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बीकानेर, 5 जून (हि.स.)। संसार का कल्याण हो और सनातन धर्म आगे बढ़े इसी उद्देश्य से विगत 18 वर्ष धूनी तप किया और प्रभु श्रीराम से देश में खुशहाली की प्रार्थना की गई।
यह उद्गार संत सरजूदासजी महाराज ने रामझरोखा कैलाशधाम में गुरुवार को धूणी पूर्णाहुति के दौरान श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। महाराज ने बताया कि सियाराम जी, महंत रामदास महात्यागी गुरु महाराज का पूजन किया गया। गुरु वंदन, आरती, पूजन, हवन धूणी पूर्णाहुति एवं भंडारे का आयोजन किया गया। इससे पूर्व बुधवार को रामायण पाठ का आयोजन किया गया। संत-महात्माओं व श्रद्धालुओं ने भी भंडारे में भोजन-प्रसादी का आनन्द लिया। महाराज द्वारा बसन्त पंचमी से गंगा दशहरे तक रोजाना तीन घंटे तक कोट खप्पड़ का अनुष्ठान विगत 18 वर्षों से किया जाता रहा है। लगातार चार माह तक चलने वाले इस तप की अवधि 18 वर्ष होती है। साधना में मूल रूप से राम नाम के मंत्र का जप किया जाता है। यह तप स्वयं के लिए नहीं बल्कि संसार कल्याण के लिए होता है। खास बात यह है कि इस बार महाकुंभ प्रयागराज अखाड़े के दौरान भी श्री सरजूदास जी महाराज ने संगम तट के समीप कोटधुनी तप किया। यह तप साधना त्यागी संतों द्वारा सदियों से निभाई जा रही है और आज भी वैष्णव संतों द्वारा जीवंत रखी गई है।
इन छह तप से पूर्ण धूणी तप
2008 से 2025 तक यानि 18 वर्ष तक तीन-तीन वर्ष के छह तप पूर्ण किए गए। उक्त 18 वर्षों में निरंतर तप, साधना और संयम से पूरित धूनी परंपरा का अद्भुत प्रवाह रहा। जिसमें पंचधूनी तप- तीन वर्ष, सत्यधूनी- तीन वर्ष, द्वादशधूनी- तीन वर्ष, 84 धूनी- तीन वर्ष, कोट धूनी- तीन वर्ष, कोट खप्पड़ धूनी- तीन वर्ष तक किए गए।
कंडों के तप और राम नाम का जप...
महाराज ने बताया कि हर वर्ष बसंत पंचमी से इस तप की शुरुआत होती है और चार महीने बाद यानि गंगा दशहरे पर इसकी पूर्णाहुति होती है। रोजाना लगातार करीब तीन घंटे तक तपस्वी अपने चारों तरफ गोबर के कंडों को अग्नि से चेतन रखता है तथा सिर पर भी एक हांडी में भी जलते हुए कंडे रखे जाते हैं। इस दौरान मूल रूप से राम नाम मंत्र का जप किया जाता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / राजीव