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नई दिल्ली, 19 जून (हि.स.)। ईरान-इजरायल के बीच जारी जंग और उसमें अमेरिका के हस्तक्षेप की वजह से मिडिल ईस्ट का तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस तनाव का प्रत्यक्ष असर क्रूड ऑयल (कच्चे तेल) की कीमत में आई तेजी के रूप में देखा जा सकता है। मिडिल ईस्ट के तनाव की वजह से कच्चा तेल आज 77 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को भी पार कर गया। भारतीय समय के हिसाब से शाम 5 बजे ब्रेंट क्रूड 77.77 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर कारोबार कर रहा था। इसी तरह वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) क्रूड 76 डॉलर के स्तर को पार करके 76.38 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंचा हुआ था।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में आई तेजी का असर घरेलू बाजार में भी नजर आ रहा है। आज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर कच्चा तेल 6,450 रुपये प्रति बैरल के स्तर को पार कर गया। एमसीएक्स पर आज कच्चा तेल 26 रुपये की बढ़त के साथ 6,360 रुपये प्रति बैरल के स्तर पर खुला। थोड़ी ही देर बाद इसकी कीमत बढ़ाकर 6,467 रुपये प्रति बैरल के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई। हालांकि बाद में इसकी कीमत में मामूली गिरावट भी आई।
कमोडिटी मार्केट के एक्सपर्ट्स का कहना है कि ईरान-इजरायल संघर्ष के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की सप्लाई में कमी आने की आशंका बन गई है। खासकर, अमेरिका ने जिस तरह से ईरान को सरेंडर करने की चेतावनी देकर दी है, उससे इस बात की आशंका भी बन गई है कि अमेरिका की ओर से भी ईरान पर हमला किया जा सकता है। दावा किया जा रहा है कि अमेरिका ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने की कोशिश कर सकता है।
खुराना सिक्योरिटीज एंड फाइनेंशियल सर्विसेज के सीईओ रवि चंदर खुराना का कहना है कि मिडिल ईस्ट के तनाव ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमत पर तो दबाव बनाया ही है, अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती नहीं करने के फैसले से भी कच्चे तेल की कीमत को सपोर्ट मिला है। अमेरिका में कच्चे तेल की इन्वेंटरी घटना की वजह से भी कीमत में तेजी आई है। इसके कारण ब्रेंट क्रूड और डब्ल्यूटीआई क्रूड के बीच का अंतर भी कम हो गया है। अभी ये अंतर एक से दो डॉलर प्रति बैरल का रह गया है, जबकि कुछ दिन पहले तक ये अंतर चार से छह डॉलर प्रति बैरल का हुआ करता था।
रवि चंदर खुराना का कहना है कि अगर मिडिल ईस्ट के तनाव में कमी नहीं आई तो आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमत 85 से 90 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक भी पहुंच सकती है। ऐसा हुआ तो अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत से ज्यादा कच्चा तेल का आयात करने वाले भारत जैसे देश को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / योगिता पाठक