परमहंस महाराज की पुण्यतिथि पर उमड़ा आस्था का जनसैलाब
जगतानंद आश्रम के शिवलिंगी फुल के पेड़ के पास संतान प्राप्ति के लिए आंचल फैला कर फूल गिरने का इंतजार करती महिलाएं।


- शिवलिंग के फूलों ने बिखेरा चमत्कारी विश्वास

मीरजापुर, 5 जून (हि.स.)। गंगा दशहरा के पावन अवसर पर गुरुवार को कछवां के केवटावीर गांव स्थित परमहंस आश्रम जगतानंद में दिव्यता और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। इस दिन स्वामी परमानंद परमहंस महाराज की 55वीं पुण्यतिथि पर देश के कोने-कोने से संत और श्रद्धालु आश्रम पहुंचे।

परमहंस आश्रम की धुनी पर सभी संतों ने दंडवत प्रणाम कर आरती में भाग लिया और विभूति लगाकर गुरुदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया। आश्रम में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा और भंडारे में हजारों ने प्रसाद ग्रहण किया। आश्रम की सुरक्षा में भारी पुलिस बल तैनात रहा।

सत्संग में बोलते हुए संत नारद महाराज ने कहा कि परमहंस स्वामी अड़गड़ानंद महाराज ने जगतानंद में आध्यात्मिक साधना करते हुए यथार्थ गीता की रचना की, जो आज का धर्मशास्त्र बन चुकी है। उन्होंने कहा कि जीवन की हर समस्या का समाधान यथार्थ गीता में है।

इस अवसर पर आश्रम में यथार्थ गीता और अन्य धार्मिक पुस्तकों का स्टॉल भी लगाया गया, जहाँ से भक्तों को यह पुस्तकें सस्ते दर पर वितरित की गईं।

शिवलिंग के पेड़ की चमत्कारी परंपरा

कार्यक्रम के दौरान एक विशेष धार्मिक परंपरा भी देखने को मिली, जिसने श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया। मान्यता है कि शिवलिंग वृक्ष के नीचे जो फूल किसी महिला के आंचल में गिरता है, उसे घर ले जाने से पुत्र प्राप्ति होती है। इसी आस्था के तहत आज भी कई महिलाएं वृक्ष के नीचे आंचल फैलाकर खड़ी देखी गईं। जैसे ही फूल गिरा, उन्होंने श्रद्धा से उसे अपने आंचल में समेट लिया।

देशभर से पहुंचे संत और श्रद्धालु

स्वामी सर्वानंद महाराज सहित कई संतों ने इस अवसर पर भक्तों को परमानंदजी के उपदेशों को जीवन में उतारने का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि मानव जीवन का उद्देश्य है सत्य के मार्ग पर चलना और राम नाम का जाप करना। मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड सहित कई प्रांतों से आए श्रद्धालुओं की उपस्थिति ने यह सिद्ध कर दिया कि परमहंस परंपरा आज भी जनमानस की आत्मा में जीवित है।

हिन्दुस्थान समाचार / गिरजा शंकर मिश्रा