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रांची, 18 जून (हि.स.)। अग्रसेन भवन के सभागार में श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिवस पर बुधवार को कथा का मुख्य सार बताते हुए श्रीकांत शर्मा महाराज ने कहा कि पृथ्वी जैसी दुनिया में श्रेष्ठ और कोई जगह नहीं है, क्योंकि धरती पर जो चीजें हैं, वे कहीं अन्यत्र नहीं है।
उन्होंने कहा कि यहां पर नश्व र होते हुए भी हम साश्वंत को पा सकते हैं। विनाशी होकर अविनाशी को पा सकते हैं ।
नास्तिक और आस्तिक के जीवन में बड़ा अंतर होता है नास्तिक के जीवन में कोई विपरीत घटना होती है तो वह ईश्वर को दोष देने लगता है और अपनी किस्मगत को दोष देने लगता है, लेकिन आस्तिक के जीवन में कोई विपरीत घटना होती है तो वह उसे भी ईश्वर की कृपा मानकर ग्रहण करता है।
लोग जीवन के एक पक्ष को देखने लगते हैं।
सब कुछ चलता है भगवान की मर्जी से
उन्होंने कहा कि प्रेम से बड़ा कुछ भी नहीं है। प्रेम से जीवन सुखी होता है। सब कुछ भगवान की मर्जी से चलता है। मनुष्य को नियति के साथ समझौता करना सीखना चाहिए ।जब जीव अकड़ कर चलता है तो वह यह भूल जाता है कि ईश्वर राजा को रंक और रंक को राजा बना सकता है। सारी उत्पत्ति के कारण भगवान हैं, भगवान की मर्जी पर ही सब कुछ टिका हुआ है। इसलिए हमें यह अनुभव करते रहना चाहिए कि मैं भगवान का हूं और भगवान मेरे हैं। मनुष्य के पास ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर वह गर्व कर सकें। भगवान के भक्तों को भगवान के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।
रास पञ्चाध्यायी की कथा करते हुए कृष्ण चंद्र जी ने बांसुरी की पंचम स्वर में रासलीला का अलौकिक कथा सुनाते हुए भक्त और भगवान के बीच की दूरी कम की ।
उन्होंने छठे दिवस पर कृष्ण लीला, देवकी कथा, रुक्मणि विवाह के प्रसंग की कथा सुनाई।
इस अवसर पर ओमप्रकाश केडिया, निरंजन केडिया, अजय केडिया, संजय केडिया,निर्मल बुधिया,प्रमोद सारस्वत, राजेश गोयल, श्रबन अग्रवाल सहित अन्य श्रद्धालू मौजूद थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pathak