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मूंगा गणेश के नाम से जाने जाते हैं घाट पर स्थित अमृत विनायक
वाराणसी,04 जून (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में मां गंगा नदी के किनारे बने 84 घाटों की श्रृंखला में एक घाट गणेश घाट प्रथम पूज्य भगवान गणेश को समर्पित है। गणेश घाट पर नमामि गंगे के सदस्यों ने बुधवार को स्वच्छता अभियान चलाने के बाद घाट पर मौजूद लोगों को स्वच्छता के लिए प्रेरित किया।
नमामि गंगे के काशी क्षेत्र संयोजक राजेश शुक्ला ने बताया कि काशी में गंगा तट के साथ ही भगवान शिव-पार्वती के परिवार की भी प्रमुखता से मान्यता है। इसी कारण से प्रथम पूज्य गणेश को भी समर्पित एक घाट 84 प्रमुख घाटों में अपना स्थान रखता है। गंगा की अनंत और अनगिन कथाओं के पात्रों की जीवंतता इसके घाटों पर भी नजर आती हैं। वाराणसी इस मामले में काफी अनोखा है, क्योंकि यहां 84 प्रमुख घाटों के क्रम में कई प्रमुख पात्रों को सम्मान ही नहीं विशिष्ट पहचान भी दी गई है।
उन्होंने बताया कि घाट पर भगवान गणेश की मूर्ति और उनका आसन एक दुर्लभ संगमरमर से बना है। मूर्ति के अद्भुत रंग के कारण ही वाराणसी और आसपास के इलाकों के लोगों का मानना था कि मूर्ति मूंगा से बनी है। तब से मूर्ति को 'मूंगा गणेश' के नाम से जाना जाता है। वैसे स्थापित गणेश जी का नाम अमृत विनायक रखा गया था। 18वीं सदी के पूवार्द्ध में पूणे के अमृतराव पेशवा ने तब कच्चे और अग्निश्वर और रामघाट के एक हिस्से का पक्का निर्माण कराया और इसे नई पहचान दी। उनकी ओर से ही यहां अमृत विनायक मंदिर सहित कई अन्य वैभवशाली निर्माण कराए गए। घाट पर ही गणेश जी का प्राचीन मंदिर स्थापित होने की वजह से ही कालांतर में घाट का नाम गणेश घाट ही पड़ गया। घाट पर गंगा दशहरा, भाद्र माह शुक्ल चतुर्थी और कार्तिक पूर्णिमा के साथ गणेश चतुर्थी आदि को स्नान करने पर विशेष पुण्य की मान्यता रही है। इन मौकों पर स्नान ध्यान के बाद गणेश मंदिर में दर्शन पूजन की विशेष मान्यता है। देवों में प्रथम होने की वजह से गणेश घाट की मान्यता विशेष तौर पर है। साथ ही गंगा और भगवान गणेश से जुडे़ सभी प्रमुख आयोजन घाट और मंदिर पर किए जाते हैं। इसके अलावा महाराष्ट्र के लोगों की आस्था भी इस घाट और मंदिर के प्रति काफी है।
राजेश शुक्ला ने बताया कि गणेश घाट की गुलेरिया कोठी पेशवाओं की शान का भी आभास कराती है। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद आज गणेश घाट पर गणेश मंदिर अपनी आस्था का केन्द्र बना हुआ है। पूर्वजों की ओर से घाटों पर निर्धारित रीति-रिवाजों का आज भी पालन किया जा रहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी