खोया, जवानी नींद भर सोया, बुढ़ापा देख कर रोया, वही किस्सा पुराना है। हर जन्म में यही होता है। सारा जीवन बीत जाता है। अंतिम समय में जब शक्ति समाप्त होती है, शरीर में तब जीने का तरीका समझ में आता है तब व्यक्ति जीना चाहता है, परंतु शक्ति न होने के कारण सिर्फ पश्चाताप ही कर पाता है और यही सोचता है कि चलो अब तो जीवन बीत गया अगले जन्म में करेंगे और ऐसे ही वह हर जन्म में डालता रहता है और कितने ही जन्म-जन्म बीत जाते हैं और व्यक्ति का मोक्ष नहीं हो पाता। इसलिए सावधान रहें अपने बड़े बुजुर्गों की बातों से लाभ उठाएं, वेदों का अध्ययन करें और सलाह मानें, आप का कल्याण हो जाएगा। वैसे से जीवन में चार गुरु रहते हैं, जिसमें माता, पिता, शिक्षक और सद्गुरु जो आपको सद्मार्ग की ओर ले जाता है।

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि हर साल यहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर भगवान शिव की कृपा से सत्य कार्य करने और अपने जीवन को सफल बनाए जाने के लिए दीक्षा लेने आते है उन्होंने अपने संदेश में कहाकि आप सभी से मेरा निवेदन है कि आप जिस भगवान को मानते है उसको अपना गुरु बनाओ, क्योंकि भगवान शिव से बड़ा कोई गुरु नहीं है, इसलिए शंकर को आदि गुरु कहा जाता है। मां पार्वती ने भगवान शिव को अपना गुरु बनाया था। उन्होंने गुरु का महत्व बताते हुए कहाकि सद्गुरु या आध्यात्मिक गुरु, का मुख्य उद्देश्य अपने शिष्यों को सेवा और धर्म के मार्ग पर प्रेरित करना और उन्हें इस मार्ग पर चलने में मदद करना है। सद्गुरु, एक मार्गदर्शक के रूप में, शिष्यों को सही दिशा दिखाते हैं और उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति की ओर ले जाते हैं।

भगवान श्री कृष्ण और ऋषि दुर्वासा की कथा का वर्णन

पंडित मिश्रा ने कहाकि गुरु आपकी परीक्षा लेते है। भगवान श्री कृष्ण और ऋषि दुर्वासा के बीच एक ऐसा प्रसंग हुआ था जिसमें एक शिष्य की अपने गुरु के लिए अविश्वसनीय भक्ति दिखती है। कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण अपने गुरु का मान रखने के लिए न केवल रथ का घोड़ा बने बल्कि अपने मृत्यु के सत्य का ज्ञान होने के बावजूद अपने गुरु के सम्मान की खतिर उस मृत्यु के कारण को अपना लिया था। एक बार दुर्वासा ऋषि अपने शिष्यों के साथ द्वारका नगरी के पास से गुजर रहे थे। राह में उन्होंने अपने शिष्य श्री कृष्ण से मिलने की इच्छा हुई। उन्होंने अपने शिष्यों को श्री कृष्ण को बुलाकर लाने को भेजा। उनके शिष्य ने द्वारका जाकर द्वारकाधीश को उनके गुरुदेव का संदेश दिया। संदेश सुनते ही श्री कृष्ण नंगे पैर दौड़े-दौड़े अपने गुरु से मिलने आए और उनसे द्वारका नगरी चलने के लिए विनती की लेकिन दुर्वासा ऋषि जी ने चलने से इनकार कर दिया। कृष्ण ने अपने गुरु से पुन: चलने के लिए आग्रह किया। दुर्वासा ऋषि मान गये लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि वो जिस रथ से जायेंगे, उसे घोड़े नहीं खीचेंगें बल्कि एक तरफ से कृष्ण और एक तरफ से उनकी पत्नी रुक्मिणी खीचेंगी। श्री कृष्ण मान गये और वह दौड़ते हुए पत्नी रुक्मिणी के पास गए। रुक्मिणी को उन्होंने गुरुदेव दुर्वासा की शर्त बताई। रुक्मिणी मान गईं और फिर दोनों गुरुदेव के पास वापस आये और उनसे रथ पर बैठने की विनती की। उन्होंने इस प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया।

संकट के समय गुरु नहीं गुरु मंत्र काम आता

पंडित श्री मिश्रा ने कहाकि संकट के समय गुरु नहीं गुरु मंत्र काम आता है। शहर में गीता बाई पाराशर रही जो जगह-जगह भोजन बनाने का कार्य करती थीं। उन्होंने श्रीमद भागवत कथा का संकल्प लिया था पर पैसा नहीं था। उन्होंने कथा करवाई, उस समय न भागवत थी न ही धोती कुर्ता। उन्होंने कहा कि पहले आप गुरु दीक्षा लीजिए, गुरु दीक्षा लेने हम इंदौर गोवर्धन नाथ मंदिर गए। वहां से दीक्षा ली। मेरे गुरुजी ने ही मुझे धोती पहनना सिखाई, और उन्होंने छोटी सी पोथी मेरे हाथ में दे दी। वर्तमान में भी उनके मंत्र और उनके आशीर्वाद से मैं धर्म का कार्य कर रहा हूं।

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर