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- सोनेवानी कंसर्वेशन रिजर्व बनने से पूर्वी व पश्चिमी घाट तक वन्य जीवों का हो सकता है विस्तार
- मप्र और महाराष्ट्र के वन्य जीवों के लिए बन रहा है अनुकूल सर्कल
बालाघाट, 05 जून (हि.स.)। बालाघाट की पहचान में चार चांद लगाने वाला सोनेवानी जंगल अब ऐसी भूमिका में होगा, जो न सिर्फ जैव विविधता, वन्य जीव संरक्षण, इको-टूरिज्म बल्कि पारिस्थितिक तंत्र को मजबूती देने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता हैं। जहाँ तक बात वन्य जीवों के संरक्षण के सम्बंध में है, तो इससे न सिर्फ पेंच व कान्हा टाइगर रिजर्व के लिए कॉरिडोर बनता, बल्कि यह मप्र और महाराष्ट्र के पांच राष्ट्रीय टाइगर पार्क और दो महत्वपूर्ण अभयारण्यों के लिए एक अनोखे सर्कल का अवसर प्रदान कर सकता है।
सोनेवानी जंगल में तीन वर्षो से लगन के साथ देखरेख कर रहे रेंजर हर्षित सक्सेना ने गुरुवार को बताया कि यह सर्कल मध्य भारत और पूर्वी घाट तक अपनी सीमाएं फैला सकता है। कान्हा व पेंच टाइगर रिजर्व के लिए तो प्रत्यक्ष रूप से कॉरिडोर है ही, लेकिन यही वो कंसर्वेशन रिजर्व है जो महाराष्ट्र के नागझिरा-नवेगांव टाइगर रिजर्व,ताडोबा-अँधारी टाईगर रिजर्व, मेलघाट टाईगर रिजर्व और महाराष्ट्र के उमरेड करहंडला वन्यजीव तथा मंडला के फेन वन्यजीव अभ्यारण्य के साथ अप्रत्यक्ष रूप से साझेदारी कर रहा है। यानी दक्षिण में अमरावती-चंद्रपुर-नागपुर से उत्तर में मंडला, पूर्व में गोंदिया, पश्चिम में बैतूल तक वन्य जीवों के विचरण व पारिस्थितिकी तंत्र का एक असाधारण सर्कल बना रहा है।
सोनेवानी जंगल में 6 से 7 तालाब 1 नदी और घास के मैदानों में बसी सुंदरता
रेंजर सक्सेना बताया कि वन्य जीवों व वन संरक्षण की दिशा में शासन का एक महत्वपूर्ण निर्णय है। वन्यप्राणी बोर्ड के अनुमोदन के बाद जल्द ही अधिसूचना जारी होना सम्भावित है। इसके बाद वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट प्लान वरिष्ठ वन सेवा के अधिकारी बनाएंगे। सोनेवानी कई मायनों में सबसे अलग वन्य क्षेत्र है। यहाँ 6 से 7 बड़े तालाब है, जिनमें वर्ष भर पानी उपलब्ध रहता है। वैनगंगा की सहायक नदी सर्राटी नदी भी यहीं है। साथ ही सिलेझरी के घास के मैदान के साथ ही, विभिन्न प्रजातियों के साथ इंसान के लिए इस जंगल में जीवनपयोगी सामग्रियां मौजुद है। इसके साथ ही बाघों के लिए 180 किमी वर्ग मीटर का लगातार हैचिंग घना क्षेत्र। जो 5 से 6 महीने तक मानवीय हस्तक्षेप से दूर। शावकों को छिपाने के लिए बाघिन लैंटाना के मैदानों को प्राथमिकता देता है। साल भर पानी और भोजन की उपलब्धता। घने बांस के जंगल शाकाहारी जानवरों को समृद्ध बनाते हैं। बालाघाट में दक्षिण वनमंडल के लालबर्रा व वारासिवनी परिक्षेत्र में अवस्थित है। यह 16319.58 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है।
सागौन का 158 वर्ष पुराना महावृक्ष सोनेवानी में मौजूद
एक जानकारी के अनुसार बालाघाट में कभी फॉरेस्ट स्कूल के प्राचार्य रहे अंग्रेज डेट्रिच ब्रांडिस जिन्हें भारत में फॉरेस्ट्री के फाउंडर के रूप में जाना जाता हैं। उन्होंने सोनेवानी में 1867 में सागौन का पौधा रोपा था। जो आज भी सोनेवानी जंगल में जीवित अवस्था में है। जिसे महावृक्ष की संज्ञा दी जाती है,जिसकी 467 सेमी.गौलाई है, जो मध्य भारत का सबसे चौड़े सागौन के रूप में उल्लेखनीय है। रेंजर सक्सेना ने बताया कि यहां हर समय एआई कैमरों की मदद से निगरानी की जा रही है। जिससे रियल टाइम में जीवों की हरकतों की जानकारी मिलती है।
अब आगे प्रबंधन राज्य व स्थानीय समुदाय के माध्यम से होंगे निर्णय
अनुमोदन के बाद अधिसूचना जारी होते ही डब्ल्यूएलएमपी द्वारा योजना तैयार की जाएगी। सेवानिवृत्त एसडीओएफ एसके सिन्हा ने बताया कि राज्य स्तरीय प्रबंधन समिति के अलावा स्थानीय समिति द्वारा इस जंगल से मिलने वाली सामग्रियों की उपयोगिता तय करेगी। इसमें आजीविका संरक्षण, जागरूकता और प्रशिक्षण व प्रबंधन की योजनाएं बनाएंगे। स्थाानीय समिति तय करेगी कि कितना जंगल खोला जाएं और कितनी आजीविका के साधन उपयोग किए जाएं। ज्ञात हो कि सोनेवानी जंगल को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में मई माह में आयोजित हुई मप्र राज्य वन्यप्राणी बोर्ड की 29 वी बैठक में बालाघाट के लिए अतुलनीय निर्णय लेकर अतिआवश्यक सौगात दी।
हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर