ब्रम्हाकुमारी संस्थान में जगदम्बा सरस्वती स्मृति दिवस मनाया गया
रांची, 24 जून (हि.स.)। हरमू रोड स्थित ब्रह्माकुमारी संस्थान में मंगलवार को जगदम्बा सरस्वती स्मृति दिवस मनाया गया। इस अवसर पर राजयोग अभ्यास किया गया। मौके पर कहा गया कि मां जगदम्बा ने अपने दिव्य व्यक्तित्व से हजारों नारियों को स्वयं परमपिता परमात्म
ब्रम्हाकुमारी संस्थान में कार्यक्रम की तस्वीर


रांची, 24 जून (हि.स.)। हरमू रोड स्थित ब्रह्माकुमारी संस्थान में मंगलवार को जगदम्बा सरस्वती स्मृति दिवस मनाया गया।

इस अवसर पर राजयोग अभ्यास किया गया। मौके पर कहा गया कि मां जगदम्बा ने अपने दिव्य व्यक्तित्व से हजारों नारियों को स्वयं परमपिता परमात्मा की ओर से इस सृष्टि के परिवर्तन के महान कार्य के लिए निमित्त बनाया। उन्होंने नव-सृजन की राह दिखाई। वह वर्तमान में भी नारी सत्ता की ओर से संचालित ब्रह्माकुमारी संस्थान के रूप में समस्त संसार को आलोकित कर रहा है।

इस अवसर पर ब्रह्माकुमारी निर्मला ने कहा की देवी सरस्वती की वाणी जलतरंग की तरह अमृत बरसाती हुई सत्यता और निर्मलता से भरी थीं। नव सृष्टि के निर्माण के लिए संकल्पित ब्रह्म ज्ञान देवी सरस्वती, दुर्गुणों को मिटाने वाली दुर्गा, धन-सम्पदा से भरपूर करने वाली लक्ष्मी, विकारों को जाने वाली कालिका खप्पड़वाली जैसे अनेक गुणों की प्रतिमान थीं। गहन आध्यात्मिकता प्रेरणाओं से अति-प्रोत श्वेतवस्त्र धारणी सरस्वती मैया को ब्रह्म की एक पसली से निर्मित हुआ माना जाता है।

निर्मला बहन ने कहा कि ब्रह्म की मानस पुत्री मातेश्वरी सरस्वती के जीवन में ‘योग’ और ‘कर्म’ का संतुलन का अद्भुत समन्वय था। गीता के अनुसार राजयोग साधना की यह स्थिति को स्पर्श कर लेती है तो योग कर्मकुशलता की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। ऐसे साधक की किसी भी क्षण अपने संकल्प को शक्ति में परिवर्तित करने की क्षमता विकसित हो जाती है।

मातेश्वरी जी ने स्वयं परमपिता परमात्मा शिव द्वारा सिखाये गये राजयोग से कर्म योग से जीवन मुक्ति प्राप्त करके कर्म योग पर विजय प्राप्त कर लिया था। मातेश्वरी जी अभय वरदान प्राप्त करके कैंसर जैसी असाध्य शारीरिक बीमारी के भय को परास्त करते हुए अंतिम स्वांस तक मानवता की सेवा में तत्पर रहीं। मातेश्वरी जी अपने नश्वर भौतिक शरीर का परित्याग करने के कुछ क्षण पूर्व तक ईश्वरीय ज्ञानामृत की पावन ज्ञान-गंगा बनकर उपस्थित मनुष्यात्माओं को पवित्र बनाने के पुण्य कर्म में सलग्न रहीं।

उन्होंने बताया कि 24 जून 1965 को मातेश्वरी जी ने स्वयं को शारीरिक कर्म इंद्रियों के सीमाओं और बंधनों से मुक्त कर सम्पूर्णता को प्राप्त कर महाप्राण यात्रा पर प्रस्थान किया। मातेश्वरी श्री जगदम्बा की सूक्ष्म उपस्थिति अब भी ब्रह्मावासियों को जीवन-पथ पर अचल होकर कर्म योग के लिए प्रेरणा प्रदान कर रही है।

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हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pathak