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मनोज कुमार मिश्र
27 साल के लंबे इंतजार के बाद दिल्ली में रेखा गुप्ता की अगुवाई में बनी सरकार के सौ दिनों के जश्न पर कहा जा सकता है कि सौ दिन चले ढाई कोस। कायदे में किसी भी सरकार के कामकाज को परखने के लिए सौ दिन काफी कम होते हैं। तब यह और चुनौतीपूर्ण हो गया है जब 27 साल के लंबे इंतजार के बाद भाजपा को दिल्ली सरकार में वापसी का अवसर मिला। इतना ही नहीं दिल्ली में ही लगातार लोकसभा और कई बार नगर निगम जीतने के बावजूद दिल्ली विधानसभा में उसे सफलता नहीं मिल रही थी। इसके चलते चुनाव प्रचार में भाजपा ने वायदों का अंबार लगा दिया। इतना ही नहीं इस बार भी चुनाव में कोई मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया और चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर लड़ा गया। चुनाव में भाजपा को केवल दो फीसदी के अंतर से सत्ता मिली। जिन्हें विधानसभा का टिकट मिलने और कई बार पराजित होने के चलते जीतने का पहले से पूरा भरोसा न था, वे ही मंत्री और मुख्यमंत्री बने।
सरकार के सौ दिनों का जश्न भी अलग अंदाज में मनाया गया। 31 मई को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के मंच पर मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता का फिल्म अभिनेता अनुपम खेर लाइव साक्षात्कार ले रहे थे और बाकी मंत्री मंच के नीचे बैठे थे। कार्यक्रम के अंत में सभी मंत्री मंच पर आए और उनका ग्रुप फोटो मुख्यमंत्री और अनुपम खेर के साथ खींचा गया। नारा दिया गया-सौ दिन सेवा के। एक दिन पहले 30 मई को मुख्यमंत्री गुप्ता ने अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सरकार के सौ दिनों के जश्न की शुरूआत की। तभी से हर संचार माध्यमों और सोशल मीडिया पर रेखा सरकार की उपलब्धियों का बखान किया जाने लगा है। पहली जून को रेखा गुप्ता चुनावी संकल्प पूरा करने के लिए हरिद्वार गंगा स्नान कर आईं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस और आयोजन में सरकार ने अपना वर्कबुक जारी किया। दावा किया गया कि रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने दिल्ली के सुनहरे भविष्य की नींव रखी है। वहीं, विधानसभा में विपक्ष की नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी का आरोप है कि भाजपा सरकार ने अपना एक भी चुनावी वायदा नहीं पूरा किया। महिलाओं को पेंशन देने से लेकर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को बेहतर करना अभी तक पूरा नहीं हुआ। सौ दिनों में ही दिल्ली सरकार पटरी से उतर गई।
विपक्ष के आरोप भले राजनीतिक हों लेकिन वास्तव में इस सरकार ने 25 मार्च को एक लाख करोड़ का बजट लाकर जो वातावरण बनाया था, वह धरातल पर अभी उतरता नहीं दिख रहा है। केन्द्र में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार है ही, दिल्ली में भाजपा सरकार बनते ही दिल्ली नगर निगम में भी भाजपा का मेयर बन गया। अब तो निगम के 15 निगम पार्षदों ने आम आदमी पार्टी से अलग होकर अलग दल ही बना लिया। इक्का-दुक्का पार्षद तो साल भर से आम आदमी पार्टी से अलग होकर भाजपा के साथ आते रहे हैं। कायदे में तो काफी दिन से भाजपा निगम में भी बहुमत में आ गई थी। यानी दिल्ली में हर स्तर पर शासन में भाजपा के होने के बावजूद सरकार की पहचान दिल्ली में न दिखाई देना लोगों को अखरने लगा है। जिस आआपा पर भाजपा हर समय चुनावी मोड में होने का आरोप लगाती रही है, वही आरोप उसपर आम आदमी पार्टी और हाशिए पर चली गई कांग्रेस लगा रही है।
