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चेन्नई, 4 जून (हि.स.)। तमिलनाडु सरकार ने थूथुकुडी के पास करियाचल्ली द्वीप को फिर से ठीक करने के लिए 50 करोड़ रुपये का एक बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया है। यह द्वीप मन्नार की खाड़ी समुद्री राष्ट्रीय उद्यान में है और पर्यावरण के लिए बहुत खास है। इस प्रोजेक्ट का मकसद है कि समुद्र की जैव विविधता बढ़े और वहां रहने वाले लोगों को भी फायदा हो, क्योंकि यह द्वीप तेजी से कट रहा है। करियाचल्ली द्वीप उन 21 नाजुक द्वीपों में से एक है जो चक्रवात और सुनामी से तटीय इलाकों की रक्षा करते हैं। 2004 की सुनामी में भी इसने बहुत मदद की थी।
इस प्रोजेक्ट में आईआईटी मद्रास ने 8,500 नकली मूंगा चट्टानें (कृत्रिम प्रवाल भित्तियां) बनाई हैं, जो द्वीप के किनारे को मजबूत करेंगी और समुद्र में नए घर बनाएंगी। ये तीन टन के पत्थर लहरों को रोकेंगे जिससे कटाव कम होगा और मूंगा बढ़ेगा। सिप्पिकुलम और पट्टिनामारुथूर गांव के लोगों को इन पत्थरों को लगाने के लिए गोताखोर के रूप में ट्रेनिंग दी जा रही है। इससे लोगों की भागीदारी भी बढ़ेगी।
इस प्रोजेक्ट में दो एकड़ खराब हो चुकी मूंगा चट्टानों और तीन एकड़ समुद्री घास के बिस्तरों को भी ठीक किया जाएगा। ये दोनों कार्बन सोखने और जैव विविधता के लिए बहुत जरूरी हैं। पर्यावरण सचिव सुप्रिया साहू ने बताया कि इससे इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और समुद्री घास बढ़ने से डुगोंग (एक प्रकार का समुद्री जीव) भी इस इलाके में वापस आ सकते हैं।
यह प्रोजेक्ट वान द्वीप पर किए गए ऐसे ही एक सफल काम से प्रेरित है, जिसे 2015 में शुरू किया गया था। वहां भी पांच सालों में जमीन, उथले पानी और मूंगा में काफी सुधार हुआ था। करियाचल्ली में हाल के सालों में पानी की गहराई तीन मीटर से घटकर आधा मीटर रह गई है, जो दिखाता है कि तुरंत कुछ करना कितना जरूरी है।
एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के समुद्री विशेषज्ञ आर रामसुब्रमण्यम ने कहा कि गर्म होते समुद्र के कारण गर्मी सहने वाली मूंगा प्रजातियों का इस्तेमाल करना जरूरी है। मूंगा भले ही हर साल लगभग 1 सेमी धीरे-धीरे बढ़ता है, लेकिन समय के साथ नई कॉलोनियां बन सकती हैं। इस प्रोजेक्ट की सफलता लगातार निगरानी और समुदाय के सहयोग पर निर्भर करती है, जिसमें स्थानीय मछुआरे समुद्र के रखवाले के रूप में अहम भूमिका निभाएंगे।
यह प्रोजेक्ट सिर्फ पर्यावरण को ठीक करने के लिए नहीं है, बल्कि इको-टूरिज्म और दूसरी सेवाओं से स्थायी कमाई के मौके भी पैदा करेगा, जिससे तटीय इलाकों के लोगों को आर्थिक मदद मिलेगी। अगर यह प्रोजेक्ट सफल होता है, तो करियाचल्ली का ठीक होना जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए विज्ञान, समुदाय और प्रकृति के साथ मिलकर काम करने का एक अच्छा उदाहरण बनेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ आर बी चौधरी