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शिमला, 05 जून (हि.स.)। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला में “भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद की समस्याएं - तुलसीदास के रामचरितमानस के दक्षिण भारतीय भाषाओं में अनुवाद का एक अध्ययन” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारंभ आज राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने किया। इस अवसर पर उन्होंने संस्थान परिसर में स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा का अनावरण भी किया।
राज्यपाल ने कहा कि भारत की भाषाई विविधता उसकी सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है और अनुवाद विभिन्न भाषाओं के बीच संवाद का सेतु है। उन्होंने कहा कि यदि सभी भारतीय भाषाओं की लिपि देवनागरी होती, तो आपसी समझ और सरल होती। उन्होंने रामचरितमानस को भारतीय सांस्कृतिक चेतना का आधार बताया और कहा कि यह ग्रंथ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक वैश्विक काव्य है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत की भाषाओं तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम में पहले से ही रामकथा की परंपराएं हैं, फिर भी रामचरितमानस ने इन भाषाओं और संस्कृतियों पर गहरी छाप छोड़ी है। उन्होंने अवधी भाषा के अनुवाद में आने वाली भाषिक और सांस्कृतिक चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
इस अवसर पर राज्यपाल ने प्रो. हरिमोहन बुधौलिया की पुस्तक भारतीय भाषाओं में हनुमत् काव्य परंपरा का विमोचन भी किया।
सम्मेलन में महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि, प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, प्रो. जी. गोपीनाथन और संस्थान की अध्यक्षा प्रो. शशिप्रभा कुमार सहित कई विद्वानों ने विचार साझा किए। निदेशक प्रो. राघवेंद्र पी. तिवारी ने विषय की पृष्ठभूमि प्रस्तुत की और राज्यपाल का स्वागत किया।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील शुक्ला