यह सही है कि अपने वायदे के मुताबिक दिल्ली की नई सरकार की पहली मंत्रिमंडल की बैठक में दिल्ली में भी आयुष्मान योजना लागू करने का फैसला लिया गया। बताया गया कि अब तक तीन लाख दस हजार पात्र लोगों का इस योजना में पंजीकरण कर दिया गया है। महिलाओं को पेंशन देना यानी महिला समृद्धि योजना के लिए 5100 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। पात्र लोगों को चिह्नित करने का काम शुरू हो गया है। सड़कों के मरम्मत के लिए बजट आवंटित कर दिए गए हैं। मानसून से पहले 250 किलोमीटर सड़क के मरम्मत का काम पूरा हो जाएगा। दिल्ली को वायु प्रदूषण से मुक्त करने के लिए वायु प्रदूषण शमन योजना बनाई गई है। सरकार का फोकस दिल्ली की साफ-सफाई पर है लेकिन नालों को साफ करके कचरा किनारे रखने से संकट बढ़ेगा। बरसात होते ही फिर से कचरा नालों में जाएगा और फिर से सड़कों पर पानी जमा होगा। हर बरसात में दिल्ली का शोपीस बना मिंटो ब्रिज अब दोनों तरफ की सड़कों से काफी नीचे हो गया है। उसपर जलजमाव न होने का एक ही उपाय है कि उस पर फ्लाई ओवर बने। यह सालों से कहा जा रहा है लेकिन तय कब होगा, किसी को पता नहीं है। सही हालात तो यह है कि अभी बजट पास होने और उसके आवंटन के बाद समय कम मिला है इसलिए अभी मुख्यमंत्री या मंत्री दावे करने के बजाए बुनियादी कामों पर ज्यादा ध्यान दें।
आम आदमी पार्टी के हारने के कई कारणों में एक काम यह माना जाता है कि उसकी सरकार ने दिल्ली की मूल ढांचे की बेहतरी के लिए ठोस काम नहीं किए। लेकिन उसके कुछ अच्छे कामों में से एक काम प्राइवेट स्कूलों की फीस पर नियंत्रण रखना था। आम आदमी पार्टी की सरकार जाते ही प्राइवेट स्कूलों ने बेहिसाब फीस बढ़ा दी। भाजपा सरकार को इसके विरोध में सड़कों पर उतरे लोगों को शांत करने के लिए मजबूरन कठोर कदम उठाने पड़े। सरकार फीस रेगुलेटरी बिल लेकर आई। तब जाकर माहौल बदला। यह सरकार को सोचना होगा कि ऐसा क्यों हुआ और आगे किसी और मामले में ऐसा न हो।
कुछ काम निश्चित रूप से दिल्ली की ठोस बुनियाद के लिए शुरू हुए हैं। सीएम श्री योजना के तहत 70 विश्वस्तरीय स्कूल खोले जाएंगे और आम आदमी पार्टी सरकार के 500 मोहल्ला क्लीनिक के बदले 1100 से ज्यादा आयुष्मान आरोग्य मंदिर बनाए जाएंगे। इसकी शुरुआत भी हो गई है लेकिन इस सरकार के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। सबसे बड़ी चुनौती तो दिल्ली में अपने काम से बड़ी लकीर खींचने की है। अभी भी 15 साल के शासन में जो उपलब्धि कांग्रेस शासन में शीला दीक्षित ने हासिल कर ली थी, वह किसी और नेता के लिए चुनौती है।
पहली बार विधायक बनकर मुख्यमंत्री बनीं रेखा गुप्ता के लिए यह चुनौती काफी बड़ी है। उनकी टीम में उनसे वरिष्ठ नेता तो हैं ही, ऐसे अनेक नेता हैं जिनको हर मामले में उनसे ज्यादा अनुभव है। विधानसभा अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता की सक्रियता से कई नेता परेशान हैं। भाजपा दिल्ली में विधानसभा बनने के बाद हुए पहले चुनाव यानी 1993 में सत्ता में आई थी। आपसी विवाद आदि के चलते पांच साल में भाजपा को तीन मुख्यमंत्री बदलना पड़ा। 1998 में दिल्ली की सत्ता से बेदखल होने के बाद इस बार वह सत्ता में लौट पाई है। इस बार भाजपा बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए चुनाव लड़ी और 70 सदस्यों वाली विधानसभा में 45.86 फीसदी वोट और 48 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की। दस साल से दिल्ली में सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी का वैसे तो वोट औसत काफी (करीब दस फीसद) घटा लेकिन भाजपा के मुकाबले दो फीसदी कम यानी 43.57 फीसदी पर रह गई। उसकी सीटें केवल 22 रह गईं।
अभी आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब में है और उसके विधायक गुजरात में भी हैं। इसी के चलते पार्टी अपने स्थापना के पांच साल में ही राष्ट्रीय पार्टी बन गई। चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल काफी संभल कर बोल रहे हैं। इतना ही नहीं उन्होंने दिल्ली को पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी को विपक्ष का नेता बना कर और सौरभ भारद्वाज को दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष बनाकर सौंप दिया है। वे ज्यादा समय पंजाब आदि राज्यों में दे रहे हैं। केजरीवाल