हमारा दायित्व है कि हम अपने पूर्वजों का बलिदान याद रखें : मण्डलायुक्त
सम्बोधित करते मण्डलायुक्त


--9वां पहली आजादी महोत्सव, प्रभात फेरी व शहीदों का नमनप्रयागराज, 07 जून (हि.स.)। आज हम उस मिट्टी में खड़े हैं जहां हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिया। यह बलिदान किसी वस्तु को पाने या लाभ के लिए नहींं दिया गया, बल्कि हमारी आजादी के लिए दिया गया। इस तरह के कार्यक्रम अपनी मिट्टी से लोगों को जोड़ते हैं। हमारा दायित्व है कि हम अपने पूर्वजों का बलिदान याद रखें।उक्त विचार मण्डलायुक्त विजय विश्वास पंत ने शनिवार को भारत भाग्य विधाता संस्था द्वारा आयोजित 9वें पहली आजादी महोत्सव का उद्घाटन करने के उपरान्त व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि 1857 की जन क्रांति को दबा दिया गया। अंग्रेज चाहते थे कि हम गुलाम बने रहें, इसलिए हमारे मन में इस तरफ की बातें भरी जाती थी कि हम गुलामी के लिए ही बने हैं। हमारे पूर्वजों के बलिदान एवं हमारे इतिहास को दबा दिया गया। हम लोगों का दायित्व है कि हम अपने पूर्वजों के बलिदान को याद रखें और उससे प्रेरणा लें। उन्हांने कहा कि हमारा गौरवशाली इतिहास रहा है। मध्यकाल में जरूर कुछ कमियां रही हैं। लेकिन इसके बावजूद हमारा इतिहास जबरदस्त है। हमने बहुत कुछ लिखा है, हम किसी से कम नहीं हैं। यह प्रेरणा हमें अपने पूर्वजों से मिलती है।

पुलिस महानिरीक्षक अजय कुमार मिश्र ने कहा कि हमारे इतिहास को ताकतवर लोगों ने दबा दिया। उस काल में जब वह ताकत में थे, हमारे सर्वोच्च बलिदान को भी नकार दिया गया। सावरकर ने पहली बार 1857 की क्रांति पर लिखा। उसमें प्रयागराज की क्रांति का भी जिक्र है। उन्होंने अंग्रेजों के दमन का जिक्र करते हुए कहा कि उनके लिए सबसे कम मेहनत वाला काम था कि पूरे गांव को घेर लो और आग लगा दो। उन्होंने कहा कि 1857 की क्रांति के 50 साल बाद इस क्रांति पर पुस्तक प्रकाशित करने का प्रयास किया गया जिसे ब्रिटिश गवर्नमेंट ने सदैव रोका। किंतु बाद में सावरकर ने यह पुस्तक प्रकाशित की।

उन्होंने कहा कि प्रयागराज की क्रांति में बलिदानियों की संख्या कितनी थी इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि पूरे देश में लगभग 6000 अंग्रेज और गोरे लोग मारे गए थे और इतनी संख्या में सिर्फ प्रयागराज में लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस तरह के कार्यक्रम प्रेरणा देते हैं। हमें अपने गौरवशाली इतिहास का बोध कराते हैं। जिससे आगामी पीढ़ी को सही दिशा मिल सकेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महंत यमुनापुरी महाराज सचिव महानिर्वाणी अखाड़ा ने कहा कि क्रांति में सन्यासियों और नागाओं की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका थी। 40,000 नागा सन्यासी की फौज इस क्रांति में कूद पड़ी थी। प्रयागराज की क्रांति में यहां के प्रयागवालों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आज उनको स्मरण कर हम गर्व महसूस कर रहे हैं।

विषय प्रवर्तन शहीदवॉल के संस्थापक वीरेंद्र पाठक ने करते हुए बताया कि किस तरह से क्रांति की शुरुआत हुई और जन क्रांति में छठवीं नेटिव बटालियन के सरदार रामचंद्र ने 6 जून को क्रांति की शुरुआत की। बाद में मौलवी लियाकत अली ने नेतृत्व संभाल लिया। हिंदू मुस्लिम दोनों मिलकर लड़े। इनका झंडा हरे रंग का था, जिसमें उगता हुआ सूर्य था। आजादी के 10 दिन कब क्या हुआ इसका विस्तार से वर्णन किया।

इसके पूर्व क्रांतिकारियों के मुख्यालय खुशरूबाग में सुबह प्रभात फेरी निकाली गई। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर प्रमोद शुक्ला ने किया। अभ्यागतों का स्वागत वीके सिंह उद्यान अधीक्षक ने एवं धन्यवाद ज्ञापन अनिल गुप्ता ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र