तहसील दिवस में जन समस्याओं के त्वरित निस्तारण से जनता में जागी उम्मीद
हरिद्वार, 1 जुलाई (हि.स.)। तहसील में जुलाई माह के प्रथम मंगलवार को आयोजित तहसील दिवस में पहली बार जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने जनता की समस्याएं सीधे तौर पर सुनी और कई मामलों का मौके पर ही निस्तारण कर अधिकारियों की कार
तहसील दिवस पर जन सुनवाई करते डीएम


हरिद्वार, 1 जुलाई (हि.स.)। तहसील में जुलाई माह के प्रथम मंगलवार को आयोजित तहसील दिवस में पहली बार जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने जनता की समस्याएं सीधे तौर पर सुनी और कई मामलों का मौके पर ही निस्तारण कर अधिकारियों की कार्यप्रणाली में चुस्ती का संदेश दिया।

60 जन समस्याएं डीएम के समक्ष प्रस्तुत की गईं, जिनमें राजस्व विभाग, तालाब पर अतिक्रमण, जल निकासी,विद्युत विभाग, जल संस्थान, पुलिस और आपदा प्रबंधन विभाग से जुड़ी शिकायतें प्रमुख रहीं। जिलाधिकारी ने तत्काल समाधान योग्य समस्याओं को मौके पर ही हल करवा दिया, जबकि बाकी मामलों के लिए संबंधित विभागों को एक सप्ताह के भीतर निस्तारण करने के सख्त निर्देश जारी किए। वही अतिक्रमण को लेकर सख्त नजर आए, उन्होंने सभी लेखपालों को सरकारी भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने के सख्त आदेश दिए हैं।

तहसील दिवस के दौरान कई ग्रामीणों ने भू-अधिकारों, बिजली आपूर्ति में बाधा, जल संकट और आपदा राहत से जुड़ी समस्याएं उठाईं। डीएम दीक्षित ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे आमजन की समस्याओं को प्राथमिकता पर लेकर समाधान सुनिश्चित करें।

इस अवसर पर तहसील प्रशासन के साथ-साथ एसडीएम, सीओ, तहसीलदार, लेखपाल, जल निगम, ऊर्जा निगम और अन्य विभागों के अधिकारी भी मौजूद रहे। डीएम की सक्रिय भागीदारी और समस्या-समाधान की गंभीरता को देखकर लोगों में विश्वास की एक नई लहर दिखाई दी।

जनसुनवाई के बाद डीएम ने स्पष्ट संदेश दिया कि जनहित से जुड़ी समस्याओं में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने अधिकारियों को चेताया कि अगर तय समयसीमा में निस्तारण नहीं हुआ, तो संबंधित पर जिम्मेदारी तय की जाएगी।

डीएम की इस पहल से न केवल आमजन को राहत मिली है, बल्कि सरकारी तंत्र में भी पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर सकारात्मक संकेत गया है। लक्सर वासियों ने जिलाधिकारी के इस रुख की सराहना करते हुए इसे प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक मजबूत कदम बताया।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला