कीलाडी उत्खनन की रिपोर्ट में एएसआई ने गिनवाईं कई खामियां, 800 ईसा पूर्व के नहीं मिले सबूत
नई दिल्ली, 21 जून (हि.स.)। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) के तमिलनाडु के कीलाडी में किए गए उत्खनन की रिपोर्ट पर सियासी बवाल मचा हुआ है। तमिलनाडु सरकार ने केन्द्र से कीलाड़ी उत्खनन की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की है। वहीं, केन्द्र सरकार ने र
कीलाड़ी के पुरावशेष


किलाड़ी की खुदाई में मिले पुरावशेष


कीलाड़ी ऐतिहासिक उत्खनन साइट


नई दिल्ली, 21 जून (हि.स.)। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) के तमिलनाडु के कीलाडी में किए गए उत्खनन की रिपोर्ट पर सियासी बवाल मचा हुआ है। तमिलनाडु सरकार ने केन्द्र से कीलाड़ी उत्खनन की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग की है। वहीं, केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार के सभी आरोपों को खारिज करते हुए कीलाडी रिपोर्ट में तकनीकी रूप से कई खामियां होने की बात कही है। इस बीच एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी ने इस रिपोर्ट में कई तकनीकी खामियां गिनवाते हुए इसे 800 ईसा पूर्व के होने के दावे को खारिज कर दिया है। हिन्दुस्थान समाचार संवाददाता ने पुरातत्वविद अमरनाथ रामकृष्ण द्वारा जनवरी 2023 में सौंपी गयी 982-पृष्ठ की अंतिम रिपोर्ट का अवलोकन किया। रिपोर्ट में एएसआई ने कई सवालों के जवाब पुरातत्वविद से मांगे हैं। इस संबंध में एएसआई ने 23 मई, 2025 को उन्हें पत्र लिखकर “रिपोर्ट को और अधिक प्रामाणिक बनाने” को लेकर सुधार करने के लिए कहा था। जवाब में रामकृष्ण ने पत्र में बिंदु-दर-बिंदु जवाब देते हुए आवश्यकता के अनुसार सुधार करने की बात मानी है, लेकिन वो सुधार कब होगा इसका कोई जिक्र नहीं है।

एएसआई ने इसमें कई खामियां अंकित की हैं। इस रिपोर्ट के एक्नॉलेजमेंट पन्ने पर डीएमके के कुछ नेताओं का आभार व्यक्त किया गया है जिसमें एस. वेंकटेशन, सांसद कणिमोझी के नाम प्रमुख हैं। इसलिए इसे सियासत के चश्में से देखा जा रहा है। आमतौर पर तकनीकी रिपोर्ट में राजनीतिक व्यक्तियों के नाम नहीं लिखे जाते। उत्खनन का क्षेत्र ही बिलकुल अलग होता है। उत्खनन के लिए एएसआई ही वित्तीय और तकनीकी सहयोग उपलब्ध कराता है।

रिपोर्ट में मार्क की गई खामियों में से सबसे महत्वपूर्ण कीलाडी ऐतिहासिक साइट के कालखंड को लेकर है। रिपोर्ट में अधिकतम प्राचीन डेटिंग 320 ईसा पूर्व की दी गई है। यानी आज से 2320 वर्ष पुराने साक्ष्य ही मिले हैं। इस रिपोर्ट के इतर तमिलनाडु सरकार द्वारा की गई खुदाई की रिपोर्ट में 600 ईसा पूर्व के साक्ष्य मिलने का दावा किया जा रहा है। राज्य सरकार के दावे के बाद पुरातत्वविद रामकृष्ण ने भी इस साइट को 800 ईसा पूर्व का होने का दावा किया है। एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कीलाडी रिपोर्ट में 320 ईसा पूर्व से लेकर 800 ईसा पूर्व तक का कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है। इसके साथ उत्खनन में दीवारों के साथ मिले पुरावशेष की सही डेटिंग होती है यानी वो किस कालखंड की है। इसका पता कार्बन डेटिंग तकनीक से किया जाता है। रिपोर्ट में इन ईंट की दीवार की संरचनाओं के कालखंड में कोई निरंतरता नहीं पाई गई है। करीब पांच मीटर की गई खुदाई में सबसे नीचे सबसे पुराने कालखंड की चीजें मिलती हैं। रिपोर्ट में दीवार की डेटिंग में निरंतरता ही नहीं है। यानी सबसे नीचे 2000 साल पुरानी चीजें मिलीं हैं तो उसके ऊपर के परतों पर 2320 साल पुरानी चीजें मिल रही हैं। इसके साथ खुदाई में मिले ऐतिहासिक महत्व की चीजों का सही चित्रण भी नहीं किया गया है। मसलन चीजें कहां से मिली हैं और कितनी बड़ी हैं। इसके विस्तृत विवरण में तकनीकी त्रुटियां हैं।

रिपोर्ट में खामियों का उल्लेख करने में देरी के सवाल पर वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि इस पर विभाग को रिपोर्ट तैयार करने वाले अधिकारी से तुरंत स्पष्टीकरण मांगना चाहिए था। इसमें देरी के कारण यह राजनीतिक मुद्दा बन गया है। एएसआई के सूत्र ने बताया कि पिछले कुछ सालों से प्रकाशन की जिम्मेदारी भी अमरनाथ रामकृष्ण के पास ही थी। अधिकारी ने बताया कि उत्खनन की रिपोर्ट को तैयार करने में कम से कम पांच साल लगते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई साल 1921 में हुई थी जिसकी रिपोर्ट 1931 में प्रकाशित हुई। प्रोफेसर बीबी लाल द्वारा कालीबंगा उत्खनन की रिपोर्ट छपने में चालीस साल लगे। तो रिपोर्ट में देरी का सवाल ही बेमानी है। यहां सवाल तथ्यात्मक रूप से सही रिपोर्ट का है। इस संबंध में एएसआई ने 23 मई, 2025 को पुरातत्वविद् अमरनाथ रामकृष्ण को पत्र लिखकर “रिपोर्ट को और अधिक प्रामाणिक बनाने” के लिए सुधार करने के लिए कहा था। जवाब में, रामकृष्ण ने पत्र में बिंदु-दर-बिंदु जवाब देते हुए आवश्यकता के अनुसार सुधार करने की बात कही है।

कीलाड़ी को लेकर क्यों है विवादकीलाडी उत्खनन से पता चलता है कि वैगई नदी के किनारे तमिलनाडु में संगम युग के दौरान एक नगरीय सभ्यता रही थी। भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने 2014-15 फिर साल 2015-2016 में कीलाड़ी में खुदाई की थी। उसके बाद 2017 में एएसआई के पुरातत्वविद अमरनाथ रामकृष्ण को असम में स्थानांतरित कर दिया। रामकृष्ण ने इस संबंध में अपनी रिपोर्ट 2023 में एएसआई को सौंपी। तमिलनाडु सरकार ने इस स्थल पर अपनी खुदाई करवाई जिसमें उन्होंने इस साइट को 600 ईसा पूर्व का होने का दावा किया है और केन्द्र पर तमिल विरासत को दबाने की कोशिश करने का आरोप लगाया। केन्द्र पर जानबूझकर कीलाडी के महत्व को कम करने का आरोप लगाया। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसका डीएमके सरकार पर राजनीतिकरण का आरोप लगाया है। शेखावत ने कहा कि डीएमके सरकार कीलाडी अनुसंधान पर केंद्र सरकार का सहयोग नहीं कर रही है।

शहरी सभ्यता के मिले प्रमाण-शिवगंगा जिले में कीलाडी उत्खनन में वैगई नदी के तट पर मौजूद एक पुरानी सभ्यता का पता चला है। फरवरी 2017 में कीलाडी साइट पर खोजे गए चारकोल की कार्बन डेटिंग ने निर्धारित किया कि यहां लगभग 200 ईसा पूर्व एक शहरी सभ्यता विकसित थी। इस प्रकार, उत्खनन ने प्रदर्शित किया कि तमिलनाडु में संगम के युग के दौरान शहरी सभ्यता मौजूद थी। संगम काल का औसत काल 300 ईसा पूर्व से 300 ई. तक है, यह वह समय था जब तमिल साहित्य और संस्कृति भारत के दक्षिणी क्षेत्र में फली-फूली। संगम शब्द कवियों और विद्वानों की उस सभा को दर्शाता है, जो तमिल साहित्य का एक संग्रह बनाने के लिए गठित हुई थी, जो आज तक कायम है।

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हिन्दुस्थान समाचार / विजयालक्ष्मी