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हरिद्वार, 7 जून (हि.स.)। शांतिकुंज के मुख्य सभागार में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय शिक्षक गरिमा शिविर के उद्घाटन सत्र के अवसर पर शांतिकुंज महिला मंडल प्रमुख श्रीमती शैफाली पण्ड्या ने कहा कि जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए साधना अनिवार्य है। चाहे वह विद्यार्थी का अध्ययन हो या खिलाड़ी का खेल हो,अभ्यास और साधना ही उन्हें सफलता तक पहुंचाती है। उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व का समग्र विकास भी साधना से ही संभव है।
इस शिविर में उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, बिहार एवं दक्षिण भारतीय राज्यों के शिक्षक-शिक्षिकाएं तथा भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के सक्रिय कार्यकर्त्ता बड़ी संख्या में सम्मिलित हुए। गायत्री विद्यापीठ व्यवस्था मण्डल की प्रमुख श्रीमती पण्ड्या ने कहा कि जैसे बीज को विकसित होने के लिए उपजाऊ व संस्कारित भूमि की आवश्यकता होती है, वैसे ही बच्चों को ऐसा वातावरण और संस्कार मिलने चाहिए जहाँ उनकी प्रतिभा का समुचित विकास हो सके।
शिक्षकों की यह जिम्मेदारी है कि वे विद्यार्थियों को केवल पाठ्यक्रम की शिक्षा न दें, बल्कि उनके जीवन में आदर्शों, आत्मविश्वास, सेवा, सच्चाई व आत्मविकास के मूल्यों का भी सिंचन करें। उन्होंने आगामी वर्ष में परम वंदनीया माताजी की जन्मशताब्दी वर्ष की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि उनके संगठनात्मक व सांस्कृतिक योगदानों को जन-जन तक पहुंचाना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है।
शिविर के पहले दिन विविध सत्रों में भारतीय संस्कृति, नैतिक शिक्षा, मूल्यनिष्ठ जीवनशैली और आधुनिक शैक्षिक चुनौतियों पर चर्चा हुई। इस अवसर पर केपी दुबे ने समस्त विश्व को भारत का अजस्र अनुदान विषय पर विशेष जानकारी दी। शिविर के अन्य वक्ताओं में नमोनारायण पाण्डेय, सुधीर श्रीपाद, गोपाल शर्मा और कमल नारायण ने भी संबोधित किया। सभी शिक्षकों ने जन्मशताब्दी वर्ष की तैयारियों में सक्रिय योगदान भागीदारी करने का संकल्प भी लिया।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ.रजनीकांत शुक्ला