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श्रीनगर, 5 जून (हि.स.)। श्रीनगर शहर और घाटी के अन्य शहरों और कस्बों में ईद-उल-अज़हा की खरीदारी के लिए बाजारों में लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है। बाजाराें में ट्रैफ़िक जाम, फुटपाथ विक्रेताओं से भरे पैदल यात्री मॉल, कई जगहों पर बलि के जानवरों के बाज़ार और खरीदारों के बीच धक्का-मुक्की और मोल-भाव भी देखने को मिल रहा है।
इस डर के बावजूद कि ईद की पूर्व संध्या की तैयारियों के लिए कम उत्साही खरीदार आएंगे, कश्मीरी बड़ी संख्या में मुस्कुराते हुए और उत्साह से भरे हुए 7 जून को बकरीद या ईद-उल-अज़हा का सबसे पवित्र त्यौहार मनाने के लिए निकल रहे हैं। यह त्यौहार हज यात्रा के सफल समापन का भी प्रतीक है।
बेकरी की दुकानें, होजरी आउटलेट और पोल्ट्री की दुकानें खरीदारों से गुलजार हैं लेकिन लाेगाें का मुख्य ध्यान बलि के जानवरों के बाज़ारों पर रहा।
ईदगाह मैदान में शहर के सबसे बड़े बलि के जानवरों के बाज़ार में भेड़, बकरियों और कुछ ऊँटों के झुंड हैं जिन्हें श्रद्धालु खरीद सकते हैं। हालाँकि विभिन्न बलि के जानवरों के बाज़ारों में दरें प्रतिस्पर्धी और उचित हैं फिर भी बेहतर नस्ल की भेड़ और बकरियाँ औसत नस्लों की तुलना में थोड़ी महंगी हैं।
दुनिया भर के मुसलमान पैगंबर अब्राहम द्वारा दी गई कुर्बानी की याद में बकरीद पर जानवरों की कुर्बानी देते हैं जिन्होंने अल्लाह के आदेश के तहत अपने बेटे इस्माइल को ईश्वरीय आदेश के अधीन करने का फैसला किया। जब पैगम्बर इब्राहीम ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँधी और इस्माइल के गले पर चाकू चलाना शुरू किया तो स्वर्ग से एक भेड़ ने चाकू के नीचे इस्माइल की जगह ले ली जबकि इस्माइल अपने पिता से कुछ दूरी पर मुस्कुराता हुआ खड़ा था। पिता का अल्लाह की इच्छा के प्रति समर्पण आखिरकार एक महान उत्सव बन गया जब इब्राहीम अपने बेटे इस्माइल का हाथ थामे खुशी से घर लौटे।
पैगम्बर इब्राहीम द्वारा किए गए महान बलिदान को स्वीकार करने और इस्माइल को चाकू से बचाने के लिए अल्लाह के और भी बड़े आशीर्वाद की याद में मुसलमान बकरीद पर वैश्विक उत्सव में शामिल होते हैं। यह त्यौहार बहुत खुशी का दिन है और फिर भी यह सार्वभौमिक अनुस्मारक है कि आखिरकार सब कुछ ईश्वर के हाथों में है, चाहे विश्वासी उन्हें किसी भी नाम से याद करें।
माता-पिता द्वारा गोद में लिए गए बच्चे खिलौने और नए कपड़े खरीदने के लिए बाजारों में उमड़ पड़े हैं। स्थानीय लोग ईद के त्यौहार पर खूब खर्च करते हैं क्योंकि यह खुशी और आस्था का एक दुर्लभ क्षण है जो प्रार्थना और उत्सव में परिणत होता है।
बदलाव के तौर पर यातायात पुलिस वाहन चालकों और फुटपाथ विक्रेताओं के प्रति नरमी से पेश आती दिखी। पिछले 35 वर्षों के दौरान आतंकवादियों द्वारा की गई सबसे भयानक हिंसा के गवाह रहे कश्मीरी तेजी से ईद, शिवरात्रि, गुरुपर्व, क्रिसमस और बुद्ध पूर्णिमा जैसे खुशी के त्योहारों से सजे शांति और सुकून की ओर बढ़ रहे हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / सुमन लता