समेत पार्टी के बड़े नेताओं पर शराब घोटाले समेत कई मामले चल रहे हैं। उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सशर्त जमानत मिली है। यानी आने वाले समय में उनको या मनीष सिसोदिया आदि को जेल जाना पड़ सकता है। आम आदमी पार्टी कोई कार्यकर्ता आधारित पार्टी नहीं है और न ही अन्य राज्यों के दलों की तरह जाति या वंशवादी भी नहीं है। यह तो केजरीवाल, उनके कुछ करीबियों और लाभार्थियों की पार्टी बनकर रह गई थी। इसलिए केजरीवाल पर बहुत कुछ झेलने का दबाव है। अगर वे साल भर इसे झेल लेते हैं तो पार्टी बचेगी, अन्यथा उसके बिखरने का खतरा है।
इससे बड़ी चुनौती भाजपा के सामने है। भाजपा सरकार बनने के साथ ही यमुना की सफाई की शुरुआत भी कर दी। दिल्ली की खराब सीवर प्रणाली, बड़ी संख्या में बस गई अनधिकृत कॉलोनियों की गंदगी आदि को तो सालों से यमुना ही झेल रही है। एक तिहाई दिल्ली में आज भी सीवर लाइन नहीं डली है। उसकी गंदगी सीधे यमुना में जाती है। यमुना नदी को साफ करने के लिए सबसे पहली जरूरत है कि ऐसी व्यवस्था बने कि एक बूंद भी सीवर, गंदगी या गंदा पानी यमुना में न जाए। सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च करके सालों से यमुना को साफ करने के नाम पर सरकारी लूट चलती रही है और यमुना पहले से ज्यादा गंदी होती जा रही है। अरविंद केजरीवाल ने भी यमुना साफ करने का वायदा किया था। माना जाता है कि उनके ऊपर और उनके नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों के अलावा आम आदमी पार्टी की हार में उनकी तीन मुद्दों पर माफी मांगना भी कारण बने। उन्होंने कहा कि वे सभी दिल्लीवालों को साफ पीने का पानी नहीं दे पाए। दिल्ली की सड़कें ठीक नहीं करा पाए और यमुना को भी साफ नहीं करा पाए। यही मुद्दे भाजपा सरकार के भी सामने रहने वाले हैं। इसी से जुड़ा है साफ हवा या प्रदूषण का मुद्दा। वह भी आम दिल्ली वालों को प्रभावित कर रहा है और इससे देश की राजधानी दिल्ली की छवि काफी प्रभावित हुई है।
दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में मेट्रो रेल बेहतरीन योगदान कर रही है लेकिन दिल्ली की ढाई करोड़ और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की कुल साढ़े चार करोड़ आबादी) के लिए अकेले मेट्रो नाकाफी है। जर्जर हो चुकी डीटीसी की बसों और परिवहन विभाग के अधीन चलने वाली बसों की संख्या को बढ़ाकर कम से कम 15 हजार करना होगा, लोकल रेल सेवा यानी रिंग रेल को मजबूत बनाना होगा। उसका दायरा बढ़ाना होगा। इससे पहले दिल्ली की करीब चालीस हजार किलोमीटर की सड़कों को ठीक कराना होगा। दिल्ली में पानी की जरूरत डेढ़ हजार एमजीडी (मिलियन गैलन डेली) और दिल्ली में पानी सौ एमजीडी ही पैदा हो पाता है। गंगा और यमुना पर पूरी निर्भरता है। अगर यमुना दिल्ली में साफ हो पाई और बड़े जलाशय के रूप में विकसित हो पाई तो इस संकट का समाधान संभव हो पाएगा। नई सरकार के सामने साफ हवा, पानी चुनौती तो है ही इसके साथ शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर आवास, कूड़ा निपटान, साफ-सफाई इत्यादि अनेक मुद्दे भी सरकार की परीक्षा लेंगे।
मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की छवि साफ सुथरी है लेकिन वे भी बाकी मंत्रियों के समान वरिष्ठता वाली हैं। सरकार बनने के बाद वे अपना राजनीतिक कद बढ़ाने की कवायत में जुटी दिख रही हैं। हर सरकारी विज्ञापन में उनका फोटो, हर अभियान उनके नाम से, हर उद्धाटन और शिलान्यास उनके द्वारा हो रहा। सरकार के मुखिया के नाते यह ठीक है लेकिन ज्यादा होने से गुटबाजी होने का भी खतरा हो सकता है। सौ दिन का जश्न तो मीडिया में विज्ञापन देकर और समारोह करके मनाया जाएगा। कहा जा रहा है कि सरकार की उपलब्धियों को भाजपा कार्यकर्ता घर-घर ले जाएंगे। वैसे असली जश्न तो जनता मनाएगी, जब उसे सरकार की ठोस उपलब्धि दिखेगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / वीरेन्द्र सिंह