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– इरी के वैज्ञानिकों की किसानों से अपील
वाराणसी, 10 जुलाई (हि.स.)। धान की सीधी बुवाई (डीएसआर) वाले क्षेत्रों में जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान (इरी) का दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क), वाराणसी, अत्याधुनिक सेंसर-आधारित सिंचाई प्रबंधन तकनीकों पर फील्ड स्तर पर शोध कर रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के उद्देश्य से वैज्ञानिकों की टीम मिट्टी की नमी, फसल की जल आवश्यकता और सिंचाई के उपयुक्त समय का गहन विश्लेषण कर रही है।
इस कड़ी में पनियारा गांव में गुरुवार को विस्तृत फील्ड स्टडी की गई। इसमें सस्य विज्ञान, भू-स्थानिक सूचना प्रणाली, कृषि अर्थशास्त्र और जल विज्ञान के विशेषज्ञ शामिल हुए। अध्ययन का नेतृत्व इरी मुख्यालय के वरिष्ठ जल वैज्ञानिक डॉ. एंटोन उरफेल्स ने किया। टीम ने विभिन्न सिंचाई विधियों में मिट्टी की नमी की तकनीकी जांच की और यह समझने का प्रयास किया कि डीएसआर खेतों में सिंचाई का सबसे उपयुक्त समय क्या होना चाहिए।
इस शोध में उच्च गुणवत्ता वाला डेटा एकत्र करने के लिए कई आधुनिक उपकरणों का प्रयोग किया जा रहा है—जैसे मिट्टी की नमी मापने वाले सेंसर, जल स्तर की स्वचालित निगरानी प्रणाली और ड्रोन आधारित मैपिंग टूल्स। इन तकनीकों के माध्यम से वैज्ञानिक मिट्टी की नमी में होने वाले बदलाव, फसल की प्रतिक्रिया और विकास की विभिन्न अवस्थाओं में जल उपयोग दक्षता का विश्लेषण कर रहे हैं।
आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने बताया कि पानी की कमी वाले इलाकों में धान की खेती को टिकाऊ बनाए रखने के लिए डेटा-आधारित सिंचाई प्रबंधन बेहद जरूरी है। इरी स्थान-विशेष अनुसंधान और आधुनिक निगरानी उपकरणों के माध्यम से ऐसे समाधान विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो जल बचत के साथ-साथ उत्पादकता और जलवायु अनुकूलता को भी बढ़ावा दें। इस अध्ययन के माध्यम से डीएसआर पद्धति वाले खेतों में पानी की वास्तविक मांग को बेहतर ढंग से समझा जा सकेगा, जिससे क्षेत्र विशेष के लिए सटीक सिंचाई सलाह तैयार की जा सकेगी। अंतिम लक्ष्य यह है कि पूरी क्षेत्रीय प्रणाली में जलवायु-अनुकूल और संसाधन-कुशल धान उत्पादन तकनीक को बढ़ावा मिले। डॉ. एंटोन ने बताया कि जल संकट झेल रहे क्षेत्रों में सिंचाई प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है कि हम समय और स्थान के अनुसार मिट्टी में नमी के बदलाव को विस्तार से समझें। जब सेंसर से मिले डेटा को भू-स्थानिक विश्लेषण से जोड़ा जाता है, तब क्षेत्र-विशेष के अनुसार प्रभावी सिंचाई प्रोटोकॉल बनाए जा सकते हैं, जिससे व्यापक स्तर पर जल प्रबंधन की दक्षता और संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग संभव हो पाता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी