हो समाज में खजूर के पत्ते से चटाई बीनने की परंपरा लुप्त होने के कगार पर
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पश्चिम सिंहभूम, 7 जून (हि.स.)। कोल्हान में आदिवासी हो समुदाय में सदियों से चली आ रही खजूर के पत्ते से चटाई बीनने की परंपरा अब लुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी है।

इनकी जगह अब बाजार की रेडीमेड चटाई लेने लगी है। इससे हो समुदाय के सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में अब कठिनाई होने लगी है। क्योंकि हो समाज में सगाई हो, शादी हो या फिर जनजातीय पर्व हो सांस्कृतिक अवसर इस चटाई का अपना महत्व है।

हो समाज में विवाह संबंधी सारे द्विपक्षीय वार्तालाप (दूल्हा तथा दुल्हन पक्ष) भी इस चटाई पर बैठकर संपन्न किये जाने की परंपरा है। इसके लिये कुरसी का प्रयोग पर सामाजिक प्रतिबंध है।

यह परंपरा हो समाज में बेहद पुरानी है। खजूर चटाई पर वर या वधू पक्ष को बैठाने का रिवाज है। ऐसे में खजूर चटाई की अनुपलब्धता अब परेशानियां खड़ी कर रहा है। ऐसे में मंगलाहाट में बिकनेवाली खजूर की चटाई राहत दे रही है।

पहले गांव-देहातों में बुजुर्ग महिलाओं द्वारा पार्ट टाईम इस चटाई को बीनने की परंपरा रही है।

परंपरा के अनुसार, महिलाएं गरमी के मौसम में पेड़ों की छांव में हंसी-ठिठोली करते हुए खजूर चटाई बीनती थीं। हर गांव में तब यह दृश्य आम था। घर घर में खजूर चटाई दीवार से टंगी हुई दिख जाती थी।

लेकिन आजकल खजूर पत्ते की अनुपलब्धता तथा बाजारू चटाई की सर्वसुलभता ने इस परंपरा को ही क्षीण कर दिया है। अब लोग खजूर की चटाई की जगह बाजारू रेडीमेड चटाई लेने में रूचि दिखा रहे हैं।

दरअसल रेडीमेड चटाई हल्का और कहीं भी ले जाने में आसान होती है। इसलिये भी इसकी उपयोगिता बढ़ी है। जबकि खजूर चटाई की ऐसी खासियत नहीं है। क्योंकि बड़ा होने के कारण यह उठाने, ले जाने और रखने में भी कठिन है।

हो समाज के बुद्धिजीवी कहते हैं कि घर में चटाई बीनने की यह परंपरा लुप्त नहीं होनी चाहिये। ताकि हमें शादी-ब्याह में परेशानी ना हो। वैसे भी पारंपरिक हो समाज के विवाह में बाजारू चटाई का उपयोग सर्वथा वर्जित है। मान्यता सिर्फ खजूर चटाई की ही है, जो सदियों से हो समाज में प्रचलित है।

उल्लेखनीय है कि आदिवासी हो समाज में वैवाहिक रस्मों की अदायगी में खजूर चटाई का उपयोग पारंपरिक है। यह हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग भी है। इसलिये इस खजूर चटाई के प्रचलन को बनाये रखने की आवश्यकता है। अन्यथा हमारी संस्कृति एक दिन अतीत के किस्से कहानियों में ही सुनने को मिलेगा।

चटाई बीनने की परंपरा को संरक्षण की जरूरत है : डोबरो बुड़ीउली

सामाजिक और सांस्कृतिक जानकार हो साहित्यकार एवं कवि डोबरो बुड़ीउली का कहना है कि खजूर चटाई हमारी सामाजिक तथा सांस्कृतिक अंग है। इसके बिना हमारी परंपराएं अधूरी हैं। इसलिये हमें खजूर चटाई बीनने की पुरानी परंपरा को बचाये रखने की जरूरत है।

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हिन्दुस्थान समाचार / गोविंद पाठक